एमपी और एमएलए के खिलाफ पेंडिंग ईडी और सीबीआई के केसों में चार्जशीट में हुई देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ईडी और सीबीआई ने एमएलए और एमपी के खिलाफ जो केस दर्ज कर रखा है उसकी छानबीन धीमी रफ्तार में है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि ईडी और सीबीआई ने इस बात का कोई कारण नहीं बताया कि कई केसों में 10 साल बाद भी चार्जशीट दाखिल क्यों नहीं की गई। लेकिन साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि ज्यूडिशियरी की तरह जांच एजेंसी भी मैन पावर की कमी से जूझ रहा है।
सांसदों और एमएलए पर 121 सीबीआई के केस
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट सलाहकार ने रिपोर्ट पेश कर बताया गया कि 122 एमपी और एमएलए के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस है और मामले में ईडी जांच कर रही है। इनमें 51 सीटिंग और पूर्व एमपी हैं। सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया गया है कि सीबीआई ने 121 केस दर्ज कर रखा है। सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामले का निपटारा जल्द किए जाने संबंधित बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने बुधवार को सुनवाई की।
‘इतने पुराने केस में चार्जशीट क्यों नहीं’
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने सुनवाई के दौरान नाखुशी जताते हुए कहा कि रिपोर्ट अधूरी है। रिपोर्ट में ये नहीं बताया गया कि 10-15 साल से केसों में चार्जशीट दाखिल क्यों नहीं की गई। रिपोर्ट में 51 सांसद और पूर्व सांसदों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस है जबकि 71 एमएलए और एमएलसी के खिलाफ मामला है।
सांसदों के खिलाफ 19 केस और एमएलए के खिलाफ 24 ऐसे केस हैं जिनमें काफी देरी हुई है। वहीं 121 सीबीआई के केस हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मनी लॉन्ड्रिंग के 28 केसों में अभी भी छानबीन पेंडिंग है। 121 केस सीबीआई के पेंडिंग हैं उनमें से 58 केस ऐसे हैं जिनमें सजा उम्रकैद तक है। सीबीआई के 37 केसों में अभी भी छानबीन जारी है। 45 केसों में चार्जशीट भी दाखिल नहीं हुई है।
जजों की तरह जांच एजेंसी पर भी काम का बोझ
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि हम जांच एजेंसी को हतोत्साहित नहीं करना चाहते हैं। जांच एजेंसी पर भी जजों की तरह काम का काफी ज्यादा बोझ है। लेकिन साथ ही कहा कि आपकी रिपोर्ट काफी कुछ कहती है। मनी लॉन्ड्रिंग केसों में आपने कुर्की के अलावा कुछ नहीं किया। बिना चार्जशीट के ये सब बेकार है।
इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग केसों में विदेशों से जवाब का इंतजार है। मामले में ट्रायल जल्दी हो ये कहना आसान है लेकिन जज कहां हैं। मैन पावर मुख्य मुद्दा है। जांच एजेंसी भी इस मुद्दे से सफर कर रहा है। सभी को सीबीआई जांच चाहिए। चीफ जस्टिस ने हल्फे फुल्के अंदाज में कहा कि हम सब तुषार मेहता पर निर्भर हैं अगर ये पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराते हैं तो सुनवाई हो पाए।
जूडिशियरी की तरह जांच एजेंसी में मैन पावर की कमी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्यूडिशियरी की तरह एजेंसी भी मैनपावर की कमी से जूझ रही है। इस मामले में प्रैक्टिकल व्यू लेना होगा। सॉलिसिटर जनरल हमें इस बारे में ताएं। हम समझते हैं कि मैन पावर की कमी बड़ा मुद्दा है। ठीक हमारी तरह जांच एजेंसी भी मैनपावर की कमी से जूझ रही है। आप देखिये सभी कहते हैं कि सीबीआई जांच होनी चाहिए। मिस्टर मेहता हम आपसे इस मामले सहयोग की उम्मीद करते हैं। कोर्ट सलाहकार विजय हंसारिया ने कोर्ट को बताया कि जांच में देरी को मॉनिटर करने के लिए एक मॉनिटरिंग कमिटी बनाई जानी चाहिए। इसमें रिटायर सुप्रीम कोर्ट,हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस होने चाहिए। साथ ही ईडी और सीबीआई के डायरेक्टर भी इस कमिटी में हों। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तुषार मेहता से सुझाव देने को कहा है।
‘बिना हाई कोर्ट की मंजूरी के सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज केस वापस नहीं’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ क्रिमिनल केस बिना हाई कोर्ट की मंजूरी के वापस नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फिर कहा कि हम केस वापसी के विरोधी नहीं हैं लेकिन ज्यूडिशयरी द्वारा इसका परीक्षण करना होगा। हाई कोर्ट इसके लिए अगर परीक्षण करता है और वह संतुष्ट होता है कि केस वापस हो सकता है तो वह राज्य सरकार को इसके लिए इजाजत देगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस बाबत 10 अगस्त को आदेश भी पारित किया था।
मुजफ्फरनगर दंगा मामले में राज्य सरकार ने लिया 77 केस वापस
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट सलाहकार ने रिपोर्ट पेश कर बताया कि यूपी सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगा मामले में 77 केस वापस लिए हैं। इसमें कुछ केस उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान वाला है। कोर्ट सलाहकार ने बताया कि दंजा मामले में 510 केस दर्ज हुए थे। उनमें 175 में चार्जशीट हुई और 165 में फाइनल रिपोर्ट पेश कर दिया गया जबकि 77 केसों को वापस लेने का राज्य सरकार ने फैसला लिया।
‘एमएलए और एमपी की अपील पर जल्दी सुनवाई की अनिवार्यता न समझा जाए’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एमपी और एमएलए के खिलाफ पेंडिंग केसों के स्पीडी ट्रायल के ऑर्डर के बारे में ये न समझा जाए कि उनकी अपील पर आउट ऑफ टर्न अनिवार्य तौर पर जल्दी सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि हाई कोर्ट हमारे आदेश को इस तरह न समझें कि सांसदों और एमएलए की अपील पर आउट ऑफ टर्न सुनवाई होगी।