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हाइलाइट्स

  • कभी कांग्रेस छोड़कर शरद पवार ने बना ली थी अपनी अलग पार्टी
  • आज कांग्रेस की हालत पर बोले पवार- सच स्‍वीकार करना होगा!
  • शरद पवार ने कहा- कांग्रेस वो जमींदार जो हवेली नहीं बचा सका
  • स्‍थापना के बाद के सबसे बड़े संकट से जूझ रही है कांग्रेस पार्टी

नई दिल्‍ली
सोनिया गांधी की मुखालफत में 22 साल पहले कांग्रेस छोड़ने वाले शरद पवार ने बेहद सटीक टिप्‍पणी की है। पवार ने साफ कहा कि कांग्रेस को स्‍वीकार कर लेना चाहिए कि उसका वैसा दबदबा नहीं रह गया है। पवार ने कांग्रेस और जमींदारों की तुलना करके जो बात कही, वह सोनिया गांधी और राहुल को बुरी जरूर लग सकती है मगर है एकदम सच। पवार जो कह रहे हैं, दबी जुबान से कई कांग्रेसियों ने भी वही कहा है। देखना यह है कि कांग्रेस आलाकमान इस बात पर गौर करते हुए ऐक्‍शन में कब आता है।

पवार ने बयां कर दी कांग्रेस की हकीकत
राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता ने एक मीडिया ग्रुप के कार्यक्रम में कांग्रेस पर यह टिप्‍पणी की। पवार से कांग्रेस नेतृत्‍व को लेकर सवाल पूछा गया था, जवाब में पवार ने एक किस्‍सा सुनाया।

मैंने उत्तर प्रदेश के जमींदारों के बारे में एक कहानी सुनाई थी जिनके पास काफी जमीन और बड़ी हवेलियां हुआ करती थीं। लैंड सीलिंग ऐक्ट के कारण उनकी जमीन कम हो गई। हवेलियां बनी रहीं लेकिन उनके रखरखाव व मरम्मत की क्षमता (जमींदारों की) नहीं रही। उनकी कृषि से होने वाली आय भी पहले जैसी नहीं थी। कई हजार एकड़ से सिमटकर उनकी जमीन 15-20 एकड़ रह गई। जमींदार जब सुबह उठा, उसने आसपास के हरे-भरे खेतों को देखा और कहा कि सारी जमीन जो है, वो कभी उसकी थी लेकिन अब नहीं है।

शरद पवार, NCP नेता

पवार ने एक और अहम बात कही। उन्‍होंने एक तरह से अपनी पुरानी पार्टी को सुझाव देते हुए कहा, “एक समय था जब कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कांग्रेस थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह (सच) स्वीकार किया जाना चाहिए। यह (तथ्य) स्वीकार करने की मानसिकता (कांग्रेस के अंदर) जब होगी तब नजदीकी (अन्य विपक्षी दलों के साथ) बढ़ जाएगी।”

गलत तो नहीं हैं पवार, कांग्रेस आईसीयू में तो है ही
कांग्रेस आलाकमान भले ही इस बात को स्‍वीकार न करे, मगर पार्टी अपने इतिहास के सबसे बड़े संकटपूर्ण दौर से गुजर रही है। पार्टी के कई वरिष्‍ठ नेताओं ने खुलकर कहा है कि पार्टी को आत्‍ममंथन की जरूरत है। G-23 के नाम से मशहूर हो चुके नेताओं के समूह ने तो अंतरिम अध्‍यक्ष सोनिया गांधी को एक तल्‍ख चिट्ठी लिख डाली थी। पंजाब, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़, केरल… कई राज्‍यों में कांग्रेस आंतरिक कलह से जूझ रही है। चुनावी प्रदर्शन तो और भी खराब है।

2019 के चुनाव में पार्टी ने लोकसभा में बमुश्किल 50 सीटों का आंकड़ा पार किया। 2014 में तो कांग्रेस ने घटिया प्रदर्शन का रेकॉर्ड ही बना दिया था। विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस उतनी मजबूत नजर नहीं आई। केवल दो राज्‍यों (पंजाब, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़) में ही कांग्रेस की अपने दम पर सरकार है। महाराष्‍ट्र, झारखंड, तमिलनाडु में उसकी गठबंधन सरकार है।

