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नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा मामले में सीबीआई जांच के कोलकाता हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की अर्जी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की दलील से इस मामले में पहली नजर में नोटिस जारी का मामला बनता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।

अगली सुनवाई 7 अक्टूबर
सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि सीबीआई को इस दौरान नए केस दर्ज करने से रोका जाना चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ भी नहीं होने जा रहा है हम जल्दी ही सुनवाई करेंगे और अगली सुनवाई के लिए 7 अक्टूबर की तारीख तय कर दी है।

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5 मई तक चुनाव आयोग का सुपरविजन
सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने दलील दी है कि 2 मई से लेकर 5 मई तक चुनाव आयोग का सुपरविजन राज्य में था। साथ ही चुनाव बाद की हिंसा को आगे के अपराध से भी जोड़ दिया गया है। राज्य में होने वाले सामान्य अपराध को चुनाव बाद की हिंसा के साथ जोड़ने की कोशिश की गई है। सिब्बल ने का कहा कि एनएचआरसी की जो फैक्ट फाइंडिंग कमिटी है उसमें बीजेपी से जुड़े लोग शामिल हैं। कमिटी ने प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमैन राइट्स एक्ट की प्रक्रिया का पालन नहीं किया है।

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राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया- सिब्बल
सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल ने कहा कि कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने आदेश में नेचरल जस्टिस के सिद्धांत का पालन नहीं किया है। राज्य सरकार को अपना पक्ष रखना का पर्याप्त मौका नहीं दिया गया। हजारों शिकायतों पर जवाब के लिए 7 दिन का सिर्फ वक्त दिया गया। छानबीन 7 दि में संभवन नहीं है। हाई कोर्ट के सामने राज्य सरकार ने जो मैटेरियल रखे उस पर विचार नहीं किया। सिब्बल ने कहा कि फेडरल स्ट्रक्चर में बिना पर्याप्त मौका दिए राज्य को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।

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राज्य सरकार को एनएचआरसी की रिपोर्ट तक नहीं दी गई। इस तरह से एक बार में सारे केस सीबीआई को ट्रांसफर नहीं हो सकते हैं। केस दर केस पुलिस अगर नाकामी हो तो उसे बताते हुए केस ट्रांसफर हो सका है। सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल ने कहा कि ऐसा कहा गया कि राज्य सरकार की नाकामी है ऐसे में ये राज्य के प्रतिष्ठा का सवाल है। हमें मौका नहीं दिया गया और राज्य को अलग थलक करने की कोशिश है।



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