Crime News India


हाइलाइट्स

  • जब मुलायम सिंह यादव ने कहा, आप लोग मेरे पैर क्यों छूते हैं?
  • लगभग 200 IAS अधिकारियों को संबोधित करते हुए मुलायम ने कही थी यह बात
  • पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमणियन ने अपने किताब में इसका जिक्र किया

टीएसआर सुब्रमणियन (पूर्व कैबिनेट सचिव, भारत सरकार)
केके दास साठ के दशक में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव थे और 70 के दशक में रिटायर हुए। जब वह केंद्र में सूचना और प्रसारण मंत्रालय में सचिव थे, तब उमाशंकर दीक्षित उनके मंत्री थे। दीक्षित जी उसके बाद जल्दी ही गृहमंत्री बन गए। तब मंत्री के स्टाफ-अफसर राजगोपाल ने, जो कि मेरे प्रिय मित्र थे, दीक्षित और केके दास के बीच हुए पत्राचार से संबंधित एक फाइल मुझे दिखाई थी। अपने रिटायरमेंट पर दास ने दीक्षित जी को एक पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने दीक्षित जी को उनकी अविरल सद्भावना के लिए धन्यवाद देते हुए उनसे औपचारिक विदा मांगी थी। फाइल में दूसरा पत्र गृहमंत्री द्वारा दास को भेजे गए पत्र की प्रतिलिपि के रूप में था, जिसमें दास के पत्र की प्राप्ति की स्वीकृति थी। साथ ही एक पैरा और जुड़ा हुआ था, जिसमें उनसे पूछा गया था कि क्या वह राज्यपाल बनने के लिए तैयार हैं? आमतौर पर विभिन्न राज्यों के राज्यपालों की नियुक्तियों के प्रस्ताव गृहमंत्री की ओर से ही आते हैं। यह दास के लिए कोई ऐसा-वैसा तोहफा नहीं था। दीक्षित जी ने फाइल पर यह टिप्पणी भी दे रखी थी कि इस विषय पर उन्होंने प्रधानमंत्री से विचार-विमर्श कर लिया है। अपने उत्तर में (जो उस फाइल में उपलब्ध था) दास ने लिखा कि वह गृहमंत्री के इस कृपाभाव से गदगद हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी जोड़ा कि ‘मैंने सरकार की सेवा में लगभग चालीस वर्ष बिताए हैं। इस समयांतराल में मैंने अपनी दो प्रिय वस्तुओं की अनदेखी की है- एक मेरी पत्नी और दूसरा मेरा गुलाबों का बगीचा। जीवन के बचे-खुचे दिन मुझे अपनी पत्नी और गुलाब के फूलों की संगति में व्यतीत करने की अनुमति देते हुए मुझ पर अपनी कृपा बनाए रखें।’

नाराजगी किससे, नुकसान किसका?
वीपी सिंह केंद्र में वाणिज्य मंत्री थे। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) में उन्होंने मेरी कार्यप्रणाली को नजदीक से देखा और महसूस किया कि मैं जिनेवा में राजदूत के रूप में भारत के हितों का सफल प्रतिनिधित्व कर सकता हूं। वहां से लौटते ही वह इंदिरा गांधी से मिले और मुझे पुनः जिनेवा की नियुक्ति देने की सिफारिश की। बाद में उन्होंने क्षमा याचना सहित मुझे बताया कि उनके प्रयत्न असफल हो गए और वह ये नहीं समझ सके कि ऐसा क्यों हुआ? किंतु मैं बाद में समझ गया कि ऐसा क्यों हुआ। मुझे प्रधानमंत्री कार्यालय के एक सूत्र से पता चला कि इंदिरा गांधी मेरे नाम की वजह से भ्रमित हो गई थीं। उत्तरप्रदेश संवर्ग के एक अन्य अधिकारी मनोहर सुब्रमणियन से वह नाराज थीं, जिनके बारे में श्रीमती गांधी को किसी मामले में गलत सूचना दे दी गई थी। मेरा नाम भी उन्हीं से मिलता-जुलता होने कारण उनकी नाराजगी का नुकसान मुझे उठाना पड़ा। इससे पहले ऐसे ही मिलते-जुलते नाम का फायदा मुझे हो चुका था; सो मामला बराबर हो गया। खैर, वीपी सिंह ने इंदिरा गांधी के इनकार के बाद बैंकॉक स्थित एक एजेंसी ESCAP के महासचिव और जिनेवा स्थित ITC के चेयरमैन को एक-एक पत्र लिखकर मेरी उन एजेंसियों में नियुक्ति की सिफारिश की। मैं इन पत्रों के बारे में एकदम भूल गया था। एक दिन अचानक एक अद्भुत संयोग हुआ कि मुझे दोनों जगहों से एक साथ ही आमंत्रण मिला और मैं इस उलझन में फंस गया कि बैंकॉक जाऊं या जिनेवा। वाणिज्य मंत्रालय में मेरा कार्यकाल समाप्त होने जा रहा था। मैं कहीं भी जाने को तैयार था। यहां तक कि मैं जौनपुर भी बड़ी प्रसन्नता से जाने को तैयार था, लेकिन अंततः मैंने खुद को जिनेवा में पाया।

