रतन टाटा आज बेहद खुश होंगे। शायद भावुक भी। रतन टाटा ने अपने जीवन में कामयाबी के कई पायदान चढ़े। लेकिन इस बार उन्होंने जो हासिल किया है, वह सबसे अलहदा है। खास है। उनके हाथ में एक ऐसी चीज वापस आई है, जो उनके पिता को बहुत अजीज थी। दिल के बहुत करीब थी। एयर इंडिया। सरकार के लिए घाटे का सौदा बन चुका यह महाराज अब टाटा की झोली में आने वाला है। एयर इंडिया के लिए टाटा सबसे ज्यादा बोली लगाने वाली बनकर उभरी है।
जेआरडी टाटा को एयर इंडिया से किस कदर इश्क था यह उन पर लिखी किताब का यह हिस्सा बताता है। शशांक शाह ने अपनी किताब ‘द टाटा ग्रुप- फ्रॉम टॉर्चबियरर टु ट्रेलब्लेजर्स’ में जेआरडी के एयर इंडिया से बेइंतहा मोहब्बत को भी बयां किया है। वह एयरलाइन के काउंटर को गंदा देखते, तो कपड़ा उठाकर उसे खुद साफ करने लगते और वहां मौजूद लोग शर्म में गड़ जाते। एक बार तो कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने अपनी कमीज के बाजू ऊपर चढ़ाए और प्लेन के टॉइलट में घुसकर क्रू मेंमर्स के साथ टॉयलट साफ करने में जुट गए। टाटा के लिए अपनी यह एयलाइन एक उड़नपरी सरीखी थी। वह उसका खयाल रखते। अंदर की साज-सज्जा से लेकर, एयर होस्टेस की ड्रेस तक में टाटा की नफीस पसंद झलकती।
एयर इंडिया की बुनियाद जेआरडी टाटा ने ही रखी थी। तब से लेकर इस कंपनी के खाते में तमाम उपलब्धियां दर्ज हैं। यह एशिया की पहली ऐसी एयरलाइन है जिसने सबसे पहले अपने बेड़े में जेट एयरक्राफ्ट को जोड़ा था। फरवरी 1960 में एयर इंडिया ने बोइंग 707 के रूप में पहले जेट एयरक्राफ्ट को जोड़ा था। उसका नाम रखा गया ‘गौरी शंकर’।
यह जेआरडी की ही देन थी कि जब चीन समेत एशिया की बड़ी शक्तियों के पास आधुनिक विमान नहीं थे तब हिंदुस्तान में उस वक्त के बेहतरीन एयरक्राफ्ट थे। 1955 में चीन के प्रधानमंत्री झाउ एलनाई को गुट-निरपेक्ष आंदोलन के कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए इंडोनेशिया जाना था। तब चीन के पास इतनी दूरी तक यात्रा करने लायक विमान नहीं थे। तब इंडियन एयलाइंस के ही एक विमान से चीनी प्रधानमंत्री और उनकी टीम ने हॉन्ग कॉन्ग से बांडुंग तक का सफर किया।
जेआरडी टाटा इंडियन एविएशन के पितामह थे। 1932 में उन्होंने टाटा एयरलाइंस की स्थापना की। 15 अक्टूबर 1932 को इसने पहली बार उड़ान भरी। उद्घाटन जेआरडी टाटा ने की। पहली फ्लाइट कराची से बॉम्बे की रही जो आगे चेन्नई तक गई। उस पहली फ्लाइट के पायलट थे नील विंसेंट जो जेआरडी टाटा के दोस्त भी थे। शुरुआत में कराची, अहमदाबाद, बॉम्बे, बेल्लारी और मद्रास के बीच हवाई सेवा शुरू हुई। 1939 तक त्रिवेंद्रम, दिल्ली, कोलंबो और लाहौर तक रूट का विस्तार हो गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1946 में टाटा एयरलाइंस को लिमिटेड कंपनी में बदल दिया गया। नई कंपनी का नाम एयर इंडिया लिमिटेड हो गया। 2 साल बाद टाटा ने 1948 में एयर इंडिया इंटरनेशनल लिमिटेड नाम से एक और कंपनी बनाई और अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवा शुरू की। तब बॉम्बे (मुंबई) और काहिरा, जिनेवा और लंदन के बीच हवाई सेवा शुरू हुई।
1953 में भारत सरकार ने सभी भारतीय एयलाइंस का राष्ट्रीयकरण कर दिया। घरेलू उड़ान सेवा के लिए इंडियन एयरलाइंस कॉर्पोरेशन और इंटरनेशनल सर्विस के लिए एयर-इंडिया इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन का गठन हुआ। 1962 में एयर इंडिया इंटरनेशनल का नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया गया। 2007 में सरकार ने इंडियन एयरलाइंस का एयर इंडिया में विलय कर दिया। अब घाटे से परेशान सरकार एयर इंडिया को बेचने जा रही है जिसके लिए सबसे ज्यादा बोली टाटा ने लगाई है। अगर सब कुछ सही रहा तो जल्द ही एयर इंडिया की घर वापसी होने जा रही है यानी पुराने मालिक के पास पहुंचने वाली है।