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कांग्रेस ने पंजाब में दलित सीएम बनाया है, लेकिन इस बात से बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के पेट में मरोड़ उठ रही है क्योंकि अगर बीजेपी भी ऐसा कोई दांव चलती है तो किसी मौजूदा सीएम को तो हटना पड़ेगा न? बीजेपी से टीएमसी में जाने वालों का सिलसिला अभी थमा नहीं है, ऐसे में सवाल उठता है कि अगला कौन है जो टीएमसी में आने वाला है? मनीष तिवारी तो नेता कांग्रेस के हैं, लेकिन उनके निशाने पर बीजेपी से कहीं ज्यादा नवजोत सिंह सिद्धू हैं। क्या है इसके पीछे की वजह, जानिए पॉलिटॉक के इस अंक में…

चन्नी से बीजेपी CM परेशान

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कांग्रेस ने पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम क्या बनाया, दुश्वारी बीजेपी के मुख्यमंत्रियों की बढ़ गई। सवाल पूछा जा रहा है कि अगर कांग्रेस किसी दलित को पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्य में मुख्यमंत्री बना सकती है तो बीजेपी इस समुदाय से मुख्यमंत्री क्यों नहीं चुन सकती? राजनीति के रास्ते ऐसे ही चक्करदार होते हैं। कहीं से कहीं का तार जुड़ जाता है। किसी की खुशी, किसी का गम बन जाती है। राजनीतिक गलियारों में तो चर्चा भी शुरू हो चुकी है कि भविष्य में बीजेपी भी किसी दलित नेता को मुख्यमंत्री बना सकती है। इसके लिए किसी मौजूदा मुख्यमंत्री को हटना होगा। इस वक्त बीजेपी में यूं भी मुख्यमंत्रियों को बदलने का सिलसिला चल रहा है। हर मुख्यमंत्री दिल्ली में अपने सूत्रों से थाह लेने की कोशिश में लगा हुआ है कि उसकी कुर्सी सुरक्षित है या नहीं? अगले साल जिन पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, उसमें तीन ऐसे हैं, जहां दलित वोटर निर्णायक होते हैं। कांग्रेस चन्नी के जरिए इन सारे राज्यों में दलित वोटरों के बीच अपनी जगह बनाने में जुट गई है। यूपी में तो वह चन्नी के अभिनंदन कार्यक्रम की योजना भी बना रही है। राजनीति में अपने विरोधी के हर कदम की काट जरूरी होती, वरना पिछड़ जाने का खतरा पैदा हो जाता है। कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी नेताओं पर तंज कसना शुरू कर दिया है कि हम लोग दलितों के यहां सिर्फ खिचड़ी खाने नहीं जाते बल्कि उस समुदाय के लोगों को मुख्यमंत्री भी बनाते हैं। बीजेपी को इसका जवाब तो देना होगा। जवाब किस तरह से दिया जाएगा, यह देखने वाली बात होगी लेकिन जब तक इस दिशा में कुछ हो नहीं जाता बीजेपी मुख्यमंत्रियों का बीपी बढ़ा ही रहेगा।

मनीष तिवारी का शगल

राजनीतिक गलियारों में इन दिनों कांग्रेस नेता मनीष तिवारी को लेकर कहा जाता है कि वह बहुत भरे चल रहे हैं। आजकल उनके निशाने पर बीजेपी से कहीं ज्यादा पंजाब की सियासत में मजबूत होते सिद्धू हैं। जब पंजाब में सरकार में बदलाव नहीं हुआ था और सिद्धू बदलाव के लिए किसी भी हद तक जाने की धमकी दे रहे थे तो उनका एक विडियो शेयर करते हुए मनीष तिवारी ने लिखा था- ‘ हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती।’ उनके इस ट्वीट का मतलब यह निकाला गया कि सिद्धू के बागी तेवर पर कांग्रेस आलाकमान की खामोशी पर तिवारी सवाल खड़ा कर रहे हैं। इसके बाद जब अमरिंदर सिंह हट गए और वहां नई सरकार का गठन होने लगा तो मनीष तिवारी ने एक यही कोई 30 साल पुराना फोटो शेयर किया। यह तस्वीर एनएसयूआई के सम्मेलन की थी, जिसे राजीव गांधी सम्बोधित कर रहे थे और मंच पर मनीष तिवारी, मुकुल वासनिक, रमेश चेन्नीथला, ऑस्कर फर्नांडिस, शोभा थामस जैसे कई नेता बैठे दिखाई दे रहे हैं। इस फोटो के साथ मनीष ने लिखा- दिस वाज द कांग्रेस। इस ट्वीट के यह मायने निकाले गए कि पंजाब में जो कांग्रेस आकार ले रही है, उसके अस्तित्व को वह नकारते हैं। फिर जब नया मुख्यमंत्री चुन लिया गया तो मीडिया के कुछ हिस्से में सूत्रों के हवाले से यह खबर चली कि बैठक में सीएम के लिए मनीष तिवारी का भी नाम चला, कहा गया कि वह पंजाब से पार्टी के अकेले हिंदू सांसद हैं, लेकिन सिद्धू के करीबी इस दावे को नकारते हैं। उनका कहना है कि मनीष तिवारी के नाम की तो कहीं चर्चा भी नहीं हुई, पंजाब की सियासत में वह अपने को बनाए रखने के लिए इस तरह की खबरें प्रायोजित करा रहे हैं।

टीएमसी में अब कौन आएगा?

