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हाइलाइट्स

  • क्या ओबीसी बिल की पिच पर पहला मैच यूपी में खेला जाएगा?
  • कानून आते ही उत्तर प्रदेश में बढ़ गई है राजनीतिक सक्रियता
  • कानून के बाद तो सबसे पहली पहल तो महाराष्ट्र में होनी चाहिए थी

नई दिल्ली
सरकार को पिछले हफ्ते संसद के सत्र के दौरान संविधान में संशोधन कर ओबीसी बिल लाने की जरूरत नहीं पड़ती, अगर महाराष्ट्र सरकार अपने यहां मराठा को पिछड़ा वर्ग की सूची में नहीं शामिल करती। महाराष्ट्र सरकार ने जब मराठा को ओबीसी मान लिया और वे आरक्षण के दायरे में आ गए तो मामला कोर्ट पहुंचा। और इसी साल मई महीने में कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं है। क्योंकि संविधान के 102वें संशोधन के जरिए केंद्र सरकार 2018 में ही किसी भी जाति को पिछड़ा वर्ग की सूची में डालने का अधिकार राज्य सरकारों से ले चुकी है। यह अधिकार अब सिर्फ केंद्र सरकार में निहित है। यहीं से गेंद केंद्र सरकार के पाले में आ गई थी। जिन-जिन राज्यों में पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल होने की मांग चल रही है, उन सभी राज्यों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि, यह तो केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र की बात है। हम तो कुछ कर ही नहीं सकते। केंद्र सरकार को भी लगने लगा था कि यह उसके लिए मुश्किल बन गई है, राज्य जनाक्रोश को उसके पाले में सरका दे रहे हैं। इसके मद्देनजर पिछले संसद सत्र में संविधान के 127वें संशोधन के जरिए केंद्र सरकार ने एक बार फिर ओबीसी सूची तय करने का अधिकार राज्यों को दे दिया।

यूपी की बढ़ी सक्रियता
संविधान के संशोधन के जरिए कानून लाए जाने के बाद अगर किसी राज्य को सबसे पहले पहल करनी चाहिए थी तो वह था महाराष्ट्र। यहीं मामला अधर में फंसा हुआ है। लेकिन सबसे ज्यादा सक्रियता बढ़ गई है यूपी में। यूपी का पिछड़ा वर्ग आयोग जल्दी ही 39 जातियों को पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल करने की सिफारिश करने वाला है। राज्य आयोग के अध्यक्ष का बयान मीडिया में आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘आयोग के समक्ष जिन जातियों की ओर से पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल होने के आवेदन आए थे, 24 जातियों का सर्वे का काम पूरा हो चुका है। 15 का पूरा होने की ओर है। हम जल्दी ही अपनी सिफारिश राज्य सरकार को भेज देंगे। फैसला लेना सरकार का काम होगा।’

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जिन 39 जातियों के पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है, उनमें से ज्यादातर अभी अगड़ी जाति में शामिल हैं और बीजेपी की वोटबैंक मानी जाती हैं। जैसे अग्रहरी, वैश्य, केसरवानी वैश्य, रुहेला, भाटिया, कायस्थ, भूटिया, बगवां, दोहर, दोसर वैश्य, भाट। चूंकि यूपी में अब सिर्फ छह महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, इस वजह से वहां हर मुद्दे की संवेदनशीलता बहुत ज्यादा बढ़ी हुई है। अगर आयोग चुनाव से पहले अपनी सिफारिश सरकार को भेज देता है तो फिर सरकार को चुनाव से पहले ही कोई न कोई फैसला लेना पड़ जाएगा। इसके बाद वहां के बहुत सारे नए सियासी और सामाजिक समीकरण बन सकते हैं। मामला दो-चार जातियों का नहीं, बल्कि 39 जातियों का है।

बीजेपी क्यों खेलना चाहेगी ‘ओबीसी कार्ड’
ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव से पहले बीजेपी यूपी में पिछड़ा वर्ग सूची को विस्तार देकर अपने हक में सियासी समीकरण बनाना चाहेगी। यूपी की राजनीति में पिछड़ा वर्ग काफी अहम भूमिका अदा करते हैं। बीजेपी भी अपना चेहरा बदल रही है। एक वक्त बीजेपी को ‘अपर कास्ट’ के लोगों की पार्टी कहा जाता था। लेकिन 2014 में मोदी और अमित शाह के हाथ में पार्टी की कमान आने के बाद पार्टी ने ओबीसी के बीच पहुंच बनाने में कामयाबी पाई। ज्यादातर राज्यों में, खासतौर पर हिंदी बेल्ट में यह पाया गया कि पिछड़ा वर्ग में भी जो अति पिछड़ा वर्ग है, उसने बीजेपी को अपनी पार्टी मान लिया है। राजनीतिक गलियारों में मोदी सरकार को ‘ओबीसी सरकार’ इसलिए कहा जाता है कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद में 27 ओबीसी मंत्री हैं।

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यूपी में इन दिनों गैर बीजेपी दलों, जिनमें एसपी-बीएसपी प्रमुख हैं, वह इन दिनों बीजेपी के अपर कास्ट वर्ग के वोटबैंक में सेंध लगाने में जुटे हैं। बीएसपी पूरे राज्य में ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन कर रही है तो समाजवादी पार्टी ने भी ब्राह्मणों को लुभाने के लिए यह वादा किया है कि राज्य में उनकी सरकार बनने पर लखनऊ में भगवान परशुराम की सबसे ऊंची प्रतिमा लगवाई जाएगी। बीजेपी को लगता है कि अगर विपक्ष की इन तमाम कोशिशों से अगर उसका अपर कास्ट का थोड़ा बहुत वोट शिफ्ट भी हो जाता है, तो वह उसकी भरपाई वह पिछड़ा वर्ग के बीच अपनी पैठ को और मजबूत करके कर सकती है। पिछड़ा वर्ग का वोट भी ज्यादा है, इसलिए बीजेपी का सारा फोकस इसी वर्ग पर है। राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जाता है कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने पिछड़ा वर्ग की सूची में नई जातियों को शामिल करने के लिए जो तेजी दिखाई है, वह बीजेपी की मंशा को देखते हुए ही है। योगी सरकार ने जून महीने में ही आयोग का फिर से गठन किया है। अध्यक्ष मनोनीत किए गए जसवंत सैनी बीजेपी के पुराने नेताओं में शुमार किए जाते हैं। दो उपाध्यक्ष और 22 सदस्यों में भी ज्यादातर बीजेपी काडर के ही हैं।

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‘घमासान’ होना तय है
अगर नई जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल किए जाने का फैसला होता है तो विपक्ष भी हाथ पर हाथ रखकर बैठने वाला नहीं है। घमासान होना तय माना जा रहा है। जैसे ही पिछड़ा वर्ग की सूची में नई जातियां शामिल होंगी, आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने की मांग शुरू हो जाएगी। नई जातियों के शामिल होने से पिछड़ा वर्ग की सूची में पहले से मौजूद जातियों को अपने हक में कटौती लगना शुरू हो जाएगी। यूपी में पिछड़ा वर्ग की सूची में पहले से ही 70 जातियां शामिल हैं। आरक्षण का कोटा बढ़ने पर अपर कास्ट मैदान में मोर्चा ले सकता है। उधर कुछ जातियां अपने को पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल किए जाने के विरोध में अभी से आ गई हैं। कई कायस्थ नेताओं के बयान आए हैं, जिसमें उन्होंने पिछड़ा वर्ग सूची में शामिल न किए जाने की मांग उठाई है।

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