एक ही वैक्सीन, एक ही फॉर्म्युला लेकिन दोहरे मापदंड। हम लगाए तो वैक्सीन, कोई और यूज करे तो मामूली इंजेक्शन जिसका कोई मतलब नहीं! कोरोना की वैक्सीन कोविशील्ड को लेकर ब्रिटेन के रुख का सार यही है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की तरफ से विकसित कोरोना वैक्सीन की मैन्यूफैक्चरिंग पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में कोविशील्ड नाम से हो रही है। यही वैक्सीन ब्रिटेन में भी बड़े पैमाने पर लग रही है, भारत में भी। 50 लाख अंग्रेजों को तो सीरम से एक्सपोर्ट की गई कोविशील्ड ही लगी है। लेकिन ब्रिटेन कोविशील्ड लगवा चुके भारतीयों को ‘अनवैक्सीनेटेड’ मान रहा है और उनके लिए अनिवार्य क्वारंटीन का नियम बनाया है। एक ही वैक्सीन को लेकर ब्रिटेन का यह दोहरा पैमाना अजीब तो है ही, एक तरह का नस्लभेद भी है। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
भारत में फुली वैक्सीनेट लेकिन UK में अनवैक्सीनेट!
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने भी ब्रिटेन की इस ओछी सोच पर सवाल उठाए हैं। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में कांत ने लेख लिखकर ब्रिटेन को आईना दिखाया है। दरअसल, ब्रिटेन के नए इंटरनैशनल ट्रैवल रूल्स के मुताबिक, कोविशील्ड/एस्ट्राजेनेका की दोनों डोज लगवा चुके फुली-वैक्सीनेटेड भारतीयों को ‘अनवैक्सीनेटेड’ माना जाएगा और उन्हें अनिवार्य क्वारंटीन में जाना होगा। यह तब है जब एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड और कोविशील्ड दोनों ही एक ही वैक्सीन है। फर्क सिर्फ इतना है कि वैक्सीन कहां बनी और किस जगह लगाई गई है।
भारत से भेजे कोविशील्ड के 50 लाख डोज अंग्रेजों को भी लगे हैं
ब्रिटेन में अबतक कोरोना वैक्सीन 4.8 करोड़ डोज लगाई गई है। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से 50 लाख डोज तो भारत के सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने एक्सपोर्ट की है। यही पर ब्रिटेन का दोहरा रवैया दिखता है, जिसमें नस्लभेद की बू आती है।
दुनिया फिर सामान्य हो, वैक्सीन में है चाबी
कोरोना महामारी के साये से निकलकर दुनिया के सामान्य होने के लिए वैक्सीन बहुत अहम है। बिना वैक्सीन के तो अंतहीन लॉकडाउन का रास्ता ही बचता है। अच्छी बात यह है कि साल-डेढ़ साल पहले जब दुनिया पहले लॉकडाउन का गवाह बनी तबसे अबतक हमारे पास कई वैक्सीन हैं। वैक्सीन की बदौलत ही इकॉनमी फिर से खुल रही हैं, बच्चे स्कूलों में लौट रहे हैं और सामान्य जनजीवन बहाल हो रहा है।
ट्रैवल खोलने के लिए दुनिया के देशों में समन्वय जरूरी, UK की क्यों उल्टी चाल
ऐसे वक्त में जब दुनिया शिद्दत से अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की राह देख रही है, तब सरकारों को साथ मिलकर समन्यवय के साथ ट्रैवल को खोलने की जरूरत है। लेकिन ब्रिटेन इन अजीब नियमों की वजह से ट्रैवल को और खोलने के बजाय बिल्कुल उल्टी दिशा में जा रहा है। 10 दिन के अनिवार्य सेल्फ आइसोलेशन की वजह से कोई भी बिजनस टूर या पर्यटन के लिए यात्रा बहुत मुश्किल है। स्टूडेंट्स तो पहले से ही अतिरिक्त खर्चों के बोझ से दबे हैं।
