तमिलनाडु में नीट परीक्षा नहीं करवाने का विधेयक विधानसभा में पारित हुआ है। कानून बनने के बाद राज्य में नीट परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए मेडिकल कॉलेजों में क्लास 12 के मार्क्स के आधार पर एडमिशन मिलेगा।
क्या कहता है बिल?
बिल में हाई लेवल कमिटी के सुझावों का हवाला दिया गया है। सरकार ने इसमें ग्रेजुएट लेवल पर मेडिकल कोर्सों में प्रवेश के लिए नीट की बाध्यता समाप्त करने का फैसला लिया है। ऐसे कोर्सों में एंट्री 12वीं की परीक्षा में मिले मार्क्स के आधार पर की जाएगी। प्रावधानों के अनुसार, तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों में मेडिकल, डेंटल, आयुर्वेद और होम्योपैथी में क्लास 12 में प्राप्त अंकों के आधार पर एडमिशन मिलेगा। तमिलनाडु सरकार ने सरकारी स्कूलों से पढ़े छात्रों को मेडिकल कॉलेजों की कुल सीटों में 7.5 फीसदी रिजर्वेशन देने का प्रस्ताव किया है।
क्यों लिया गया फैसला?
इस बिल के साथ राज्य सरकार की मंशा है कि उसके राज्य में छात्र सेंट्रल एग्जाम पर निर्भर नहीं रहें। उन्हें इससे छूट मिले। छात्रों के लिए मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए एकमात्र जरिया नीट ही न रहे। इसका मकसद सामाजिक न्याय और पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों के छात्रों को भेदभाव से बचाना है। राज्य सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ एक दिन होने वाली परीक्षा के कारण बच्चों पर भारी तनाव रहता है। वहीं, इंजीनियरिंग के छात्रों के पास राज्य और राष्ट्रीय स्तर दोनों तरह के एग्जाम में बैठने का विकल्प मौजूद होता है। नीट राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल में दाखिला पाने की इच्छा रखने वाले स्टूडेंट के लिए एकमात्र रास्ता है।
कैसे लिया गया फैसला?
तमिलनाडु सरकार ने नीट प्रवेश परीक्षा के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव के असर का अध्ययन करने के लिए एक समिति गठित की थी। समिति ने पाया था कि नीट के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाने वाले छात्रों का प्रदर्शन क्लास 12 के स्कोर पर एडमिशन पाने वाले स्टूडेंट के मुकाबले कमतर रहता है। विश्लेषण से यह भी पता चला था कि अमीर परिवार के बच्चे एग्जाम में बेहतर स्कोर कर लेते हैं।
मामले ने कैसे पकड़ा तूल?
सलेम के पास एक गांव में रहने वाले धनुष नाम के 19 साल के स्टूडेंट ने रविवार को नीट परीक्षा में बैठने से कुछ घंटे पहले आत्महत्या कर ली थी। उसे एग्जाम में फेल होने का डर था। इसके बाद नीट के खिलाफ माहौल गरमा गया। राज्य में नीट खत्म करने की मांग होती रही है। आखिरकार तमिलनाडु सरकार ने सोमवार को इसके खिलाफ बिल पारित कर दिया।
आगे क्या है रास्ता?
एडमिशन के लिए वैकल्पिक रूट को तय किया जाना बाकी है। इसने एक ऐसा मंच तैयार किया है जहां राज्य और केंद्र सरकार को यह मिलकर तय करना है कि प्रदेश को इस राष्ट्रीय परीक्षा से कैसे छूट दी जाए। वैसे, केंद्र सरकार पहले ही नीट को साल में कम से कम दो बार आयोजित कराने के विकल्प पर विचार कर रही है। लेकिन, इस पर अब तक आम सहमति नहीं बन पाई है।
राज्य में बिल तो पास हो गया है, लेकिन इसे कानून बनना बाकी है। अब इसे गवर्नर के समक्ष पेश किया जाएगा। उनके पास चार विकल्प होंगे। पहला, इसे मंजूरी देने का। दूसरा, राष्ट्रपति के पास विचार करने के लिए भेजने का। तीसरा, इसे रोक लेने का। चौथा, दोबारा बिल को विचार के लिए विधायिका के पास भेज देने का।
होता रहा है विरोध
2010 में नीट के संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया गया था। तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने इसका विरोध किया था। नोटिफिकेशन इस आइडिया पर आधारित था कि कई एग्जाम की जगह एक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट हो। इससे छात्रों का समय और पैसा दोनों बचेगा। 5 मई, 2013 को पहली बार नीट एग्जाम हुआ। जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे यह कहते हुए खारिज किया कि इसे राज्यों पर थोपा नहीं जा सकता है।
हालांकि, 2016 में सुप्रीम कोर्ट की स्पेशल बेंच ने पुराने फैसले को वापस ले लिया। उसने केंद्र और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को इसे आयोजित कराने की अनुमति दी। राज्य में नीट को खत्म करना चुनावी एजेंडा रहा है। 2017 में अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाली सरकार ने ऑर्डिनेंस के जरिये राज्य में नीट खत्म करने की कोशिश की थी। हालांकि, इसे राष्ट्रपति की अनुमति नहीं मिल पाई थी। विधानसभा चुनाव से पहले द्रमुक ने नीट को राज्य में खत्म करने का वादा किया था।