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नई दिल्ली
पीएम मोदी आज एक महत्वपूर्ण डिप्लोमेटिक मिशन पर अमेरिका रवाना हो गए हैं। कोरोना महामारी के बीच PM का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब तालिबान आतंकियों ने अफगानिस्तान में सरकार बना ली है, पाकिस्तान कथित तौर पर ‘गजवा-ए-हिंद’ की साजिश बुन रहा है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर चीन की बुरी नजर है। आइए समझते हैं कि पीएम मोदी का यह दौरा किस तरह से महत्वपूर्ण है। 5 पॉइंट्स में समझिए पूरी बात।

1. मोदी-बाइडन की पहली मुलाकात
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मोदी की केमिस्ट्री काफी अच्छी रही। दोनों नेता एक साथ कई मंचों पर आए, हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे प्रोग्राम भी हुए। उससे पहले बराक ओबामा के साथ भी पीएम की गर्मजोशी देखी गई थी। अब अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन हैं और बीते 8 महीनों में उनके साथ पीएम मोदी की दो बार वर्चुअल मीटिंग हो चुकी है। यह मुलाकात अहम है क्योंकि पहली बार दोनों आमने सामने होंगे। बाइडन के साथ द्विपक्षीय बैठक होगी और भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से भी चर्चा होगी। ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच अफगानिस्तान संकट, कोरोना वैक्सीन, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अलावा आतंकवाद के मुद्दे पर भी बात हो सकती है। पीएम मोदी के दौरे पर पाकिस्तान और चीन समेत पूरी दुनिया की नजर है। अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को बाहर निकालने के फौरन बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को साफ संकेत दिया है कि उसका डबल गेम अब नहीं चलेगा। अमेरिका पाकिस्तान के साथ पिछले 20 वर्षों के संबंधों की समीक्षा करने जा रहा है। उधर, पाक पीएम इमरान खान सुबह-शाम अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के फोन के इंतजार में दुबले हुए जा रहे हैं।

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2. अफगानिस्तान में तालिबान सरकार
पड़ोसी मुल्क होने के कारण अफगानिस्तान के हर घटनाक्रम पर भारत की पैनी नजर है। पीएम मोदी ने कहा है कि अफगानिस्तान के हालिया घटनाक्रम का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत जैसे पड़ोसी देशों पर होगा। वहां अस्थिरता और कट्टरता कायम रही तो पूरी दुनिया में आतंकवादी और अतिवादी विचारधाराओं को बढ़ावा मिलेगा। SCO की बैठक में चीन और पाकिस्तान के सामने मोदी ने दो टूक कह दिया था कि अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन समावेशी नहीं है और बिना वार्ता के हुआ है। इससे भारत का नजरिया भी दुनिया के सामने स्पष्ट हो चुका है। भारत तालिबान की सरकार को फिलहाल मान्यता नहीं देने वाला। अमेरिका में राष्ट्रपति बाइडन के साथ मोदी की बातचीत में भी यह मुद्दा छाया रहेगा। भारत की पूरी कोशिश है कि अफगानिस्तान में न सिर्फ उसका निवेश सुरक्षित रहे बल्कि आतंकी गतिविधियों को भी बढ़ावा न मिले। पाकिस्तान की शह पर तालिबान कश्मीर में माहौल खराब करने की कोशिश कर सकता है।