भारत और यूरोपीय यूनियन के देशों के बीच ट्रैवल नियमों को लेकर बेहतर आपसी समझ दिखी है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि यह ब्रिटेन या उन कुछ दूसरे देशों के साथ नहीं हो सकता जो वैक्सीन लगवा चुके लोगों की यात्राओं पर भी पाबंदियां जारी रखे हुए हैं।
विकासशील देशों में वैक्सीन हेजिंटेसी को बढ़ावा देने वाला है UK का कदम
इन वैक्सीन में कोई अंतर नहीं है। ब्रिटेन का रुख न सिर्फ भारत को प्रभावित करेगा बल्कि कई विकासशील देशों को भी प्रभावित करेगा जिन्होंने एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफर्ड की वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर डोज तो ब्रिटेन या ईयू ने ही एक्सपोर्ट किया है। इस तरह के नियम बनाकर ब्रिटेन सरकार एक तरह से विकासशील देशों में वैक्सीन हेजिटेंसी को ही बढ़ा रही है और इससे वैक्सीन का विरोध करने वालों को ही ताकत दे रही है।
ब्रिटेन का ‘वैक्सीन नस्लभेद’
ब्रिटेन ने इन बेतुके नए ट्रैवल रूल्स पर कोई सफाई तक नहीं दी है। इस तरह का सिस्टम ब्रिटेन की नस्लभेदी मानसिकता को भी दिखाता है। अगर आप कुछ चुनिंदा देशों के फुली वैक्सीनेटेड नागरिक हैं तो आपको ब्रिटेन में सेल्फ-आइसोलेशन से छूट मिलेगी। अगर आप उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में नहीं हैं तो भले ही आप फुली वैक्सीनेटेड हों लेकिन यूके में आपको सेल्फ-आइसोलेशन में रहना ही होगा।
अमीर देशों के लिए अलग नियम, विकासशील देशों के लिए अलग!
ईयू और अमेरिका के अलावा जिन देशों के फुली वैक्सीनेटेड लोगों को ब्रिटेन ने क्वारंटीन से छूट दी है उनमें ऑस्ट्रेलिया, एंटीगा और बरबुडा, बारबडोस, बहरीन, ब्रुनेई, कनाडा, डोमिनिका, इजरायल, जापान, कुवैत, मलेशिया, न्यूजीलैंड, कतर, सऊदी अरब, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे देश शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर देश उच्च-आय वाले हैं, सिर्फ कुछ ही इसके अपवाद हैं। ब्रिटेन को इस पर सफाई देना चाहिए कि इन देशों में लगी वैक्सीन भारत में लग रहे टीकों या बाकी विकासशील देशों में लग रहे टीकों से क्यों और कैसे अलग है।
सेहत के साथ भी खिलवाड़
ब्रिटेन के बेतुके नियम सेहत के साथ भी खिलवाड़ हैं। मान लीजिए भारत से कोई स्टूडेंट ब्रिटेन पढ़ने जा रहा है। वह कोविशील्ड की दोनों डोज लगवा चुका है लेकिन ब्रिटेन में उसे अनवैक्सीनेटेड माना जा रहा। अब उसे वहां फिर वैक्सीन लगवानी होगी। अब अगर उसे मॉडर्ना, फाइजर या कोई और वैक्सीन भले ही वह एस्ट्राजेनेका ही लगी तो क्या उसके नुकसान नहीं होंगे। अलग-अलग वैक्सीने के डोज लगवाना क्या पूरी तरह सुरक्षित है? इस बारे में पर्याप्त वैज्ञानिक अध्ययन भी नहीं हुए हैं। जिन वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूरी मिल चुकी है, उनको लेकर तो कोई भ्रम ही नहीं होना चाहिए। भले ही वह किसी भी देश में लगी हों, अगर कोई फुली वैक्सीनेट है तो उसे किसी भी देश में फुली वैक्सीनेट ही माना जाना चाहिए।