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लखनऊ/मुजफ्फरनगर
कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना। सियासत में कई बार बातें उतनी सीधी नहीं होतीं जितनी दिखती हैं। जाटलैंड के मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचायत के शोर में बहुत कुछ बाहर आना बाकी है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत केंद्र और यूपी की बीजेपी सरकार के खिलाफ लगातार हुंकार भर रहे हैं। टिकैत इस महापंचायत को मिशन यूपी और मिशन देश की शुरुआत भी कह रहे हैं। महापंचायत इसलिए भी अहम है, क्योंकि यूपी में अगले साल की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव है। ऐसे में एक सवाल यह भी है कि क्या विपक्ष राकेश टिकैत के सहारे मिशन यूपी का आगाज करना चाहता है?

‘तब तक फूल माला स्वीकार नहीं करूंगा’
जाट बेल्ट में हो रही किसान महापंचायत के क्या मायने हैं, इसको राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी के बयान से समझा जा सकता है। जयंत चौधरी को दरअसल प्रशासन ने किसान महापंचायत के दौरान हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा की इजाजत नहीं दी है। इस पर उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, ‘बहुत माला पहनी हैं, मुझे जनता ने बहुत प्यार, सम्मान दिया है। अन्नदाताओं पर पुष्प बरसाकर उनका नमन और स्वागत करना चाहता था। मुजफ्फरनगर महापंचायत में डीएम, एडीजी, सिटी मैजिस्ट्रेट, प्रमुख सचिव और मुख्यमंत्री सबको सूचित किया लेकिन अनुमति नहीं दे रहे! किसान के सम्मान से सरकार को क्या खतरा है? मैं हेलिकॉप्टर से पुष्प बरसाकर किसानों के प्रति आदर भाव व्यक्त करना चाहता था। जब तक ऐसी सरकार को बदल नहीं लेते जिसके राज में किसानों पर पुष्प वर्षा नहीं हो सकती, मैं भी फूल माला स्वीकार नहीं कर सकूंगा!’

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‘जाट-जाटव-मुस्लिम एक प्लेटफॉर्म पर आते दिख रहे हैं’
यूपी के सियासी समीकरणों की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘किसान आंदोलन ने राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी की उखड़ चुकी जमीन को फिर से वापस दिलाने का काम किया है। विधानसभा चुनाव में आरएलडी को पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक सीट मिली थी। मथुरा और बागपत जैसी सीटें लोकसभा चुनाव में हारे थे। किसान आंदोलन में मुख्य रूप से जाट किसान सक्रिय हैं। इस आंदोलन में सक्रियता दिखाकर जयंत चौधरी अपने मुख्य वोट बैंक के करीब पहुंच पाए हैं। पश्चिमी यूपी में जाटव-जाट और मुसलमान ये एक प्लेटफॉर्म पर आते दिख रहे हैं। तीनों का खेती-किसानी के चलते आपस में गहरा संबंध है। जाट किसान हैं तो मुसलमानों में मूला जाट हैं वो भी किसान हैं और इनके खेतों में काम करने वाले जाटव। जाट-जाटव के बीच प्रतिद्वंद्विता को पाटने के लिए आरएलडी ने वहां दलित सद्भावना यात्राएं निकालीं। इस तरह का एक सामाजिक समीकरण बनाकर पश्चिमी यूपी में विपक्ष ने अपने आपको मजबूत करने का काम किया है।’

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बीजेपी किस वजह से हल्के में ले रही आंदोलन
2014 का लोकसभा, 2017 का यूपी विधानसभा और 2019 का लोकसभा चुनाव। पिछले तीन चुनाव में वेस्ट यूपी ने बीजेपी को हाथोंहाथ लिया है। ऐसे में कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन को बीजेपी हल्के में नहीं ले सकती। यूपी की सियासत पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘2014, 2017 और 2019 तीन चुनावों में देखने को मिला कि बीजेपी ने वेस्टर्न यूपी को स्वीप कर दिया। इसके पीछे जो मुख्य वजह थी कि जाट-मुस्लिम वोटों में डिविजन हो गया था। ये आरएलडी का कोर वोट बैंक था। किसानों के नेता जो मुख्य रूप से जाट समुदाय से आते हैं वे इस बात को समझते हैं कि केवल जाटों के बल पर आप बीजेपी को झुका नहीं सकते हैं। बीजेपी के रणनीतिकर्ता कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। उनको लगता कि अगर किसान आंदोलन को बड़े पैमाने पर जनसमर्थन हासिल है तो उन्होंने कुछ मांगें उनकी मानी होतीं। लेकिन जिस तरह से बीजेपी अपने रुख पर अड़ी हुई है, जैसे हाल में हरियाणा के करनाल में एसडीएम ने कहा कि उनके सिर फोड़ देने चाहिए। उनके खिलाफ कोई बड़ा ऐक्शन नहीं हुआ। ये चीजें दिखा रही हैं कि बीजेपी को अंदरखाने ये लगता है कि ये आंदोलन कुछ किसानों के चंद समूहों का आंदोलन है। उसकी जड़ें गहरी नहीं हैं और बड़े किसानों का आंदोलन है। ऐसा बीजेपी का मानना है।’