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3. गजवा-ए-हिंद
खस्ताहाल अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, महंगाई से बेहाल जनता को दो जून की रोटी देने में नाकाम पाकिस्तान के पीएम इमरान खान मुसलमानों को बरगलाकर नई साजिश बुन रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के पीछे पाकिस्तान का बहुत बड़ा हाथ रहा है। शेरों का गढ़ कहे जाने वाले पंजशीर में पाकिस्तान की एयरफोर्स ने हमले किए। इधर, कश्मीर पर बुरी नजर रख रहा पाकिस्तान गजवा-ए-हिंद की बात काफी उछाल रहा है। कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के पीछे का उद्देश्य यही बताया जाता है। कट्टरपंथी हदीस की बात करते हुए यह बताते हैं कि इसमें गजवा-ए-हिंद का जिक्र है। यह सीधे तौर पर भारत के खिलाफ जंग की बात है और पैगंबर का जिक्र करते हुए यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि भारत के खिलाफ जिहाद इस्लाम का काम है। पाकिस्तान की सरकार और आईएसआई आतंकी संगठनों को पालती है और कट्टरपंथी मौलवी इसके लिए मुस्लिम युवाओं को बरगलाते हैं और जिहाद में मारे गए लोगों के जन्नत में 72 हूरें मिलने जैसी बातें की जाती हैं। पाकिस्तान अपने इस मकसद के लिए कश्मीर में छद्म युद्ध लड़ रहा है। वह 1947 से ही आतंकी संगठनों की मदद कर रहा है। मुंबई हमले के गुनहगार हाफिज सईद के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा गजवा-ए-हिंद की व्याख्या करते हुए कश्मीर की आजादी को दीन का हुक्म बताता है। अफगानिस्तान में आतंकी सरकार बनने के बाद पाकिस्तान के नापाक मंसूबे फिर से जोर पकड़ सकते हैं, जो कश्मीर में 370 के समाप्त होने के बाद कमजोर पड़े हैं। भारत पाकिस्तान की हरकतों पर अंकुश लगाना चाहेगा।

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4. अब बात चीन और हिंद प्रशांत क्षेत्र की
चीन का भारत ही नहीं, दुनियाभर के कई देशों और पड़ोसियों से विवाद चल रहा है। चीन की विस्तारवादी नीति कई देशों के लिए खतरा है क्योंकि ड्रैगन क्षेत्र में अपना दबदबा बनाना चाहता है। हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों वाले इस इलाके की महत्ता काफी अधिक है क्योंकि इस समय दुनिया में 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है। ऐसे में इस क्षेत्र में आने वाले बंदरगाह सबसे ज्यादा व्यस्त रहते हैं। यह क्षेत्र पेट्रोलियम उत्पादों को लेकर उपभोक्ता और उत्पादक दोनों देशों के लिए संवेदनशील बना रहता है क्योंकि अर्थव्यवस्था इसी पर आधारित होती है। वैसे तो हिंद प्रशांत क्षेत्र में कुल 38 देश आते हैं लेकिन चीन यहां अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका यह कभी नहीं चाहेगा। यही वजह है कि हाल के समय में दुनियाभर के देशों के बीच संबंध और समीकरण बदले हैं।

एक तरफ चार महत्वपूर्ण देशों के समूह क्वाड- भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान की भूमिका बढ़ रही है। चीन की हरकतों के मद्देनजर इस समूह का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों के हितों की रक्षा करना है। अमेरिका में पीएम मोदी इस समूह की बैठक में हिस्सा लेंगे।चीन की दादागिरी को रोकने के लिए अमेरिका ने एक और अहम डील की है। उसने ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी देने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। इस पर चीन की बौखलाहट भी दिख रही है।

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5. UN में मोदी की स्पीच
यूएन में 25 सितंबर को होने वाली पीएम नरेंद्र मोदी की स्पीच का पूरी दुनिया को इंतजार है। पीएम मोदी के संबोधन टू-द-पॉइंट्स और धारदार रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मंच से आतंकवाद पर पाकिस्तान को घेरा है तो चीन को भी सुनाया है जो सुरक्षा परिषद में आतंकियों को बचाने का काम करता है। PM ने न सिर्फ भारत के महत्व और चिंताओं की बात की है बल्कि घरेलू मोर्चे पर मिली उपलब्धियों से भी दुनिया को रूबरू कराया है। ऐसे में इस बार के उनके संबोधन पर दुनिया की नजरें हैं।

इस साल महासभा की डिबेट के केंद्र में कोविड-19 महामारी है। इस बार महासभा के सत्र में कोरोना के अलावा दुनिया में आर्थिक मंदी, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, अफगानिस्तान के ताजा हालात, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का मुद्दा छाया रह सकता है। पीएम मोदी वैश्विक मंच से अफगानिस्तान में तालिबान सरकार पर अपना रुख स्पष्ट कर सकते हैं। विकसित देशों की बात करें तो वे जोरदार तरीके से वैश्विक मंच पर अपनी बात रख लेते हैं लेकिन विकासशील देशों की प्रखर आवाज भारत ही बनता आ रहा है। ऐसे में पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर पूरी दुनिया की नजरें हैं।



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