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नई दिल्ली
अपनी नाबालिग बेटी के साथ दुष्कर्म करने के आरोपी शख्स को जमानत देने के राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि मामले में कम से कम अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज होने तक न्याय के हित में आरोपी का जेल में रहना जरूरी है। शीर्ष अदालत ने आरोपी को एक सप्ताह के अंदर सक्षम अदालत के समक्ष समर्पण करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने पीड़िता के पिता को जमानत देने के उच्च न्यायालय के पिछले साल सितंबर में दिये गये आदेश को चुनौती देने वाली लड़की की याचिका पर आदेश सुनाया।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि राज्य की ओर से पक्ष रख रहे वकील ने कहा है कि मामले में इस साल सितंबर में सुनवाई शुरू होगी और इसे जल्द से जल्द पूरा करने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा। पीठ ने 16 अगस्त के अपने आदेश में कहा, ‘इसलिए हमारा विचार है कि न्याय के हित में तथा कानून के अनुसार प्रतिवादी संख्या 2 (आरोपी) का कम से कम तब तक कैद में रहना जरूरी है जब तक अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान दर्ज नहीं हो जाते।’

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आरोपी के खिलाफ पिछले साल अप्रैल में भारतीय दंड संहिता और पॉक्सो कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गयी थी। लड़की ने आरोप लगाया था कि जब वह अपनी चौथी कक्षा की परीक्षा देने जा रही थी तो आरोपी ने उसका यौन उत्पीड़न किया और यह सिलसिला जारी रहा। शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जमानत देने के अपने आदेश में केवल इस पहलू पर गौर किया कि मामले में सुनवाई काफी लंबे समय तक चलेगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘हालांकि, यह इन निर्देशों के विरोधाभासी होगा कि पॉक्सो कानून के तहत मामलों को प्राथमिकता से निपटाना होगा। अन्य कोई कारण नहीं दिया गया।’



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