लेखकः प्रवीण कुमार
बेहमई में 14 फरवरी 1981 को एक मल्लाह गैंग ने 20 मर्दों की हत्या कर दी, जिनमें से ज्यादातर ठाकुर जाति के थे। वह गैंग था फूलन देवी यानी बैंडिट क्वीन का। साथी विक्रम मल्लाह के कत्ल के बाद तीन हफ्तों तक सामूहिक बलात्कार किया गया था उसके साथ और उसमें कथित तौर पर शामिल थे बेहमई के दो ठाकुर। यह हत्याकांड उसी का बदला था। फूलन देवी नाम तब तक कानपुर, जालौन और भिंड के पुलिस रिकॉर्ड्स में ही था, लेकिन बेहमई नरसंहार के बाद दूर-दूर तक लोगों के जेहन पर छा गया। केवल नाम ही क्योंकि उससे पहले फूलन को किसी ने देखा ही नहीं था। यहां तक कि पुलिस के पास भी उसकी कोई तस्वीर नहीं थी।
निषाद वोटों पर नजर
बेहमई के करीब दो साल बाद फूलन ने अपनी शर्तों पर मध्य प्रदेश पुलिस के सामने हथियार डाल दिए। आत्मसमर्पण के 13 साल बाद वह सांसद बनीं। उनके राजनीतिक गुरु और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने उन्हें लोकसभा में पहुंचाया। फूलन एक प्रतीक के रूप में उभरीं, ऊंची जाति के अत्याचार के खिलाफ निचली जाति की आवाज की प्रतीक। बाद के वर्षों में उत्तर प्रदेश की सियासत में निषादों का असर बढ़ा तो फूलन उनके लिए एक दमदार चेहरा बन गईं। बेहमई नरसंहार के 40 साल बाद आज यूपी और बिहार में फूलन की विरासत के ढेरों दावेदार हैं।
आज से 20 साल पहले 25 जुलाई को फूलन देवी की हत्या कर दी गई। उस वक्त वह मिर्जापुर से समाजवादी पार्टी की सांसद थीं। देश की राजधानी दिल्ली में उनके सरकारी आवास के ऐन बाहर उन पर गोलियां चलाई गईं। वह कथित हमलावर भी ठाकुर जाति का था। उसने कहा कि बेहमई में अपनी जाति के लोगों की हत्या का बदला लेने के लिए उसने ऐसा किया। इस साल 25 जुलाई को पहले के मुकाबले फूलन देवी को कहीं ज्यादा जोरशोर से याद किया गया। वजह साफ है। अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं यूपी में। सारे राजनीतिक दल अपने कोर वोट बैंक में निषादों को जोड़ना चाहते हैं।
मोटे तौर पर देखें तो निषादों में 150 से ज्यादा उप जातियां हैं। पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश के 18 जिलों में इनकी अच्छी-खासी तादाद है। ये वही 18 जिले हैं, जहां एनडीए की सहयोगी और बिहार की विकासशील इंसान पार्टी के चीफ मुकेश सहनी 25 जुलाई को फूलन देवी की विशाल प्रतिमाएं लगाना चाहते थे। यूपी पुलिस ने ऐसा होने नहीं दिया। निषाद जाति से आने वाले सहनी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यूपी में पांव जमाना चाहते हैं।
यूपी में उनकी राह में जो पहली बाधा है, वह भी एनडीए का ही एक घटक दल है। नाम है- निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल यानी NISHAD। इसके चीफ हैं डॉ संजय निषाद। इस दल का जो भी प्रभाव है, वह गोरखपुर के आसपास है। 2017 के विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने पीस पार्टी से हाथ मिलाया और 62 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन जीत मिली सिर्फ एक सीट पर। अगले साल मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। तब संजय निषाद ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर अपने इंजीनियर बेटे प्रवीन को गोरखपुर से लोकसभा चुनाव लड़वाया जो सांसद बन गए।
योगी के गढ़ में इस हैरतअंगेज जीत ने निषाद पार्टी की बार्गेनिंग पावर बढ़ा दी। अगले साल जब लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने संजय निषाद को अपने शीशे में उतार लिया। प्रवीन को बगल की संत कबीर नगर सीट से बीजेपी का टिकट दिया गया। वह फिर जीते, लेकिन उसके बाद से निषाद पार्टी के हाथ खाली हैं। डॉ संजय निषाद ने कुछ समय पहले डेप्युटी सीएम पद की मांग कर डाली। बताया जाता है कि तब गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने उन्हें दिल्ली बुलाकर बातचीत की। चाय-वाय तो ऑफर की ही गई, लेकिन अब तक कुछ और नहीं मिला है।
इसीलिए उन्होंने दूसरे विकल्प खुले रखे हैं और मल्लाह नेता के रूप में फूलन देवी की विरासत पर पहला दावा भी उन्होंने ही ठोका है। 2001 में फूलन देवी के कत्ल के बाद उनके पति उमेद सिंह ने एकलव्य सेना बनाई थी। लेकिन कई निषाद समूहों को एकजुट करने का ठोस प्रयास संजय निषाद ने ही किया। इसके लिए उन्होंने जनवरी 2013 में राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद बनाई। इसका वजूद अब भी है, लेकिन राजनीतिक पहचान के लिए अगस्त 2016 में निषाद पार्टी का गठन किया गया।
संजय निषाद ने कहा कि जब किसी ने इसके बारे में सोचा भी नहीं था, उसके पहले से उनकी पार्टी फूलन देवी की 20वीं बरसी को ध्यान में रखते हुए पूरे राज्य में कार्यक्रम कर रही है। उधर, जब प्रशासन ने 18 जिलों में फूलन देवी की प्रतिमाएं लगाने की इजाजत नहीं दी तो मुकेश सहनी और उनकी पार्टी के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। सहनी ने कहा कि उनकी पार्टी सरकारी नौकरियों में निषाद समुदाय के आरक्षण के लिए एक आंदोलन शुरू करेगी। पार्टी ने यूपी असेंबली इलेक्शन में करीब 160 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का भी फैसला किया है।
एससी का दर्जा मिले
इस बीच, बीजेपी ने 17 जुलाई को पांच सदस्यों वाला निषाद सेल बनाया। इसका मकसद है असेंबली इलेक्शन में निषादों का सपोर्ट हासिल करना। लेकिन जिस फूलन देवी के नाम पर यह सारी कसरत है, उन्हें राजनीति में ले आई थी समाजवादी पार्टी। पिछले साल फूलन देवी की बरसी पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ का पोस्टर ट्वीट किया था। बीएसपी का कहना है कि उसके शासन में केवल निषादों को मछली पालन के पट्टे दिए गए।
इन मुख्य दलों के अलावा भी करीब आधा दर्जन गैर-राजनीतिक संगठन हैं, जो फूलन देवी को ‘इतिहास में उचित जगह’ दिलाने का नारा लगा रहे हैं। इस सबके बीच, अभी इस समुदाय के लिए सबसे अहम मसला है एससी कैटिगरी के तहत आरक्षण। इसके लिए सबसे बड़ा सहारा है फूलन देवी के नाम और उनकी विरासत का।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं