भारत ऋषि-मुनियों का देश रहा है। यहां के योगियों की भक्ति और सिद्धियों के सामने ईश्वर भी नतमस्तक रहे हैं। देवरिया में भी एक ऐसे ही सिद्ध योगी थे, जिनको ने नाम से आज भी जाना जाता है। जिन्हें अनेक तरह की सिद्धियां प्राप्त थीं। वह लोगों के मन की बात जान लेते थे और पानी पर भी चलते थे। देश-विदेश के अनेक बड़े राजनेता, नौकरशाह बाबा के पास आशीर्वाद लेने आते थे। उनके चमत्कारों की अनेक कहानियां हैं। सरयू नदी के किनारे स्थित अपने आश्रम में बने मचान से बाबा भक्तों को दर्शन देते थे। सन 1911 में जॉर्ज पंचम भी देवरहा बाबा का दर्शन करने उनके आश्रम में आए थे।
देवरिया जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर सरयू नदी के किनारे मईल गांव में बाबा का आश्रम है। सरयू के दियारा क्षेत्र में रहने के चलते उनका नाम देवरहा बाबा हो गया। दुबली पतली शरीर, लंबी जटा, कंधे पर यज्ञोपवीत और कमर में मृग छाला, बाबा की यही वेशभूषा थी। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पंडित मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, चंद्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, वीर बहादुर सिंह जगन्नाथ मिश्र समेत विदेश के भी अनेक राजनेता बाबा के दर्शन करने आए थे। बरसात में सरयू नदी की प्रलयंकारी बाढ़ का पानी बाबा के मचान तक आने के बाद घटने लगता था।
देवरहा बाबा ने ही कांग्रेस को दिया था पंजा का निशान
आपातकाल के बाद सन 1977 के आम चुनावों में जब कांग्रेस पार्टी की बुरी तरह हार हुई थी। तब इंदिरा गांधी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने उनके आश्रम में पहुंची थीं। बताया जाता है कि बाबा ने उन्हें हाथ उठाकर पंजे से आशीर्वाद दिया। वहां से लौटने के बाद इंदिरा जी ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न बदल कर हाथ का पंजा कर दिया। पंजा निशान पर ही 1980 में इंदिरा जी के नेतृत्व में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वे देश की प्रधानमंत्री बनीं। सन 1911 में जॉर्ज पंचम भी देवरहा बाबा का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम आए थे। बताया जाता है कि उन्होंने बाबा से काफी देर तक बातें की थी।
…और टल गया प्रधानमंत्री राजीव गांधी का कार्यक्रम
क्षेत्रीय बुजुर्गों के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी एक बार बाबा के दर्शन को आने वाले थे। मुख्य मार्ग से आश्रम के रास्ते में एक पुराना पेड़ था, जिसकी शाखाएं नीचे तक झुकी हुई थीं। पीएम का काफिला गुजरने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने वह पेड़ काटने की तैयारी शुरू कर दी। जब बाबा को यह जानकारी हुई तो उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को बुलाया और कहा कि वह पेड़ हमारे सुख और दुख का साथी है। वह अकेले में हमसे बातें भी करता है। आप लोग पेड़ मत काटो पीएम का कार्यक्रम अभी कैंसिल हो जाएगा। उसके थोड़ी देर बाद ही प्रधानमंत्री का कार्यक्रम कैंसिल होने की सूचना आ गई।
सन 1990 में वृंदावन में बाबा ने ली थी समाधि
देवरहा बाबा पानी पर भी चलते थे। बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। खेचरी सिद्धि के चलते वह जहां चाहते थे, वहां मन की गति से पहुंच जाते थे। वह भक्तों को प्रसाद जरूर देते थे। बाबा जानवरों की भी भाषा समझते थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी अन्न नहीं खाया। दूध और शहद ही फलाहार के रूप में लेते थे। देवरहा बाबा साल के 8 महीने अपने आश्रम में रहते थे, जबकि बाकी समय काशी, प्रयाग, मथुरा और हिमालय में एकांतवास करते थे। उनकी उम्र का अंदाजा किसी को नहीं है। बाबा के भक्त उनके 900 साल तक जिंदा रहने का दावा करते हैं। अंतिम समय में बाबा वृंदावन चले गए थे। 11 जून सन् 1990 को बाबा ने वहीं अंतिम समाधि ली। बताया जाता है कि उनके समाधि लेने के कुछ घंटे पहले मौसम में अचानक अजीब तरह का परिवर्तन आ गया था।