जरा सोचिए। ब्रिटेन का विदेश मंत्री भारत के विदेश मंत्री को फोन करे लेकिन भारतीय विदेश मंत्री बात करने से ही इनकार कर दे। लेकिन ऐसा हुआ था। सुषमा स्वराज ने तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन का फोन नहीं उठाया था। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे सैयद अकबरूद्दीन ने अपनी नई किताब में यह दिलचस्प किस्सा बताया है। कूटनीति चीज ही ऐसी है, हमदर्द कब पाला बदल ले, ‘गैर’ समझे जाने वाले कब अपने हो जाए, कुछ कहां नहीं जा सकता।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रह चुके सैयद अकबरुद्दीन ने अपनी नई किताब ‘इंडिया vs यूके: स्टोरी ऑफ ऐन अनप्रेसीडेंटेड डिप्लोमैटिक विन’ में ऐसे तमाम किस्सों का जिक्र किया है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ इंटरव्यू में अकबरुद्दीन ने बताया है कि सुषमा जी ने बोरिस जॉनसन का फोन क्यों नहीं उठाया था। संयोग से जॉनसन आज ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैं।
अमेरिकी राजनयिक भारत के खिलाफ कर रहे थे लॉबिंग
दरअसल, 2017 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के जज का चुनाव भारत और ब्रिटेन के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। भारत से दलबीर भंडारी तो ब्रिटेन से सर क्रिस्टोफर ग्रीनवुड के बीच मुकाबला था। ब्रिटेन ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। अमेरिका समेत तमाम बड़े देशों का उसे समर्थन हासिल था। अमेरिकी डिप्लोमेट्स खुलेआम भारत के खिलाफ लॉबिंग कर रहे थे।
वादा कर पीछे हट गया चीन
चीन ने समर्थन का भरोसा दिया था। लेकिन जब तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी को फोन घुमाया तो उन्होंने फोन ही नहीं उठाया। शायद डोकलाम में चला गतिरोध वजह हो या फिर चीन की धोखे की फितरत।
दोस्त जापान से भारत को मिली मायूसी
यहां तक कि जापान भी ब्रिटेन की खातिर भारत को भाव नहीं दिया। उसे लग रहा था कि ब्रिटेन एकतरफा जीत हासिल करने जा रहा है, लिहाजा भारत के साथ जाने का क्या मतलब। जापान का यह रुख भारत के लिए ही नहीं, सुरक्षा परिषद के सदस्यों के लिए भी हैरान करने वाला था।
और जब सुषमा ने नहीं उठाया जॉनसन का फोन
सैयद अकबरुद्दीन ने अपनी नई किताब में बताया है कि भारत को बड़े और ताकतवर देशों से भले ही समर्थन नहीं मिला लेकिन छोटे-छोटे देशों से जबरदस्त समर्थन मिला। पड़ोसी देशों से समर्थन मिला। उन्होंने लिखा है कि भारत को अपनी जीत का पूरा भरोसा था। अकबरुद्दीन ने सुषमा स्वराज को सलाह दी कि आप किसी का फोन कॉल न रिसीव करें। उधर ब्रिटेन अपनी जीत के लिए पूरी तरह आश्वस्त था। भारत को मनाने के आखिरी प्रयास के तहत तत्कालीन विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन ने भारतीय समकक्ष सुषमा स्वराज को फोन मिलाया। लेकिन सुषमा ने उनका फोन ही नहीं उठाया।
और भारत ने दर्ज की बड़ी कूटनीतिक जीत
जब नतीजे आए तो भारत को जबरदस्त जीत मिली। ब्रिटेन के लिए यह कितना बड़ा तगड़ा झटका था, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पूरे 71 साल बाद ऐसा हुआ जब आईसीजे में यूके का कोई जज नहीं है।