हाइलाइट्स
- कन्हैया कुमार 2015 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बने थे
- देशविरोधी नारेबाजी के वीडियो में कन्हैया पर लगे थे आरोप
- कोर्ट से हुए बरी, 2019 में बिहार से लोकसभा का चुनाव लड़ा
- बेगूसराय सीट पर बीजेपी के गिरिराज सिंह से मिली थी शिकस्त
लाल सलाम कहने वाले कन्हैया कुमार को अब हाथ के साथ में मंजिल दिख रही है। वामपंथ की लाइन से विपरीत चलते हुए अब वह सियासत की नई धारा में गोता लगाने जा रहे हैं। कन्हैया कुमार के लिए कांग्रेस में जाना कितना सहज होगा? जिस विचारधारा को लेकर कन्हैया कुमार आगे बढ़े कल को बहुत से मंचों से उन्हें उसी के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी। वैसे राजनीति में निष्ठाएं बदलने की रवायत बहुत पुरानी है। वैचारिक प्रतिबद्धता से मोहभंग और सियासी भविष्य की कशमकश के बीच कन्हैया कुमार के लिए क्या कोई मुश्किल आ सकती है। आइए जानते हैं।
क्यों कन्हैया के लिए असहज स्थिति नहीं?
केरल में एलडीएफ (वामपंथी मोर्चा) की सरकार है। खास बात यह है कि राज्य की वायनाड लोकसभा सीट से राहुल गांधी सांसद हैं। सवाल वैसे तो बहुत दूर का है लेकिन लाजिमी है। अगर राहुल गांधी कन्हैया कुमार से केरल में प्रचार के लिए कहते हैं तो क्या उनके लिए असहज स्थिति हो सकती है। इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘सीपीआई छोड़कर यहां आने में बुनियादी फर्क है। पिछले कुछ सालों में भारतीय वामपंथी दलों में जो नौजवान पीढ़ी है, उसका यह मानना है कि वर्तमान में कॉरपोरेट और सत्ता के गठजोड़ से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को मजबूत करना जरूरी है। वामपंथी दलों का परंपरागत नेतृत्व इससे मुकाबला नहीं कर पा रहा था। कांग्रेस पार्टी की नीतियों में भी एक समाजवादी झुकाव दिखने लगा है। किसानों के आंदोलन का समर्थन, कॉरपोरेट के बढ़ते प्रभाव का विरोध प्रमुख है।’
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‘लेफ्ट के युवा नेताओं को कांग्रेस ही दिख रही विकल्प’
अभी के सियासी परिदृश्य में वामपंथी विचारधारा से निकल रहे यूथ चेहरों के सामने क्या विकल्प दिखते हैं, इस पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘कन्हैया कुमार बड़ा चेहरा हैं। वैसे हाल के दिनों में कई लोग कांग्रेस पार्टी में आए हैं। जाहिर है कुछ बुनियादी चीजों पर सहमत होने के बाद ही कन्हैया कुमार कांग्रेस में आए हैं। सांप्रदायिकता, कॉरपोरेट का वर्चस्व और खात्मा एक बड़ा मुद्दा होगा। ऐसे में केरल में वह अपनी पुरानी पार्टी के प्रत्याशियों के खिलाफ प्रचार कर सकते हैं। कोई हर्ज भी नहीं होना चाहिए। पिछले दो-तीन सालों में वामपंथी दलों से बड़ी तादाद में नौजवान कांग्रेस के लिए काम करने लगे हैं। वर्तमान परिस्थितियों में लेफ्ट से निकलने वाले युवा नेताओं को विकल्प के तौर पर कांग्रेस ही दिख रही है।’
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2015 में जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे कन्हैया
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं। वह 2015 में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बने थे। वामपंथी छात्र संगठनों के वर्चस्व के लिए मशहूर जेएनयू में उनका पांच साल पुराना एक कथित वीडियो सामने आने के बाद देश में बहस छिड़ गई थी। इस वीडियो में राष्ट्रविरोधी नारेबाजी की जा रही थी। हालांकि इस मामले में वह कोर्ट से बरी हुए। बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट से 2019 में सीपीआई के टिकट पर मैदान में उतरे लेकिन बीजेपी के गिरिराज सिंह से उन्हें शिकस्त मिली।
कन्हैया कुमार और राहुल गांधी (फाइल फोटो)