22 नवंबर को एसपी में अपनी पार्टी का विलय कर सकते हैं शिवपाल, लखनऊ में बड़े शक्ति प्रदर्शन की तैयारी
‘सेवा सप्ताह’ में मिला जवाब
जिनेवा में मेरी पदावधि के दौरान मुझे भारत से आए आगंतुकों के एक नियमित प्रवाह से रू-ब-रू होना पड़ता था। उस समय मैं भारत से आए अधिकारियों से मिलकर निराश हुआ। मुझे यह भी महसूस हुआ कि ईमानदारी और कार्यक्षमता के संदर्भ में पुराने समय के मुकाबले मानकों में अब अधिक गिरावट आ गई है। 1990 में मैं जिनेवा से भारत इस धारणा को लेकर ही लौटा। मुझे अनुसंधान करना था कि कैसे ये होनहार और कर्त्तव्यनिष्ठ नौजवान अधिकारी कुछ वर्षों के बाद निम्न स्तरीय दिखाई पड़ने लगते थे। जिनेवा से लौटने के बाद मैंने अपने गृह काडर यूपी के सेवा सप्ताह में भाग लिया। ‘सेवा सप्ताह’ तीन दिन तक चलने वाला एक वार्षिक उत्सव है। राज्य के सभी आईएएस एक विस्तारित सप्ताहांत पर एकत्र होते हैं।

Mulayam

आप मेरे पैर क्यों छूते हैं?
उस वर्ष मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री की हैसियत से मुख्य अतिथि थे और उन्होंने बैठक में सम्मिलित हुए लगभग दो सौ आईएएस अधिकारियों को संबोधित किया। उन्होंने जो कहा, उसने वास्तव में मेरी नींद उड़ा दी। उनके द्वारा कही हुई पंक्तियां इस प्रकार हैं: ‘आपके पास श्रेष्ठ दिमाग और शिक्षा है; आपमें से कुछ बड़े विद्वान हैं; कुछ तो ऐसे विद्वान हैं जिनके पास नोबेलप्राइस जीतने का मस्तिष्क है; आप जिस ओर भी अपना ध्यान लगा दें, उसी क्षेत्र में आप सफल हो सकते हैं; आपके पास बढ़िया नौकरी है; आप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकते हैं; और आप सब का समाज द्वारा आदर किया जाता है। फिर आप मेरे पास आकर मेरे पैर क्यों छूते हैं? आप मेरे पास आकर मेरे जूते क्यों चाटते हैं? अपने व्यक्तिगत हित के लिए आप मेरे पास क्यों आते हैं? यदि आप ऐसा करोगे तो मैं आपकी इच्छा के अनुसार कार्य कर दूंगा और फिर आपसे अपनी कीमत वसूल करूंगा।’ यह एक विस्मयकारी वक्तव्य था; क्योंकि इसने बड़े सारगर्भित रूप में स्थिति का सारांश प्रस्तुत कर दिया और उस ‘स्टील फ्रेम’ के ढहने का सटीक कारण बता दिया।

( स्वर्गीय सुब्रमणियन की पुस्तक ‘बाबूराज और नेतांचल’, प्रकाशक- राजकमल से साभार)

Mulayam-M



Source link

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *