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हाइलाइट्स

  • भारत में घटा है हिंदुओं और मुस्लिमों की प्रजनन दर में अंतर : रिपोर्ट
  • दोनों के बीच का यह अंतर 2040s तक खत्‍म हो सकता है: प्‍यू
  • बेबुनियाद है मुस्लिमों की बढ़ती आबादी का डर: स्‍वामीनाथ अय्यर
  • ‘भारत में हिंदू ही रहेंगे बहुसंख्‍यक, उन्‍हें नहीं है कोई खतरा’

नई दिल्‍ली
पिछले दिनों अमेरिकी थिंकटैंक र्प्‍यू रिसर्च सेंटर ने एक एनालिसिस जारी किया। भारत की आबादी में विभिन्‍न धर्मों की हिस्‍सेदारी पर कई आंकड़े सामने रखे गए। एनालिसिस के अनुसार, 2040s तक मुस्लिमों और हिंदुओं की प्रजनन दर में अंतर खत्‍म हो जाएगा। सत्‍ताधारी भाजपा की ओर से मुस्लिमों के आबादी बढ़ाने को लेकर बार-बार दावे किए गए। भगवा पार्टी कहती है कि मुस्लिमों की आबादी बढ़ने से हिंदुओं को खतरा है। दूसरा मुद्दा बांग्‍लादेश के मुस्लिम शरणार्थियों का है। हमारे सहयोगी ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ के लिए एक लेख में वरिष्‍ठ पत्रकार स्‍वामीनाथ अय्यर लिखते हैं बीजेपी की ओर से दिखाए जा रहे इन दोनों डर के पीछे ठोस वजह नहीं है। उन्‍होंने आंकड़ों के आधार पर समझाया है कि भारत में हिंदुओं की बहुलता को कोई खतरा नहीं है।

21वीं सदी खत्‍म होने तक 20% होंगे मुस्लिम
आजादी के बाद हुई हर जनगणना में मुस्लिमों का हिस्‍सा बढ़ा है। 1951 में जहां भारत की आबादी में 9.8 प्रतिशत मुसलमान थे, 2011 में उनकी हिस्‍सेदारी बढ़कर 14.2% हो गई। इसके मुकाबले हिंदुओं का हिस्‍सा 84.1% से घटकर 79.8% रह गया। छह दशकों में मुस्लिमों की हिस्‍सेदारी में 4.4% की बढ़त बेहद क्रमिक रही है। यह ट्रेंड जारी रहा तो इस सदी के अंत तक भारत में मुस्लिमों की आबादी 20% से ज्‍यादा नहीं होगी। यह बढ़त और धीमी होगी क्‍योंकि मुस्लिमों और हिंदुओं के बीच प्रजनन का अंतर कम हो रहा है और शायद कुछ सालों में खत्‍म ही हो जाए।


परिवार नियोजन के तरीके अपना रहे हैं मुसलमान
1992-2015 के बीच नैशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे का डेटा काफी कुछ सामने रखता है। इस दौरान, मुस्लिमों की कुल प्रजनन दर (प्रति महिला बच्‍चों की संख्‍या) 4.4 से काफी कम होकर 2.6 पर आ गई। इसके मुकाबले, हिंदुओं की प्रजनन दर घटने की रफ्तार धीमी रही। 1992 में जहां हिंदुओं के बीच प्रजनन दर 3.3 थी जो 2015 में 2.1 हो गई। आंकड़ों से साफ है कि परिवार नियोजन की तरफ मुस्लिम अब तेजी से मुड़ रहे हैं।

20 साल और फिर…
अय्यर लिखते हैं कि आय बढ़ने के साथ-साथ माता-पिता अपने सारे संसाधनों का फोकस कुछ बच्‍चों पर ही रखना चाहते हैं। पूरी दुनिया में यही ट्रेंड दिखा है कि जब लोगों की आय बढ़ी है तो प्रजनन दर कम हुई है। भारत में मुसलमान ज्‍यादा पिछड़े हुए हैं और उन्‍हें प्रति महिला 2.1 बच्‍चों की दर तक पहुंचने में वक्‍त लगेगा। प्‍यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, 1992 में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच प्रजनन दर का अंतर 1.1 बच्‍चे था जो 2015 तक 0.5 बच्‍चे रह गया। अगर यही रफ्तार रही तो दो दशक बाद यह अंतर खत्‍म हो जाना चाहिए।

क्या भारत में मुस्लिमों की आबादी घट रही?

पलायन नहीं है आबादी में हिस्‍सा बदलने की बड़ी वजह
माइग्रेशन को भी आबादी में किसी धर्म की हिस्‍सेदारी में बदलाव की वजह के रूप में देखा जाता है। प्‍यू की रिपोर्ट में पता चला कि पिछली जनगणना में 99% प्रतिशत भारत में ही पैदा हुए। यह भी कम लोग जानते हैं कि भारत में दूसरे देशों से जितने लोग पलायन करके आते हैं, उससे तीन गुना ज्‍यादा बाहर बस जाते हैं। 2015 में, भारत में जन्‍मे 1.56 करोड़ लोग विदेशों में रह रहे थे। इसके मुकाबले, विदेशों में जन्‍मे केवल 56 लाख लोग ही भारत में निवास करते हैं। संभव है कि यह आंकड़ा असल गिनती से बेहद कम हो, मगर यह ज्‍यादा है, इसके भी सबूत नहीं हैं।

आने से ज्‍यादा बाहर जाते हैं मुस्लिम
भारत में बाहर से आकर बसने वालों में सबसे ज्‍यादा बांग्‍लादेश (32 लाख), पाकिस्‍तान (11 लाख), नेपाल (5.4 लाख) और श्रीलंका (1.6 लाख) के लोग हैं। भारत में जितने मुस्लिम बसने आ रहे हैं, उससे ज्‍यादा बाहर जा रहे हैं। भारत से 35 लाख लोग UAE गए हैं, पाकिस्तान में 20 लाख और अमेरिका में 20 लाख लोग बस गए। भारत की आबादी में मुस्लिमों की हिस्‍सेदारी भले ही 14.2% हो मगर देश से बाहर जाकर बसने वालों में उनका हिस्‍सा 27% है। जबकि आबादी में 79% शेयर रखने वाले हिंदुओं की बाहर जाने वालों में 45% हिस्‍सेदारी है।

अय्यर लिखते हैं कि बीजेपी ने मुस्लिमों की आबादी में हिस्‍सेदारी और शरणार्थियों को लेकर जो सवाल उठाए हैं, उनमें दम नहीं हैं। अंग्रेजी में छपा उनका मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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