राजेश चौधरी/लीगल फोरम
बिजनेसमैन राज कुंद्रा को कथित तौर पर पोर्नोग्राफिक फिल्म बनाकर उन्हें ऐप्स के जरिए प्रसारित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। आखिर पोर्नोग्रफी मामले में क्या कहता है देश का कानून और क्यों इन फिल्मों को इरॉटिक कहकर बचने की कोशिश हो रही है?
सेक्शुअल एक्ट की शूटिंग कब अपराध है?
सुप्रीम कोर्ट की ऐडवोकेट रेखा अग्रवाल बताती हैं कि प्राइवेसी का अधिकार जीवन के अधिकार में शामिल है। कोई शख्स अपने बेडरूम में क्या करता है, इससे किसी दूसरे को वास्ता नहीं है। कोई दो वयस्क अगर सेक्शुअल रिलेशन में हैं तो वे अपने कमरे के अंदर जो कुछ भी करें, वह प्राइवेट है। लेकिन उसे कैमरे में कैद करके अगर कोई पब्लिक डोमेन में डालता है, किसी भी माध्यम से प्रसारित या प्रकाशित करता है तो वह अपराध है। ऐसे में आईपीसी की धाराओं के साथ-साथ आईटी एक्ट के तहत केस बनेगा।
आईटी ऐक्ट में 7 साल तक कैद का प्रावधान
साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल बताते हैं कि पोर्नोग्रफी मामले में आईटी ऐक्ट की धारा-67 व 67 ए के साथ-साथ आईपीसी की धाराएं लगाई जाती हैं। आईपीसी की धारा-67 के प्रावधान को देखा जाए तो उसके तहत कहा गया है कि अगर कोई शख्स अश्लील मैटेरियल (वासना वाले या कामुकता आदि वाले कंटेंट) इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रसारित करता है यानी ट्रांसमिट करता है या प्रकाशित करता है तो वह अपराध है। साथ ही कहा गया है कि अगर कोई शख्स ऐसे मैटेरियल को प्रसारित करने के लिए कारण बनता है या सबब बनता है या उकसाता है या प्रेरित करता है तो भी अपराध है। यानी जैसे ही कोई अश्लील मैटेरियल को शूट करता है तो वह प्रकाशन के तहत अपराध के दायरे में आएगा। साथ ही उसका प्रसारण करता है तो वह अपराध है। इसके लिए पहली बार दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद और पांच लाख तक जुर्माने का प्रावधान है। वहीं अगर दूसरी बार दोषी पाया जाता है तो पांच साल तक कैद और 10 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है।
अगर आईटी एक्ट -67 ए के प्रावधान को देखा जाए तो कोई भी कंटेंट जो सेक्शुअलिटी की हरकत को स्पष्ट तौर पर दर्शाता हो और उसे प्रसारित या प्रकाशित किया जाता है। किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से इसके प्रसारण के मामले में दोषी शख्स को सजा दिए जाने का प्रावधान है। इसके तहत दोषी को पहली बार के अपराध के लिए पांच साल कैद और 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है। अगर आरोपी दूसरी बार दोषी करार दिया जा रहा है तो वैसे मामले में 7 साल तक कैद की सजा हो सकती है और जुर्माना हो सकता है। यह मामला गैर जमानती अपराध है।
चाइल्ड पोर्नोग्रफी देखना भी अपराध
पोर्नोग्रफी देखना अपराध नहीं लेकिन चाइल्ड पोर्नोग्रफी देखना अपराध है। कानूनी जानकार पवन दुग्गल बताते हैं कि अगर कोई अकेले में पोर्नोग्रफी देखता है तो वह अपराध नहीं है। लेकिन पब्लिक प्लेस में ऐसा करता है तो अपराध होगा। लेकिन कोई चाइल्ड पोर्नोग्रफी देखता है तो अपराध है और इसके लिए आईटी ऐक्ट की धारा-67 बी के तहत सजा का प्रावधान किया गया है। चाइल्ड पोर्नोग्रफी के लिए अगर कोई सर्च करे, कंटेंट डाउनलोड करे या उसे ट्रांसमिट या प्रकाशित करे या उसे देखता है या फिर बच्चों को ऑनलाइन सेक्शुअल हरकत के लिए कहता है या एब्यूज करता है तो आईटी एक्ट की धारा-67 बी के तहत पहली बार दोषी पाए जाने पर 5 साल कैद का प्रावधान है और दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 7 साल तक कैद की सजा और 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
पब्लिक प्लेस में अश्लील हरकत भी अपराध
ऐडवोकेट मनीष भदौरिया के मुताबिक आईपीसी की धारा-292, 293 और 294 के तहत भी अपराध के हिसाब से केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है। आईपीसी की धारा-292 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स कोई अश्लील सामग्री, किताब, या अन्य अश्लील सामग्री बेचता है या उसे वितरित करता है या सर्कुलेट करता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर पहली बार में 2 साल तक कैद और दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 5 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है। वहीं आईपीसी की धारा-293 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई 20 साल से कम उम्र के शख्स को अश्लील सामग्री या किताब सर्क्युलेट करता है या बेचता है तो इस मामले में तीन साल तक कैद की सजा हो सकती है और दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 7 साल तक कैद की सजा हो सकती है। साथ में 2 हजार तक जुर्माने का भी प्रावधान है। वहीं आईपीसी की धारा-294 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स पब्लिक प्लेस में अश्लील हरकत करता है या फिर अश्लील गाने गाता है या अश्लील भाषा का इस्तेमाल करता है तो दोषी पाए जाने पर 3 महीने तक कैद हो सकती है।
इरॉटिक मैटेरियल क्या है
साइबर मामलों के एक्सपर्ट विराग गुप्ता बताते हैं कि जब भी पोर्नोग्रफी कानून को लेकर चर्चा होती है तो बचाव के तौर पर इरॉटिक शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन हमें कानून की भाषा के भाव को समझना होगा। आईटी ऐक्ट की धारा-67 कहती है कि कोई भी अश्लील सामग्री अगर प्रसारित या प्रकाशित की जाती है तो वह अपराध है। इसके लिए इरॉटिक शब्द का इस्तेमाल नहीं है। कानून की किताब में अश्लील मैटेरियल के लिए प्रूरिअंट और लसिविअस शब्द का इस्तेमाल हुआ है जिसका अर्थ कामोत्तेजक होता है। अब इरॉटिक का मतलब भी कामोत्तेजक ही होता है। अश्लीलता शब्द व्यापक है और उस दायरे में सबकुछ आ जाता है। पवन दुग्गल बताते हैं कि अदालत देखती है कि कोई मैटेरियल इरॉटिक के नाम पर बेचा जा रहा है तो उसमें वाकई कलात्मकता वाल श्रंगारिक मैटेरियल है या फिर अश्लीलता के लिए दिखाया गया है। कामोत्तेजक भाव जो अश्लीलता लिए होगा, वह अश्लीलता मानी जाएगी और कानून के दायरे में वह व्यक्ति आएगा जिसने ऐसा मैटेरियल प्रसारित या प्रकाशित किया है। कोई भी कंटेट जो अश्लील है वह अपराध है। अगर कोई कहता है कि उसका कंटेट इरॉटिक है तो यह देखना अदालत का काम है कि वह इरॉटिक है या अश्लील है। कलात्मकता पूरी न्यूड तस्वीर में भी हो सकती है और कपड़े के साथ भी अश्लीलता हो सकती है। यह मामले-मामले पर निर्भर करता है।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं