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(आसिम कमाल)

नयी दिल्ली, 13 अगस्त (भाषा) मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में दिखे अमर्यादित दृश्य और हंगामे की पृष्ठभूमि में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि संसद के दोनों सदनों में आसन को जिस तरह तटस्थ होना चाहिए, वो नहीं हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि 11 अगस्त को उच्च सदन में हंगामा शुरू हुआ क्योंकि सरकार अपने कहे से पीछे हट गई और विधेयकों को ‘चुपके’ से पारित कराने का प्रयास किया।

संसद में कांग्रेस के रणनीति संबंधी समूह के सदस्य चिदंबरम ने मानसून सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की ‘अनुपस्थिति’ को लेकर सवाल किया और यह आरोप लगाया कि भाजपा सरकार को संसद के प्रति बहुत कम सम्मान है और अगर प्रधानमंत्री मोदी एवं अमित शाह की चले तो वो ‘संसद को बंद कर देंगे।’

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में इस बात पर जोर दिया कि 2024 में भाजपा के मुकाबले विपक्षी एकजुटता बनाने में निश्चित तौर पर कुछ परेशानियां आएंगी, लेकिन धैर्य, बातचीत और बैठकों के जरिये यह संभव हो जाएगा।

राज्यसभा में गत बुधवार को हुए हंगामे के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह स्थिति उस वक्त पैदा हुई जब सरकार अपने कहे इन शब्दों से पीछे हट गई कि ओबीसी संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद सदन की बैठक को अनिश्चिकाल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा।

उनके मुताबिक, विपक्ष ने स्पष्ट कर दिया था कि वह बीमा संबंधी कानूनों में संशोधन करने वाले विधेयक के विरोध में है और इसे संसद की प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिए। इसको लेकर कोई सहमति नहीं बनी तो यह कहा गया कि इसे संसद के इस सत्र में चर्चा और पारित कराने के लिए नहीं लिया जाएगा।

चिदंबरम ने दावा किया, ‘‘संवैधानिक संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित होने के बाद सरकार ने बीमा विधेयक और एक या दो अन्य विधेयकों को पारित कराने का प्रयास किया। यह चुपके से विधेयकों को पारित कराने की भाजपा की परिपाटी को आगे बढ़ाना था। ऐसे में विपक्ष ने सरकार का पुरजोर विरोध किया।’’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘मैं यह कहते हुए माफी चाहता हूं कि आसन ने तटस्थ भूमिका नहीं निभाई और ऐसे में संसद में हंगामा हुआ। परंतु हंगामे की शुरुआत सरकार की ओर से चुपके से विधेयक पारित कराने के प्रयास से हुई।’’

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू की ओर से विपक्षी सदस्यों के व्यवहार को लेकर निराश जताने पर चिदंबरम ने कहा, ‘‘मैं बहुत भारी मन से और अफसोस के साथ कहता हूं कि आसन को जिस तरह से तटस्थ होना चाहिए वो नहीं है तथा आसन सदन की भावना को नहीं दर्शाता है।’’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सदन सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों से बनता है तथा आसन को सदन की पूरी भावना प्रदर्शित करनी चाहिए और सिर्फ एक पक्ष की भावना को नहीं दर्शाना चाहिए।

एक सवाल के जवाब में पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि संप्रग सरकार के समय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सदन में होते थे और संसद में सवालों के जवाब देते थे, वे चर्चा में भाग लेते थे और बयानों पर स्पष्टीकरण भी देते थे।

उन्होंने कहा कि इस सत्र में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ‘अनुपस्थित’ रहे तथा किसी सवाल का जवाब नहीं दिया और किसी चर्चा में भी भाग नहीं लिया।

पेगासस जासूसी मामले पर चिदंबरम ने कहा, ‘‘मैं आशा करता हूं कि उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा और जांच का आदेश देगा।’’



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