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नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट में सुपरटेक के एमराल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान नोएडा अथॉरिटी ने कहा कि प्रॉजेक्ट को नियम के तहत मंजूरी दी गई थी। साथ ही दलील दी कि प्रॉजेक्ट में किसी भी ग्रीन एरिया और ओपन स्पेस समेत किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है। उनके अधिकारियों ने कोई नियम नहीं तोड़ा है। मौजूदा कानून के तहत प्रॉजेक्ट के प्लान को मंजूरी दी गई है। वहीं फ्लैट बॉयर्स की ओर से दलील दी गई है कि बिल्डर ग्रीन एरिया को नहीं बदल सकता है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुपरटेक लिमिटेड की अपील पर फाइनल सुनवाई शुरू हुई है। हाई कोर्ट ने 2014 के आदेश में नोएडा स्थित ट्विन टावर को तोड़ने और अथॉरिटी के अधिकारियों पर कार्रवाई का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर अपील के दौरान रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में फाइनल सुनवाई शुरू हुई है अगली सुनवाई तीन अगस्त को होगी।

नोएडा अथॉरिटी की ओर से पेश वकील रवींद्र कुमार ने दलील पेश करते हुए कहा कि इस प्रॉजेक्ट में उनके अफसरों ने किसी भी बॉयलॉज की अनदेखी नहीं की है। साथ ही कहा कि हाउसिंग सोसायटी के ओरिजिनल प्लान और राइवाइज प्लान नियम के तहत ही मंजूरी दी गई है। जो भी मौजूदा कानून थे उसके हिसाब से प्रॉजेक्ट को मंजूरी दी गई है। वहीं नोएडा स्थित एमराल्ड कोर्ट ओनर रेजिडेंट्स वेलफेयर असोसिशन के वकील जयंत भूषण ने दलील दी कि एफएआर बढ़ाए जाने के बाद भी बिल्डर ग्रीन एरिया नहीं बदल सकती है। फ्लोर एरिया रेशियो बढ़ाए जाने का फायदा उठाते हुए दो बड़े टावर खड़े किए गए और ग्रीन एरिया पर अतिक्रमण किया गया।

भूषण ने दलील दी कि बायलॉज के मुताबिक बिल्डर ग्रीन एरिया बिना फ्लैट ओनर की सहमति के नहीं बदल सकता है। गार्डेन एरिया फ्लैट बॉयर्स को ब्रोसर में दिखाया गया था, साथ ही कंप्लीशन प्लान में भी था और उस पर 40 माले की बिल्डिंग बनाई गई। वहीं सुपरटेक की ओर से पेश सीनियर एडवोेकेट विकास सिंह ने कहा कि इस मामले में 1500 होम बॉयर्स से सहमति का सवाल नहीं था क्योंकि सेक्शन प्लान के काफी बाद आरडब्ल्यूए अस्तित्व में आया था। 16 मीटर की दूरी का जो क्राइटीरिया है, उसका मतलब दो ब्लॉक के बीच की दूरी से नहीं है बल्कि सिंगल अलग बिल्डिंग से है। मौजूदा प्लान में वह मौजूद है। नया कंस्ट्रक्शन किसी भी तरह से किसी फायर सेफ्टी प्रोटोकॉल का उल्लंघन नहीं है।

9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि सुपरटेक लिमिटेड बिल्डर कंपनी ने एमरल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट में होम बॉयर्स के पैसे रिफंड कर दिए हैं, सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद सुपरटेक के खिलाफ चल रहे कंटेप्ट केस को बंद कर दिया। एमरल्ड कोर्ट प्रॉजेक्ट के डिमोलिशन का आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया था। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था। कोर्ट सलाहकार गौरव अग्रवाल ने कहा था कि सवाल सिर्फ ये बचा हुआ है कि क्या वहां कंस्ट्रक्शन की इजाजत नोएडा अथॉरिटी ने जो दी थी और क्या वह कानूनी है या नहीं।



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