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राज्‍य नया, स्क्रिप्ट वही
देश पर दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस आज महज तीन राज्‍यों में अपने बूते सत्‍ता में है। उन तीन राज्‍यों में भी पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही है। कांग्रेस को सबसे बड़ा खतरा बीजेपी से नहीं, जो ‘कांग्रेस मुक्‍त भारत’ की बात करती है। कांग्रेस को खतरा अपने भीतर चल रही लड़ाई से है। राज्‍य बदल जाता है मगर स्क्रिप्‍ट वही रहती है। कांग्रेस बनाम कांग्रेस की एक ऐसी लड़ाई जो पार्टी के अस्तित्‍व को ही खतरे में डाल रही है। शायद लगातार दो लोकसभा चुनाव और कई महत्‍वूपर्ण विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार ने नेतृत्‍व का संकट पैदा कर दिया है। पिछले दो साल से कांग्रेस के पास पूर्णकालिक अध्‍यक्ष तक नहीं है।

नहीं संभाला तो फिर बिखर जाएगी कांग्रेस
कांग्रेस ने केंद्र की सत्‍ता से बाहर होने केबाद कई नेताओं को खोया है। ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया और जितिन प्रसाद के नाम जेहन में ताजा हैं। दोनों ने बीजेपी का दामन थामा। इसके अलावा कृष्‍णा तीरथ, जीके वासन, चौधरी बिरेंदर सिंह, जयंती नटराजन, टॉम वडक्‍कन, रंजीत देशमुख, रीता बहुगुण जोशी, उर्मिता मांतोडकर, खुशबू सुंदर, पीसी चाको…. उन नेताओं की लिस्‍ट बड़ी लंबी है जो पार्टी की कार्यप्रणाली से नाखुश होकर छोड़ गए। अगर कांग्रेस ने जल्‍द ही कोर्स करेक्‍शन नहीं किया तो उसका फिर से बिखरना तय है।

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एक-एक कर इन राज्‍यों में ढीली हो रही पकड़
पंजाब में मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच खींचतान ने मुसीबत बढ़ाई है। राज्‍य में अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले आंतरिक कलह ने पार्टी की उम्‍मीदों को धूमिल किया है। छत्‍तीसगढ़ में मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल और वरिष्‍ठ मंत्री टीएस सिंह देव के बीच घमासान अभी चल ही रहा है। राजस्‍थान की कांग्रेस इकाई में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच हुए विवाद की छाया अब तक है। आंतरिक गुटबाजी के चलते ही कांग्रेस के हाथ से मध्‍य प्रदेश की सत्‍ता चली गई। राहुल गांधी के करीबी ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने साइडलाइन किए जाने के बाद पार्टी छोड़ दी।

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असम के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हराने वाला कोई और नहीं, उसी के पुराने सिपाही हिमंता बिस्‍व सरमा रहे जो अब बीजेपी में हैं और राज्‍य के नए मुख्‍यमंत्री हैं। केरल में भी कांग्रेसियों के बीच खींचतान चल रही है। कर्नाटक जो कि कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था, वहां अब बीजेपी की सरकार है। एक-एक करके कांग्रेस के हाथ से फिसलते राज्‍यों को देखकर तो शरद पवार ही वह बात सही ही लगती है कि किसी जमींदार के हाथों से धीमे-धीमे करके जमीन छिनती जा रही है।

खुद पवार ने भी की थी कांग्रेस से बगावत
1999 के नाटकीय घटनाक्रम में 12वीं लोकसभा भंग कर दी गई। 13वीं लोकसभा के लिए चुनावों की घोषणा हुई। तब कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथ में थी। पवार तब कांग्रेस में थे। उन्‍होंने पीए संगमा और तारिक अनवार के साथ मिलकर प्रस्‍ताव रखा कि किसी भारतीय को प्रधानमंत्री का उम्‍मीदवार बनाया जाए न कि इटली में पली-बढ़ीं सोनिया को। सोनिया ने जिस तरह से सीताराम केसरी को किनारे कर पार्टी पर नियंत्रण किया था, उसे देखते हुए ऐक्‍शन तय था।

कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) ने तीनों नेताओं को छह साल के लिए निष्‍कासित कर दिया। जवाब में पवार और संगमा ने मिलकर राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की नींव रखी। सोनिया से मनमुटाव के बाद उसी साल महाराष्‍ट्र में विधानसभा चुनाव के बाद NCP और कांग्रेस ने मिलकर गठबंधन सरकार बना ली। हालांकि पवार राज्‍य की राजनीति में नहीं लौटे। जब 2004 में कांग्रेस के नेतृत्‍व में यूपीए सत्‍ता में आया तो पवार केंद्र में मंत्री बने।

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कांग्रेस की हालत जमींदार जैसी: पवार



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