भूपेंद्र यादव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते सात वर्षों के अपने कार्यकाल में भारत को आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप आगे बढ़ाया है। ऊर्जा क्षेत्र के नए विकल्पों की दिशा में भी भारत आगे बढ़ रहा है। ऊर्जा और पर्यावरण के क्षेत्र में भारत की भूमिका विश्व पटल पर महत्वपूर्ण हुई है। जलवायु परिवर्तन के सवाल पर गंभीरतापूर्वक काम कर रहे देशों ने भारत की भूमिका को स्वीकार किया है।
भारत की पहल को सम्मान
देखा जाए तो 2014 में सरकार बनने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ और हरित ऊर्जा की दिशा में भारत की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को नए ढंग से सुनिश्चित किया है। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया है कि भारत जलवायु परिवर्तनों की चुनौती से निपटने के लिए हो रही वैश्विक पहलों को आगे बढ़ाने में भी अग्रणी है। उदाहरण के रूप में देखें तो इस वर्ष के आरंभ में ही प्रधानमंत्री मोदी को ‘सेरावीक ग्लोबल एनर्जी एंड एन्वायरनमेंट लीडरशिप’ सम्मान प्राप्त हुआ। इसके पहले 2018 में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ में प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण सम्मान ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ’ प्रदान करते हुए पर्यावरण के क्षेत्र में उनके वैश्विक नेतृत्व को ही मान्यता दी गई। यह सम्मान प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में स्थापित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और भारत में सिंगल यूज प्लास्टिक को 2022 तक समाप्त करने के उनके संकल्प के प्रति एक वैश्विक स्वीकृति का ही द्योतक था। यह भारत के वर्तमान नेतृत्व की दुनिया में स्वीकार्यता का परिचायक है।
प्रकृति को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की दृष्टि के तीन मूल तत्व हैं। पहला है आंतरिक चेतना। आंतरिक चेतना का अर्थ है स्व की पहचान करना यानी अपने गौरवशाली अतीत की पहचान करना। दूसरा स्तंभ है – जनजागरूकता। इस विषय में प्रधानमंत्री, देशवासियों से पर्यावरण संबंधी विषयों पर चर्चा, संवाद और विमर्श करने तथा लिखने के लिए आह्वान करते हैं। वह पर्यावरण से संबंधित विषयों पर अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहन देने को भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। पर्यावरण संबंधी विषयों पर नागरिकों की सक्रियता को प्रधानमंत्री मोदी तीसरा स्तंभ मानते हैं। उनका मत है कि पर्यावरण की बदहाली और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में लोगों की सक्रियता अत्यंत सकारात्मक भूमिका निभा सकती है।
गौर करें तो पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर भारत ने घरेलू स्तर पर ऐसी मिसाल कायम की है, जिसका आज विश्व अनुकरण कर रहा है। भारत आर्थिक विकास के क्रम में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में उत्तरोतर कमी लाने में कामयाब रहा है। भारत अपने 2005 में निर्धारित स्तर की तुलना में 2020 में जीडीपी की ‘मिशन इंटेंसिटी’ को 20 से 25 प्रतिशत तक करने की अपनी 2020 से पूर्व की प्रतिबद्धता को पार कर रहा है। इसके अतिरिक्त बीते सात वर्षों में भारत की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता में ढाई गुणा की वृद्धि हुई है, जिसके अंतर्गत सौर ऊर्जा क्षमता में 13 गुणा की वृद्धि दर्ज की गई है। केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष’ के माध्यम से राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के पर्यावरण अनुकूलन कार्यों को सहयोग तथा समर्थन दिया जा रहा है।
इन सब उपलब्धियों के साथ आज भारत जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए पैरिस समझौते के तहत निर्धारित अपने लक्ष्यों (राष्ट्रीय योगदानों) को न केवल प्राप्त करने बल्कि उससे भी आगे बढ़ने की राह पर है। आज भारत जी-20 समूह का एकमात्र ऐसा देश है, जो अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में सधे कदमों से आगे बढ़ रहा है।
आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतरराष्ट्रीय गठबंधन (The Coalition for Disaster Resilient Infrastructure) यानी सीडीआरआई भी प्रधानमंत्री मोदी की पहल का ही परिणाम है। सीडीआरआई का उद्देश्य सतत विकास के समर्थन में जलवायु और आपदा संबंधी जोखिमों के लिए मौजूद बुनियादी ढांचा प्रणालियों के संबंध में है। 23 सितंबर, 2019 को ‘यूएन क्लाइमेट एक्शन समिट’ में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सीडीआरआई की शुरुआत की गई थी, जिसमें अब सदस्य के रूप में 25 देश और सात अंतरराष्ट्रीय संगठन शामिल हैं। भारत इलेक्ट्रिक वीइकल इनिशिएटिव (ईवीआई) का भी सदस्य है। यह विश्व की अनेक सरकारों का एक नीतिगत मंच है, जो कि विश्वभर में इलेक्ट्रिक वाहनों की शुरुआत करने और उनके उपयोग में तेजी लाने के लिए काम करता है। इन बहुपक्षीय और द्विपक्षीय समझौतों का लाभ यह हुआ है कि विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त रूप से अपेक्षाकृत सस्ती लागत से टिकाऊ प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत, विकासशील देशों की आवाज बनते हुए विश्व पटल पर इस बात को उठाने में कामयाब रहा है कि विकसित देश प्रदूषण के लिए ऐतिहासिक रूप से जिम्मेदार रहे हैं, अतः उन्हें जलवायु अनुकूलन के लिए वित्तीय और तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराना चाहिए। आगे ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र का 26वां जलवायु सम्मेलन (COP26) होना है, इससे पूर्व विश्व के नेताओं ने इस बात को स्वीकारते हुए भारत की सराहना की है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के मामले भारत ने एक उदाहरण पेश करते हुए विश्व का नेतृत्व किया है। पैरिस जलवायु समझौते में निर्धारित सब-2 डिग्री सेल्सियस स्तर के लक्ष्य की अपनी प्रतिबद्धता से भी बेहतर प्रदर्शन करना दर्शाता है कि भारत जो कहता है, सो करता भी है।
भविष्य निर्माण का बीड़ा
आज पूरा विश्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ पर्यावरण को लेकर आगे की राह दिखाने और भावी पीढ़ियों के रहने योग्य एक हरीभरी तथा पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ दुनिया छोड़ने के प्रयासों को मजबूती देने के लिए देख रहा है। 2018 में वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि एक ऐसी दुनिया में, जो दोषों और दरारों से भरी है, हमें एक साझा भविष्य के निर्माण की जरूरत है। हम कह सकते हैं कि अपने कार्यों और नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से दुनिया के लिए उस भविष्य के निर्माण का बीड़ा उठाया है।
(लेखक केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन तथा श्रम और रोजगार मंत्री हैं)
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं