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कासरगोड
केरल के एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। यह याचिका अफगानिस्तान की पुल-ए-चरखी जेल में बंद अपनी बेटी और पोती को भारत लाने के लिए है। उन्होंने कोर्ट से मांग की है कि इस मामले में केंद्र सरकार को निर्देश जारी करें।

केरल के एर्णाकुलम के रहने वाले वीजे सेबेस्टिन फ्रांसिस ने याचिका में कहा कि उनकी बेटी के खिलाफ यहां एनआईए ने गैर-कानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम और अन्य आरोपों के तहत मामला दर्ज कर रखा है।

दामाद पर लगाया फंसाने का आरोप
फ्रांसिस ने कहा कि आरोप है कि उनके दामाद ने बेटी और अन्य आरोपियों के साथ एशियाई देशों के खिलाफ युद्ध छेड़ने में एक आतंकवादी संगठन को प्रचारित करने की साजिश रची थी।

2016 को भारत छोड़कर गई थी आयशा
याचिका में कहा गया है कि अफगानिस्तान में इस्लामी संगठन में शामिल होने के इरादे से पहली बंदी (बेटी) और दूसरी बंदी (नवासी) 30 जुलाई, 2016 को भारत से भाग गईं। इंटरपोल ने आयशा के नाम पर 22 मार्च 2017 को रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया था।

15 नवंबर को बेटी को करना पड़ा समर्पण
फ्रांसिस ने कहा कि अफगानिस्तान पहुंचने के बाद उनके दामाद युद्ध में शामिल हुए और मारे गए। युद्ध में सक्रिय रूप से शामिल नहीं रही बेटी और नवासी को 15 नवंबर, 2019 को कई अन्य महिलाओं के साथ अफगान सेना के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा।

IS जॉइन करने का है पछतावा
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उनकी बेटी को आईएस में शामिल होने के फैसले पर पछतावा है। वह भारत लौटना चाहती है और यहां निष्पक्ष सुनवाई चाहती है। आयशा ने यह बयान स्ट्रैटन्यूज ग्लोबल के साथ एक साक्षात्कार के दौरान दिया था, जिसे 15 मार्च, 2020 को YouTube पर ‘खोरासन फाइल्स: द जर्नी ऑफ इंडियन इस्लामिक स्टेट विडोज’ नामक एक डॉक्युमेंट्री के रूप में अपलोड किया गया था।

…तो बेटी को फांसी का डर
याचिका में कहा गया है, ‘अफगानिस्तान में आईएसआईएस की हार के बाद से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान के बीच युद्ध छिड़ सकता है, जिसमें उनकी बेटी जैसे विदेशी आतंकवादी लड़ाकों को मौत की सजा दी जाएगी।’



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