अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरी को बुधवार को भू-समाधि दी गई। गिरी ने अपने सुइसाइड नोट में यह इच्छा जताई थी कि उन्हें बाघंबरी मठ में ही उनके गुरु की समाधि के पास भू-समाधि दी जाए। उनके निर्देश के अनुसार दिवंगत महंत का अंतिम संस्कार बाघंबरी मठ में नींबू के नीचे उन्हें समाधि देकर किया गया।
नरेंद्र गिरी को भू-समाधि देने से पहले फूलों से सजे रथ पर उन्हें गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम तट पर ले जाया गया। यहां उन्हें स्नान कराया गया, जिसके बाद संगम तट पर स्थित बड़े हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए ले जाया गया। गिरी लेटे हनुमान जी मंदिर के भी महंत थे। इसके बाद उनके पार्थिव शरीर को अल्लापुर स्थित बाघंबरी मठ ले जाया गया। यहां पहले से खोदे गए समाधि स्थल पर विधि-विधान से पूजा की गई।
जो नींबू का पेड़ लगाया था, उसी के नीचे ली समाधि
जिस नींबू के पेड़ को महंत नरेंद्र गिरी ने लगाया था, ठीक उसी के नीचे उन्हें मंगलवार को भू-समाधि दी गई। इस दौरान वहां माहौल बेहद नम था। गुरु को समाधि देते उनके शिष्यों की आंखों में आंसुओं की धार फूट आई। कई समाधि के दौरान रोते और अपने आंसू पोछते हुए नजर आए। नरेंद्र गिरी को समाधि देने के लिए नींबू के पेड़ के पास एक चौकोर सा गहरा गड्ढा खोदा गया था। गड्ढे की एक दीवार को खोदकर एक छोटा सा कमरा बनाया गया था। यहीं पर नरेंद्र गिरी ब्रह्मलीन हुए। इस प्रक्रिया को पूरी तरह से गुप्त रखा गया था। समाधि के वक्त चारों ओर चादर से पर्दा कर दिया गया। इसके साथ ही मंत्रोच्चार का सिलसिला शुरू हो गया।
समाधि स्थल पर नमक के बोरे बिछाए गए थे। समाधि से पहले नरेंद्र गिरी के कपड़े बदले गए, जिसके लिए स्थल को चारों तरफ से कपड़े से ढक दिया गया था। फिर शास्त्र विधि के अनुसार महंत के शरीर का शृंगार किया गया। इसके बाद समाधि की प्रक्रिया पूरी की गई। मौके पर मौजूद तमाम संतों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी। भू-समाधि पार्थिव शरीर को सिद्धासन में बैठाकर दी जाती है। बाघंबरी मठ में स्थित एक साधु ने बताया कि महंत नरेंद्र गिरी को पालथी मारकर बैठाया गया है।
कैसे होता है संतों का अंतिम संस्कार
नरेंद्र गिरी का अंतिम संस्कार संत परंपरा के अनुसार किया गया। सनातन मत के अनुसार, संत परंपरा में तीन तरह से संस्कार होते हैं। इनमें दाह संस्कार, भू-समाधि और जल समाधि शामिल है। कई संतों के दिवंगत हो जाने के बाद वैदिक तरीके से उनका दाह संस्कार किया गया है। कई संतों ने जल समाधि भी ली है लेकिन नदियों में प्रदूषण आदि को ध्यान में रखते हुए अब जल समाधि का प्रचलन कम हो गया है। ऐसे में वैष्णव मत में ज्यादातर संतों को भू-समाधि देने की ही परंपरा है।
नरेंद्र गिरी को प्रयागराज के बाघंबरी मठ में ही भू-समाधि दी जाएगी। इसके लिए उन्होंने अपने सुइसाइड नोट में खासतौर पर लिखा है और उस जगह के बारे में भी बताया है, जहां ब्रह्मलीन होने के बाद उन्हें समाधि दी जाए।
कैसे होती है भू-समाधि
भू-समाधि के लिए सबसे पहले जगह तय किया जाता है। फिर विधि-विधान से समाधि को खोदा जाता है। वहां पूजा-पाठ किया जाता है और गंगाजल तथा वैदिक मंत्रों से उस जगह का शुद्धीकरण किया जाता है। भू-समाधि में दिवंगत साधु को समाधि वाली स्थिति में ही बैठाया जाता है। बैठने की इस मुद्रा को सिद्ध योग मुद्रा कहा जाता है। बताते हैं कि संतों को समाधि इसलिए दी जाती है ताकि बाद में उनके अनुयायी अपने आराध्य-गुरु का दर्शन और अनुभव उनकी समाधि स्थल पर कर सकें।
कितना पुराना है भू-समाधि का इतिहास
भारत में कई संतों ने भू-समाधि ली है। माना जाता है कि यह परंपरा 1200 साल से भी ज्यादा पुरानी है। आदिगुरु शंकराचार्य ने भी भू-समाधि ली थी और उनकी समाधि केदारनाथ में आज भी मौजूद बताई जाती है। इसके अलावा प्रसिद्ध देवरहा बाबा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने जल समाधि ली थी। हरिद्वार में शांतिकुंज के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा की समाधि भी सजल श्रद्धा स्थल पर मौजूद है।
महंत नरेंद्र गिरि ने ली भू-समाधि