पूर्व भारतीय राजनयिकों ने अफगानिस्तान में नई अंतरिम सरकार को ‘नई बोतल में पुरानी शराब‘ करार दिया है। बुधवार को उन्होंने कहा कि काबुल में गठित कैबिनेट ने तालिबान 2.0 को लेकर ‘मिथकों’ को दूर कर दिया है। अफगानिस्तान की नई सरकार पर पाकिस्तान की पुख्ता छाप है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है।
हालांकि, सरकार में शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई जैसे कुछ लोग भी शामिल हैं। इनका रुख भारत के प्रति मित्रवत रहा है। लेकिन, वह वरिष्ठता क्रम में नीचे हैं। उन्हें उप विदेश मंत्री बनाया गया है।
पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह, पूर्व राजनयिक मीरा शंकर, अनिल वाधवा और विष्णु प्रकाश ने कहा कि नई सरकार में चरमपंथी तत्व हैं। भारत को अपने ‘वेट एंड वॉच’ नजरिये को आगे भी जारी रखना चाहिए।
अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत राकेश सूद ने कहा कि काबुल में घोषित अंतरिम सरकार तालिबान 2.0 के बारे में किसी भी मिथक को दूर करती है। उन्होंने कहा, ‘यह स्पष्ट रूप से तालिबान 1.0 जैसी है जिस पर हर जगह आईएसआई की छाप है।’
अमेरिका में 2009 से 2011 के बीच भारत की राजदूत के तौर पर काम करने वाली शंकर ने कहा कि हमें इंतजार करना होगा और यह देखना होगा कि तालिबान की ओर से अपनाई गई नीतियों के संदर्भ में इस घटनाक्रम के भारत के लिए क्या मायने हैं।
उन्होंने कहा, ‘लेकिन, यह आशाजनक नहीं लगता और वास्तव में चिंता का विषय है। कारण है कि नई बोतल में पुरानी शराब सरीखा लग रहा है, नियुक्त किए गए कई चेहरे वही हैं (जो तालिबान की पिछली सरकार में थे)।’
शंकर ने कहा कि सिराजुद्दीन हक्कानी को गृह मंत्रालय के प्रमुख के रूप में नियुक्त करना चिंता का विषय है। जबकि तालिबान का उदारवादी चेहरा पेश करने वाले दोहा समूह को काफी हद तक हाशिए पर डाल दिया गया है।
इसका भारत के लिए झटके के तौर पर उल्लेख करते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में इसे (नए अफगान शासन को) देखने के बजाय जो अधिक महत्वपूर्ण था वह यह कि अफगानिस्तान के लोगों के लिए यह एक झटका होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार गठन पर जब चर्चा हो रही थी तब पाकिस्तान के इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (ISI) के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल फैज हामिद की मौजूदगी स्पष्ट रूप से दिखाती है कि उसमें पाकिस्तान का खुला हस्तक्षेप था।
वाधवा 2017 में सेवानिवृत्ति से पहले विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) के तौर पर सेवा दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि इसकी काफी उम्मीद थी कि सरकार ‘समावेशी’ सरकार नहीं होगी जैसा कि लोग सोच रहे थे।
उन्होंने बताया, ‘तालिबानी गुटों ने अपना संतुलन साधा है। कट्टरपंथी तत्व वहां व्याप्त हैं। अन्य को दरकिनार कर दिया गया है। इसलिए मूल रूप से दोहा गुट को दरकिनार किया गया है। इस तरह के संगठन से समावेशी सरकार की उम्मीद करना, विशेष तौर पर तब जब पाकिस्तान वहां पुरजोर दखल दे रहा हो, असल में वास्तविकता पर निर्भर नहीं था।’
वाधवा ने कहा, ‘जो कुछ हुआ है, वह अपेक्षित रूप से हुआ है और यह निश्चित रूप से भारत, अमेरिका और कुल मिलाकर पश्चिमी देशों के लिए एक झटका है। हालांकि, मुझे लगता है कि चूंकि ये देश (पश्चिम) अफगानिस्तान में कार्रवाई से बहुत दूर हैं, वे धीरे-धीरे समय के साथ इस परिस्थिति को स्वीकार कर उसके साथ रहने लगेंगे, लेकिन जिस देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, वह संभवत: भारत होगा, शायद बाद में ईरान और रूस जैसे देशों पर भी इसका असर हो लेकिन चीन ज्यादा प्रभावित नहीं होगा।’
उन्होंने जोर देकर कहा कि नई सरकार पर पाकिस्तान की आईएसआई की छाप है और इशारा किया कि गृह मंत्रालय हक्कानी गुट को मिलना अपने आप में काफी कुछ कहता है।
अलंकारिक तौर पर ‘नई बोतल में पुरानी शराब’ के इस मामले को स्वीकार करते हुए, उन्होंने कहा, ‘फिलहाल, हां हम इस तरह की सरकार को मान्यता नहीं देने जा रहे हैं लेकिन मुझे नहीं पता कि हमारे पास उनके साथ संचार का एक जरिया क्यों नहीं होना चाहिए।’
कनाडा और दक्षिण कोरिया में भारत के राजदूत रह चुके प्रकाश ने भी संचार के माध्यम खुले रखने पर समान विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इसका मतलब मान्यता या समर्थन देना नहीं है बल्कि इसका मतलब है कि हमारे पास संचार का एक जरिया है जिससे पाकिस्तान को मनमानी करने की छूट न रहे।
प्रकाश ने कहा कि चौंकाने वाली बात यह है कि दोहा समूह को भी बाहर कर दिया गया क्योंकि उन्हें पर्याप्त कट्टरपंथी नहीं माना जाता और कहा कि रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना के संदर्भ में) बता रहा है कि करना क्या है।
उन्होंने कहा, ‘जब आपके पास बामियान बुद्ध की प्रतिमा को गिराने का आदेश देने वाले मुल्ला हसन अखुंद या भारतीय दूतावास पर हमले के लिए जिम्मेदार सिराजुद्दीन हक्कानी जैसे लोग हों जो सिर्फ बंदूक की भाषा समझते हों तो मैं कहूंगा कि बोतल पुरानी है और शराब भी पुरानी ही है।’ उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की छाप नई सरकार पर स्पष्ट है।
संप्रग-1 सरकार के दौरान विदेश मंत्री रहे और पाकिस्तान में भारत के राजदूत समेत कई वरिष्ठ राजनयिक पदों पर रह चुके सिंह ने कहा कि बामियान बुद्ध को नष्ट करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति और इस दौरान जुड़े चरम इस्लामवादी सरकार का हिस्सा हैं।
सिंह ने कहा, ‘मुझे लगता है कि कुछ महीनों के लिए हमें बस इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए क्योंकि हम नहीं जानते कि क्या कार्रवाई होगी। कोई नहीं जानता कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं।’
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान आर्थिक तौर पर और हथियारों से तालिबान की मदद करता है लेकिन उसे समस्या का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि वे आगे चलकर उसके खिलाफ खड़े हो सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘हम उनके साथ अच्छे संबंध रखना चाहेंगे लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि उनकी इसमें दिलचस्पी है।’
पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने मंगलवार को कहा कि भारत, अफगानिस्तान में बनी नई सरकार के साथ काम नहीं कर सकता और उसे नहीं करना चाहिए। सिन्हा ने ट्वीट किया, ‘भारत अफगानिस्तान में तालिबान की इस सरकार के साथ काम नहीं कर सकता और उसे नहीं करना चाहिए।’