बंगाल की सियासत के दो बड़े चेहरे मुकुल राय और बाबुल सुप्रियो बीजेपी छोड़कर टीएमसी के साथ हो गए हैं। बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि वह टीएमसी के खिलाफ उनका हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही थी। पश्चिम बंगाल में पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से राज्य की सियासत में जो खलबली मची है, उसमें सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को ही उठाना पड़ रहा है। बीजेपी के अंदर एक-एक कर ऐसा मानने वाले अब कई लोग हो चुके हैं कि अगर पार्टी अपने काडर के सहारे ही रहती तो चुनाव में कहीं फायदे में रहती। ‘बाहरी’ लोगों को लेने का नुकसान उसे उठाना पड़ रहा है। उधर, टीएमसी इस रणनीति पर काम कर रही है कि बीजेपी छोड़कर जो भी आना चाहे, उसे रखा जाए। इस वक्त टीएमसी में आने वालों की निष्ठा नहीं देखनी है। देखना बस इतना है कि बीजेपी का मनोबल कैसे तोड़ा जाए। इस पूरे गेम प्लान में जो सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है, वह यह है कि बाबुल सुप्रियो के बाद बीजेपी का वह बड़ा चेहरा कौन है जो टीएमसी में आने वाला है? दरअसल, पिछले दिनों टीएमसी के एक सीनियर लीडर ने दिल्ली में कुछ पत्रकारों को ‘ऑफ द रेकॉर्ड’ जानकारी दी कि सुप्रियो तो छोटा नाम हैं, अभी तो एक ऐसा चेहरा आने वाला है, जिसका नाम जब घोषित होगा तो सभी लोग चौक जाएंगे? अब इतनी बड़ी बात के बाद उस नाम को लेकर अटकलें लगनी थीं और वही हो भी रहा है। टोह लेने वाले तो यहां तक पहुंच गए हैं कि कहीं वह चेहरा सुभेंदु अधिकारी तो नहीं? हालांकि सुभेंदु अधिकारी इस वक्त बीजेपी में सबसे भरोसेमंद नेताओं की सूची में शामिल हैं। पार्टी ने उन्हें अपने तमाम वरिष्ठ नेताओं के मुकाबले कहीं ज्यादा तरजीह दे रखी है, बंगाल में वह बीजेपी का चेहरा हैं, लेकिन राजनीति में यकीनी तौर पर कभी कुछ नहीं कहा जा सकता। तब तो और भी नहीं जब ममता बनर्जी बीजेपी से अपना बदला चुकाने को किसी के साथ भी गिले-शिकवे भुलाने को तैयार बैठी हों। यानी आने वाले दिनों में बंगाल की सियासत का रोमांच बना रहने वाला है।

उमा भारती का अल्टिमेटम

मध्य प्रदेश की पॉलिटिक्स में इन दिनों बहुत कुछ चल रहा है। कई तरह की चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में चल रही हैं। उनसे शिवराज सिंह चौहान का असहज होना स्वाभाविक है। परेशान मुख्यमंत्री की फिक्र इस बीच उमा भारती के कारण और बढ़ गई है। उमा ने राज्य में शराबबंदी की मांग को लेकर आगामी जनवरी से आंदोलन शुरू करने की बात कही है। इससे पहले वह मार्च में आंदोलन शुरू करने की धमकी दे चुकी थीं, लेकिन किसी तरह उनका यह आंदोलन टल गया था। सभी जानते हैं कि इस आंदोलन से शिवराज चौहान सरकार की किरकिरी होगी क्योंकि वह शराबबंदी के पक्ष में नहीं हैं। उनकी सरकार का आय यह प्रमुख स्रोत है लेकिन जब उनकी ही पार्टी का कोई बड़ी नेता इस मांग को लेकर राज्य में आंदोलन शुरू करेगा तो फिर उनके लिए बचाव में कुछ कह पाना आसान नहीं होगा। कांग्रेस इस पेशबंदी में है कि उमा भारती इस बार आंदोलन को टालने न पाएं, इसलिए पार्टी की तरफ कहा गया है- उमाजी, आपने घोषणा की थी कि 8 मार्च 2021 महिला दिवस से आप नशामुक्ति अभियान प्रारम्भ करेंगी, लेकिन आपका अभियान चला ही नहीं। आप घोषणा कर न जाने कहां गायब हो गईं और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ने भी आपकी इस घोषणा पर कोई निर्णय नहीं लिया। उलटा उसके बाद प्रदेश में शराब माफियाओं के कहर से कई बेगुनाह लोगों की जानें गईं। अब देखना है कि शराबबंदी के लिए आपकी दूसरी बार की गई यह घोषणा मैदानी होगी या कागजी साबित होगी।’ ऐसे में उमा भारती के लिए इस बार शराबबंदी के लिए आंदोलन शुरू करना उनकी साख का सवाल बन सकता है।



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By admin

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