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हाइलाइट्स

  • लड़की पर आरोप, उसने शादी से किया था इनकार इसलिए उसके घर के सामने लड़के ने की थी आत्महत्या
  • पुलिस की दलील थी कि मृतक से रिलेशन में थी और शादी से इनकार किया इसलिए लड़के ने आत्महत्या की
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा- घर के बाहर जहर खाना अपने आप में लड़की से रिलेशन साबित नहीं करता

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आत्महत्या के लिए उकसाने का केस तभी बनेगा जब इसके लिए आरोपी का ऐक्टिव रोल हो और आरोपी का ऐसा एक्ट हो जिसमें मंशा हो कि पीड़ित आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाए। शीर्ष अदालत ने आरोपी लड़की के खिलाफ निचली अदालत में चल रहे आत्महत्या के लिए उकसाने के केस को खारिज कर दिया। लड़की पर आरोप था कि उसने लड़के से शादी से इनकार किया तो लड़के ने उसके घर के सामने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी।

पर्याप्त सबूतों के बिना केस चलाना न्याय का मजाक
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरएस रेड्डी की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने का केस तब तक नहीं बनता जब तक कि आरोपी ने इसके लिए पॉजिटिव तरीके से हरकत न की हो। ऐसे मामले में पर्याप्त मटीरियल के बिना आरोपी को ट्रायल फेस कराना न्याय का मजाक होगा।

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कोई जब आत्महत्या करता है तो आत्महत्या के लिए उकसाने का केस आरोपी के खिलाफ तभी बनता है जब ऐसा साक्ष्य हो कि उसने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में ऐक्टिव रोल निभाया हो और उसका पॉजिटिव रोल हो और ऐसी मंशा हो कि पीड़ित ऐसी स्थिति में आ जाए कि वह आत्हमत्या कर ले। आरोपी का ऐसा सीधा रोल होना चाहिए और मंशा होनी चाहिए कि पड़ित आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए।

उकसाने का केस तभी जब आरोपी का ऐक्टिव रोल हो
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गवाहों के बयान में है कि मृतक आरोपी लड़की के प्यार में था और कोई साक्ष्य नहीं है कि लड़की मृतक के साथ रिलेशन में थी। सिर्फ लड़की के घर के सामने पीड़ित का जहर खाकर आत्महत्या करना अपने आप में साबित नहीं करता है कि आरोपी लड़की किसी तरह से पीड़ित लड़के के साथ रिलेशन में थी।

आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में मेंटल प्रक्रिया होना जरूरी है। पीड़ित को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आरोपी ने ऐसा ऐक्ट किया हो जिसमें मंशा हो कि पीड़ित आत्महत्या कर ले। आरोपी ने जब तक आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में ऐक्टिव व पॉजिटिव रोल न निभाया हो तब तक उसे इसके लिए दोषी नहीं माना जा सकता है।

आत्महत्या के लिए उकसाने यानी आईपीसी की धारा-306 के तहत केस चलाने के लिए आरोपी का ऐक्टिव और सीधा रोल होना चाहिए कि पीड़ित आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए और उसके पास कोई चारा न बचे और वह आत्महत्या कर ले।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेकॉर्ड में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि आरोपी का किसी तरह से मृतक के साथ रिलेशन था और ऐसा साक्ष्य नहीं है कि आरोपी ने लड़के (मृतक लड़के) को आत्महत्या के लिए उकसाया हो। ऐसे में मेरठ की निचली अदालत में आरोपी लड़की के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने और अन्य धाराओं के तहत चल रहा केस खारिज किया जाता है।

क्या है यह पूरा मामला?
मृतक लड़के के भाई ने मेरठ के टीपी नगर थाने में शिकायत की थी कि 4 मई 2018 को उसके भाई को लड़की ने अपने घर बुलाया था। वहां उसके भाई के साथ लड़की और परिजनों ने गाली गलौच की और उसे जहर पिला दिया जिससे उसकी मौत हो गई।

पुलिस ने पहले हत्या और एससीएसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया। लेकिन, छानबीन के बाद पुलिस ने जो रिपोर्ट दी उसके बाद लड़की के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने और अन्य धाराओं में केस बनाया गया।

पुलिस के मुताबिक, आरोपी लड़की के घर लड़का गया था और उसके हाथों में जहर की शीशी थी। वह चिल्लाया था कि अगर उसने (लड़की) शादी से मना किया तो जहर खा लेगा और उसके घर के सामने जहर खा लिया। बाद में उसकी मौत हो गई।

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निचली अदालत ने लड़की के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। लड़की ने पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां से अर्जी खारिज होने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। याचिका में लड़की की ओर से कहा गया कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि लड़की ने लड़के को आत्महत्या के लिए मजबूर किया हो।

वहीं, अभियोजन पक्ष की दलील थी कि मृतक के साथ याचिकाकर्ता लड़की रिलेशन में थी और उसने शादी से मना किया था इसलिए लड़के ने आत्महत्या कर ली थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और लड़की की अपील स्वीकार करते हुए निचली अदालत में चल रहे मुकदमे को भी निरस्त कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट



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