सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में एक ‘पंचायत समिति’ में बहुमत के समर्थन के कारण कांग्रेस पार्टी के समूह नेता के रूप में निर्वाचित एक सदस्य के चयन को मंजूरी देने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था में, बहुमत की इच्छा प्रबल होती है।’
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बी. आर. गवई की बेंच ने कहा कि किसी नगरपालिका में किसी समूह के नेता को बहुमत द्वारा चुना जाता है और इसे थोपा नहीं जा सकता है और हटाने की किसी भी प्रक्रिया के अभाव में, व्यक्ति के बहुमत का समर्थन खोने के बाद उससे छुटकारा पाने के लिए चयन प्रक्रिया अपनाई जा सकती है।
शीर्ष अदालत ने फैसलों का हवाला देते हुए कहा, ‘इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि इस अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी नगरपालिका पार्टी के नेता को ‘अघाड़ी’ या मोर्चे द्वारा चुना जाता है, न कि किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा…।’
बेंच के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस गवई ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अलावा किसी समूह नेता को थोपना लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है और निश्चित रूप से यह नियमों का उल्लंघन है।
इसमें कहा गया है, ‘जैसे ही ऐसा व्यक्ति बहुमत का विश्वास खोता है, वह अवांछित हो जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की इच्छा प्रबल होनी चाहिए।’
यह फैसला 30 मार्च, 2021 के बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर एस. संगीता की एक अपील पर आया। उच्च न्यायालय ने अहमदनगर के जिला कलेक्टर द्वारा 6 जनवरी, 2020 को पारित एक आदेश के खिलाफ दायर संगीता की अपील खारिज कर दी थी।
जिला कलेक्टर ने श्रीरामपुर पंचायत समिति पार्टी में वंदना ज्ञानेश्वर मुर्कुटे को कांग्रेस पार्टी के दल नेता के रूप में चुनने की स्वीकृति प्रदान की थी। संगीता तथा मुरकुटे सहित तीन अन्य को 2017 में हुए चुनाव में ‘पंचायत समिति’, श्रीरामपुर के सदस्य के रूप में चुना गया था।
पार्टी के निर्वाचित सदस्यों की एक बैठक में, संगीता को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पंचायत समिति पार्टी (आईएनसीपीएस) के समूह नेता के रूप में चुना गया था और बाद में इस शिकायत के बाद हटा दिया गया था कि उन्होंने आईएनसीपीएस के सदस्यों के अन्य तीन सदस्यों को न तो विश्वास में लिया और न ही दो साल से अधिक समय तक कोई बैठक ही बुलाई।
बाद में संगीता अन्य पार्टी के निर्वाचित सदस्यों की मदद से पंचायत समिति की अध्यक्ष चुन ली गई थी। उच्च न्यायालय ने समूह नेता के पद से हटाने के खिलाफ उनकी अर्जी खारिज कर दी थी।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘अपीलकर्ता को समूह नेता के रूप में चुना गया था, जब उन्हें आईएनसीपीएस पार्टी के सभी सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। हालांकि, जब उन्होंने एक अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया, तो उन्हें आईएनसीपीएस पार्टी के बहुमत का समर्थन खो दिया और इस तरह, अपने नेतृत्व को बहुमत पर नहीं थोप सकती थी।’
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि खरीद-फरोख्त को रोकने और राजनीतिक व्यवस्था में शुचिता बनाए रखने के लिए कानून और नियम बनाए गए हैं, लेकिन साथ ही प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से नहीं की जा सकती है कि अल्पमत में रहने वाला कोई व्यक्ति खुद को अन्य सदस्यों पर थोपे, जो पूर्ण बहुमत में हैं।