संसद का मॉनसून सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। विपक्ष ने पेगासस, किसान बिल, किसान आंदोलन समेत तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की। संसद में प्रतिनिधियों ने खूब नारेबाजी की। लोकसभा स्पीकर बार-बार प्रतिनिधियों से कहते रहे कि चर्चा कीजिए हंगामा मत कीजिए। पूरे देश की जनता आपको देख रही है लेकिन इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ा। इस बार संसद के मॉनसून सत्र में महज 22 फीसदी काम हुआ। बाकी आगे की कहानी आप ख़ुद ही समझ सकते हैं।
आरक्षण हमेशा से ही हमारे देश में एक ज्वलंत मुद्दा रहा है। बुधवार को राज्यसभा में एक बेहद महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दे दी गई। अब राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) की अपनी सूची बनाने का अधिकार प्रदान हो गया। अब आप यहां पर सोच रहे होेंगे कि आखिरनकार इसका मतलब क्या है। इससे क्या फायदा होगा। देश के किसी न किसी प्रदेश में अक्सर आरक्षण की मांग उठती रहती है। वर्तमान में जो आरक्षण की सीमा है वो 50 फीसदी है जिसके कारण राज्य इससे अधिक आरक्षण नहीं दे पाते। सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों के आरक्षण बढ़ाने पर रोक भी लगा दी है। हालांकि कई राज्य हैं जहां इससे ऊपर आरक्षण दिया जा रहा है।
क्या है 50 फीसदी का चक्कर
आरक्षण की पचास प्रतिशत सीमा को समाप्त करने की विभिन्न दलों की मांग के बीच सरकार ने उच्च सदन में माना कि 30 साल पुरानी आरक्षण संबंधी सीमा के बारे में विचार किया जाना चाहिए। राज्यसभा में आज करीब छह घंटे की चर्चा के बाद ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ को शून्य के मुकाबले 187 मतों से पारित कर दिया गया। सदन में इस विधेयक पर विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज कर दिया गया। यह विधेयक लोकसभा में मंगलवार को पारित हो चुका है।
30 साल पहले के कानून में संशोधन
इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेन्द्र सिंह ने नरेंद्र मोदी सरकार के सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध होने की बात कही और यह भी कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा 30 साल पहले लगायी गयी थी और इस पर विचार होना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने जाति आधारित जनगणना की सदस्यों की मांग पर कहा कि 2011 की जनगणना में संबंधित सर्वेक्षण कराया गया था लेकिन वह अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) पर केंद्रित नहीं था। उन्होंने कहा कि उस जनगणना के आंकड़े जटिलताओं से भरे थे।
ओबीसी को मेडिकल और डेंटल में आरक्षण
कुमार ने कहा कि मोदी सरकार सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है और इस संबंध में सरकार ने जिस तरह से कदम उठाए हैं, उससे हमारी प्रतिबद्धता झलकती है। उन्होंने विधेयक लाए जाने की पृष्ठभूमि और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायलय के फैसले का भी जिक्र किया तथा कहा कि उसके बाद ही यह विधेयक लाने का फैसला किया गया। उन्होंने कहा कि मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों में ओबीसी आरक्षण के फैसले से समुदाय के छात्रों में उत्साह का माहौल है और उन्होंने एक दिन पहले ही छात्रों के एक समूह से मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि छात्रों के मन में विश्वास था कि मोदी सरकार ने अगर कोई निर्णय लिया है तो उसे पूरा किया जाएगा।
ओबीसी वालों को मिलेगा लाभ
मेडिकल ही नहीं बल्कि फेलोशिप, विदेशों में पढ़ाई के लिए सुविधाएं मुहैया कराए जाने पर जोर देते हुए वीरेंद्र कुमार ने कहा कि इस विधेयक से ओबीसी के लोगों को काफी लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि सरकार महान समाज सुधारकों पेरियार, ज्योतिबा फुले, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर, दीनदयाल उपाध्याय आदि द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और ऐसे व्यक्ति का उत्थान नहीं होता है तो विकास अधूरा है।
50 फीसदी सीमा को बढ़ाने पर विचार
इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को हटाए जाने, निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने और जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि जब तक 50 प्रतिशत की सीमा है, तब तक ओबीसी को पूरी तरह न्याय नहीं मिल पाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पांच मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है। वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 338 बी जोड़ा गया था जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है जबकि 342 ए किसी विशिष्ट जाति को ओबीसी अधिसूचित करने और सूची में बदलाव करने के संसद के अधिकारों से संबंधित है।
मराठा कोटा की मांग निरस्त
पांच मई को उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से महाराष्ट्र में मराठा कोटा प्रदान करने संबंधी कानून को निरस्त कर दिया था। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि संविधान 102वां अधिनियम 2018 को पारित करते समय विधायी आशय यह था कि यह सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची से संबंधित है।