जाने-माने लेखक सलमान रुश्दी का अगला उपन्यास भारतीय कहानी पर आधारित होगा। देश से कई साल दूर रहने के बाद ब्रिटिश-अमेरिकी लेखक रुश्दी ने अगले नॉवेल के लिए भारत लौटने की योजना बनाई है। बुकर पुरस्कार से सम्मानित रुश्दी ने ‘टाइम्स लिटफेस्ट’ के एक सत्र में यह बात कही। उन्होंने बताया कि उनका अगला उपन्यास भारत आधारित होने की उम्मीद है। इसके लिए उन्हें भारत वापस आना होगा।
रुश्दी ने कहा, ‘पिछले दस वर्षों में मैंने ज्यादातर उपन्यास पश्चिमी देशों पर आधारित लिखे हैं। ये उपन्यास ज्यादातर अमेरिका आधारित हैं। थोड़े ब्रिटेन पर आधारित हैं। मुझे लगता है कि यह भारत वापस आने का समय हो सकता है। मुझे लगता है कि अगला नॉवेल एक भारतीय उपन्यास होगा।’
रुश्दी ने कहा, ‘यह बहुत शुरुआती चरण में है। इसलिए मुझे थोड़ा और आगे बढ़ने दीजिए, लेकिन ऐसा लग रहा है कि यह पूरी तरह से भारत पर आधारित होगा। इसका मतलब है कि मुझे भारत आना होगा। बहुत लंबा समय हो गया है।’
लेखक आखिरी बार दीपा मेहता की 2013 की फिल्म ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ के प्रचार के लिए भारत आए थे। यह फिल्म रुश्दी की इसी नाम की बुकर पुरस्कार सम्मानित पुस्तक पर आधारित थी।
रुश्दी की भारत यात्रा अक्सर विवादों में घिरी रही है क्योंकि उनकी 1988 की पुस्तक ‘सैटेनिक वर्सेज’ के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक आक्रोश पैदा हुआ था। इसके बाद उन्होंने देश का दौरा करने से परहेज किया। खुद को ‘बॉम्बे बॉय’ कहने वाले लेखक ने भारत वापस आने के बारे में बात करते हुए कहा कि धार्मिक आपत्तियों या सुरक्षा दिक्कतों ने देश में वापस आना काफी मुश्किल बना दिया।
74 वर्षीय लेखक ने कहा, ‘कभी-कभी मेरे लिए भारत आना काफी मुश्किल हो जाता है। इसे टालना पड़ सकता है। कभी-कभी यह धार्मिक आपत्तियों के कारण होता है या कभी-कभी इसलिए होता है कि मैं इस तरह के सुरक्षा अभियान में शामिल होता हूं जिससे मेरा वहां रहना वास्तव में असंभव हो जाता है।’ हालांकि, उन्होंने वादा किया कि एक बार दुनिया के थोड़ा खुलने पर वह वापस आएंगे।
रुश्दी ने कहा, ‘इसलिए यह मेरे लिए मुश्किल हो गया और यह दुखद है क्योंकि यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है। मैं वापस आऊंगा, मैं वापस आऊंगा। दुनिया को थोड़ा सा खुलने दीजिए।’
रुश्दी ने यहां 1980 के दशक में अपने ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ के लिए लिखने के समय को याद करते हुए कहा, ‘मुझे यकीन नहीं था कि अंग्रेजी में भारतीय लेखन अनिवार्य रूप से जीवित रहेगा। मैंने सोचा था कि आखिरकार लिखने के लिए और भी बहुत सी भाषाएं हैं और मुझे लगा कि शायद अंग्रेजी में भारतीय लेखन एक परंपरा की शुरुआत की बजाय एक अंत था। और वह गलत था, यह बहुत फलता-फूलता निकला।’ उन्होंने कहा कि भारतीय लेखकों की वर्तमान पीढ़ी हर संभव शैली और रूप में लिख रही है, जो बहुत अच्छी बात है।