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‘पश्चिम से निकलकर पूरब और मध्य यूपी में फैलेगा आंदोलन’
राजनैतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि पश्चिमी यूपी में एक नया सामाजिक समीकरण जन्म ले रहा है। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘किसान महापंचायत विधानसभा चुनाव से पहले एक कड़ी है। चुनाव से पहले चाहते हैं कि पश्चिम से एक संदेश दिया जाए और फिर इस आंदोलन के जो राजनैतिक निहितार्थ हैं और जो राजनैतिक मैसेज है वो पूरे प्रदेश में फैलाया जाए। आने वाले दिनों के लिए किसान संगठनों ने जो कार्यक्रम जारी किया है, उनमें काफी हिस्से पूर्वी उत्तर प्रदेश के भी हैं, जहां इस तरह की पंचायतें होंगी। किसानों के सवाल पर जो सत्ताविरोधी तबका है, उसको एकजुट करने का प्रयास करेंगे। आरएलडी के लिए ये एक संजीवनी का काम कर रही है। फूल बरसाने की जो मंशा जयंत चौधरी ने जाहिर की, उसका मकसद यही था कि हम किसानों के साथ हद से ज्यादा लगे हुए हैं, उनकी हिमायत में हैं और उनका हम स्वागत करना चाहते हैं। सपा के साथ आरएलडी का गठजोड़ है। ऐसा दिख रहा है कि चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी जिसका जाटव समाज में प्रभाव है वह भी उनके साथ आ चुकी है। पश्चिमी यूपी और रुहेलखंड के कई जिलों में सक्रिय महान दल जिसके साथ मौर्य, काछी, कुशवाहा, कछवाहा, शाक्य, सैनी और महतो जैसी जातियां जुड़ी हुई हैं। ये छोटी खेती-किसानी करने वाले समुदाय हैं। ये सब एक प्लेटफॉर्म पर या तो हैं या आने वाले हैं। विपक्षी गठबंधन को इसने निश्चित रूप से मजबूत किया है और बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है। आने वाले दिनों में इस आंदोलन को पश्चिम से निकालकर पूरब और मध्य यूपी के इलाकों में लाने की कवायद शुरू होगी।’

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किसान महापंचायत कितनी सफल, यह पैमाना अहम
महापंचायत से विपक्ष के मिशन यूपी अभियान को मजबूती मिलेगी इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘अब ये देखना होगा कि ये किसान महापंचायत कितनी सफल होती है। क्योंकि वेस्ट यूपी में गठवाला खाप है, बलियान खाप है, बत्तीसी खाप है, मलिक खाप है, क्या ये सारे खाप एक मंच पर आ रहे हैं। दूसरा क्या मुसलमान भी इसमें शामिल हो रहा है? राकेश टिकैत और नरेश टिकैत के अलावा महापंचायत में बोलने वाले नेताओं का तेवर (टोन) क्या रहता है ये अहम होगा। बाकी खाप के नेता कितना बीजेपी के खिलाफ बोलते हैं। वहां पर कोई मतैक्य उभरता है और एक सुर में किसी देशव्यापी आंदोलन की शुरुआत की घोषणा होती है और बड़ी संख्या में किसान जुट जाते हैं तो इसका निश्चित रूप से बीजेपी पर दबाव पड़ेगा। क्योंकि इसका संदेश दूर-दूर तक पश्चिमी यूपी से पूर्वी यूपी में भी जाएगा। यूपी ही नहीं यूपी के बाहर भी जाएगा। हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि राकेश टिकैत पश्चिम बंगाल भी गए थे। ये संदेश देने की कोशिश की कि सरकार किसान विरोधी है। अगले साल चुनाव हैं। सफल महापंचायत, मुसलमानों की भागीदारी, सभी खापों की भागीदारी और मंच से एक स्वर में कृषि कानूनों का विरोध। अगर ये चीजें उभरती हैं तो पश्चिमी यूपी में बीजेपी के जो जाट नेता हैं ना केवल उन पर प्रेशर पड़ेगा, बल्कि बीजेपी पर भी पड़ेगा। भले ही कृषि कानून वापस ना हों लेकिन ऐसे में उन कानूनों पर विचार करने और उनमें संशोधन का निर्णय सरकार ले सकती है।’



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