नेशनल कंज्यूमर फोरम में वेकेंसी न भरे जाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी भी जाहिर की है। अदालत ने कहा कि तमाम वादों के बावजूद वेकेंसी नहीं भरी गई। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वह वैकेंसी को आठ हफ्ते में भरें। केंद्र सरकार को भी सुप्रीम कोर्ट ने आठ हफ्ते का वक्त दिया है कि वह नेशनल कंज्यूमर फोरम में जो तीन पद खाली हैं उसे भरें।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 के विधायी प्रभाव को देखे। अदालत ने कहा कि सरकार सिर्फ कानून बनाने के पीछे भागती है लेकिन लोगों पर इसके प्रभाव के बारे में नहीं देखती। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में जिला, राज्य कंज्यूमर फोरम में स्टाफ और मेंबर की कमी के मामले में संज्ञान ले रखा है।
मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि हाल में ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट 2021 बना है उसके आलोक में नियुक्ति होगी। अदालत ने कहा कि नेशनल कंज्यूमर फोरम में जो कुल वैकेंसी है उसमें आपने जब 4 की नियुक्ति की है तो तीन और नियुक्ति क्यों नहीं हो सकती है। आपने पहले भी कहा था कि नेशनल कंज्यूमर फोरम की वेकेंसी भरी जाएगी लेकिन नहीं भरी गई। उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत पर सुनवाई नहीं हो पा रही है क्योंकि फोरम में वेकेंसी के कारण केस पेडिंग है। हम इस बात का कोई कारण नहीं देख रहे हैं कि केंद्र सरकार को वैकेंसी भरने के लिए और वक्त क्यों चाहिए।
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को भी खिंचाई की कि उन्होंने अपने हलफनामा में कंज्यूर फोरम में वैकेंसी का ब्यौरा नहीं दिया है। कोर्ट सलाहकार गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि कुछ राज्यों ने कंज्यूमर प्रोटेक्ट एक्ट को नोटिफाई भी नहीं किया है। बेंच ने तब कहा कि अगर राज्य सरकारों ने दो हफ्ते में रील्स को नोटिफाई नहीं किया तो केंद्र सरकार के मॉडल रूल्स राज्यों पर लागू हो जाएंगे। अदालत ने कहा कि कंज्यूमर कोर्ट में बड़ी संख्या में वैकेंसी है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजयों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वह दो हफ्ते में वैकेंसी के बारे में विज्ञापन दे। जिन राज्यों ने अभी तक सेलेक्शन कमिटी नहीं बनाई है वह चार हफ्ते में कमिटी का गठन करें।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि आठ हफ्ते में वेकेंसी को भरा जाए और अगर आदेश का पालन नहीं होता है तो फिर संबंधित राज्य के चीफ सेक्रेटरी और केंद्र सरकार के कंज्यूमर मामले के सेक्रेटरी अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने पेश होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की वर्चुअल सुनवाई के दौरान उक्त आदेश पारित किया है।
सुप्रीम कोर्ट को कुछ राज्यों की ओर से कहा गया कि सदस्यों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार से सलाह करना होता है। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को नकार दिया और कहा है कि चार मेंबरों से ज्यादा की नियुक्ति में केंद्र से सलाह का प्रावधान किया गया है। कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की धारा-42 कहती है कि अगर चार सदस्य से ज्यादा की नियुक्ति है तो फिर केंद्र से सलाह की दरकार है। जो विधायी प्रावधान है उसके तहत प्रेसिडेंट और चार सदस्य की नियुक्ति करनी है और जब चार से ज्यादा मेंबरों की नियुक्ति करनी है तभी केंद्र से मशविरा की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में गोपाल शंंकरनारायन को मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था और राज्यों से कहा है कि वह वेकेंसी के बारे कोर्ट सलाहकार शंकरनारायन को अपडेट स्थित के बारे में अवगत कराएं।