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हाइलाइट्स

  • मुनव्वर राना ने कहा, तालिबान ने भी अपने मुल्क को आजाद करा लिया तो क्या दिक्कत है
  • राना ने यह भी कहा, अपनी जमीन पर कब्जा तो किसी भी तरह से किया जा सकता है
  • मुनव्वर राना बोले, तालिबान को आतंकवादी या आतंकी नहीं कह सकते, उन्हें अग्रेसिव कहा जा सकता है

लखनऊ
अफगानिस्तान पर तालिबान (Afghanistan Latest News) ने कब्जा कर लिया है। लड़ाके खुलेआम बंदूक लेकर घूम रहे हैं। महिलाओं-बच्चों में दहशत है। अब अफगानिस्तान में इस्लामी सरकार की बात हो रही है। कहा गया है (Taliban News) कि लड़कियां स्कूल-यूनिवर्सिटीज जा सकती हैं लेकिन हिजाब पहनकर पढ़ने जाना होगा। कई अफगानी नागरिक भारत भी पहुंचे। हालातों को देखकर बिलख-बिलखकर रो रहे थे। इस बीच भारत में कुछ चर्चित लोगों ने तालिबान से ‘हमदर्दी’ जाहिर की है।

ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता सज्जाद नोमानी, सपा सांसद शफीकुर्रहमान और अब चर्चित उर्दू शायर मुनव्वर राना ने भी बयान दिया है। सांसद शफीकुर्रहमान पर केस दर्ज हुआ तो उन्होंने यू-टर्न ले लिया। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की तरफ से हिमांशु तिवारी ने मुनव्वर राना से बात की है।

सवाल: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी, सपा सांसद शफीकुर्रहमान ने तालिबान के समर्थन में बयान दिया, इस पूरे मामले में आप क्या कहेंगे?
जवाब: तालिबान ने सही किया है। अपनी जमीन पर कब्जा तो किसी भी तरह से किया जा सकता है।

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सवाल: तालिबान तो एक आतंकी गुट है। असलहों के दम पर देश में कब्जा कर लेना, लोग मजबूर हैं कि उन्हें हवाई जहाज के पहियों में लटककर वहां से निकलने की कोशिश करनी पड़ रही है।
जवाब: इसमें बहुत दूर तक जाना पड़ेगा। इसको हिंदुस्तानी होकर नहीं सोच सकते हैं। इसको उस हिंदुस्तान की तरह सोचा जाए जो अंग्रेजों की गुलामी में था, जिन्होंने आजाद कराया था। उन्होंने भी अपने मुल्क को आजाद करा लिया तो क्या दिक्कत है।

सवाल:तालिबान के प्रवक्ता का बयान आया कि लड़कियां पढ़ने जाएंगे लेकिन हिजाब पहनना जरूरी है। बाकी रही बात नौकरी की तो अब बनने वाली सरकार तय करेगी।
जवाब: बिलकुल, इसमें गलत क्या है। हिंदुस्तान का तो अफगानिस्तान दोस्त रहा है। हजारों साल से यह दोस्ती चली आ रही है। उनका वीजा नहीं पड़ता है। उनको हर तरीके की यहां छूट रहती है। बाकी रही बात अफगानिस्तान की तो कभी अमेरिका कब्जा करता है, कभी रूस परेशान करता है। बाकी इस पूरे मामले में वक्त का इंतजार करना चाहिए। दोस्त दुश्मन का फैसला नहीं होता है। जिस मुल्क से हमारे लंबे वक्त से ताल्लुकात रहे हों या यूं कहें कि कभी वो हिंदुस्तान का ही हिस्सा रहा हो। तालिबान का जो रवैया है उन्हें आतंकवादी या आतंकी नहीं कह सकते हैं। हां, उन्हें अग्रेसिव कहा जा सकता है।

सवाल: उनके पास हक्कानी जैसा आतंकी नेटवर्क है।
जवाब: आतंकी तो आप कह रहे हैं ना। आप खुल्लमखुल्ला यह कहते हैं कि हर मुसलमान आतंकी नहीं होता लेकिन हर आतंकी मुसलमान होता है। आपके यहां तो आतंकी की परिभाषा निकाली ही नहीं गई है कि कौन आतंकी है कौन आतंकी नहीं है।

सवाल: तो क्या आपके मुताबिक तालिबान आतंकी संगठन नहीं है?
जवाब: हो सकता है आतंकी लेकिन वह अपने मुल्क के लिए लड़ रहे हैं तो आप उन्हें आतंकी कैसे कह सकते हैं।

सवाल: लोगों को डरा रहे हैं, नए उम्र के लड़के तालिबान के डर से भारत आ रहे हैं, लड़कियां रो रही हैं कि महिलाएं मार दी जाएंगी, ये बात अफगानी ही कह रहे हैं।
जवाब: ये वो लोग हैं जो अशरफ गनी के साथ थे, जो अमेरिका के साथ लड़ रहे थे, ऐश कर रहे थे। आम अफगानी क्यों वहां से भागेगा।

सवाल: इनमें कई लड़के ऐसे हैं जिनको ना तो ये पता है कि अमेरिका के साथ रहना क्या होता है और अमेरिका के बगैर होना क्या होता है।
जवाब: हम हिंदुस्तानी जल्दबाजी में फैसले बहुत करते हैं। अफगानिस्तान, हिंदुस्तान का दोस्त रहा है। बहुत फिल्में वगैरह बनी हैं…काबुलीवाला आदि। इसमें कुछ भी कहने के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

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