सन्तोष पटेल
भोजपुरी भाषा के बढ़त प्रभाव में भोजपुरी सिनेमा के योगदान आ भोजपुरी भाषा के वैश्विक पूंजीवाद से करत प्रतिवाद के प्रशंसा में साउथ एशियन भाषा के विशेषज्ञ प्रो व्हिटनी कॉक्स जे यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में एसोसिएट प्रोफेसर पदस्थापित बाड़न, लिखत बाड़न कि ‘दुनिया के कई गो छोटहन-छोटहन भासा खत्म होखत जात बाड़ी सन। ओकर कारण बा बड़हन-बड़हन मीडिया के संख्या आ वैश्वविक पूंजीवाद, बाकिर एकरा में एगो प्रतिरोधी प्रवृति के उभारो भइल बा, जैसे- भोजपुरी एगो अइसन भासा बा जवन इंटरनेट के माध्यम से आपन गीत-संगीत-सिनेमा में बढ़त चलन के चलते आपन देस आ प्रवासियन के बीच बहुत लोकप्रिय हो रहल बा।’ इहे बात पीएलएसआई (पीपल लिंगिविस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष प्रो गणेश देवी के मानल बा कि ‘भोजपुरी भारत के सबसे तेजी से बढ़े वाला भासा बा बाकिर ओकर मूल राज्य उत्तर प्रदेश आ बिहार में आजो ओकरा द्वितीय राजभासा के दर्जा नइखे। एही से ओकर विकास के रुकावट आ रहल बा।’
विदित होखे कि भारत सरकार के भाषा सर्वेक्षण 2011 के रपट आ गइल बा। भोजपुरी समाज में आपन भाषा के प्रति जागरण देखल जा सकेला। बहुत खुशी के बात बा बाकिर जागरण के जरूरत अभियो महसूस हो रहल बा बाकिर भोजपुरी बोलनिहार के संख्या में 1999-2001 के बनिस्पत 2001- 2011 में एक करोड़ सत्ताईस लाख अस्सी हजार के बढ़ोतरी भइल बा।
2001 में भोजपुरी के पहिल मातृभाषा के रूप में 39,445 300 लोग बोलनिहार रहे, जबकि दूसरकी मातृभाषा के रूप में 74,100 लोग बोलनिहार रहल। बाकिर भाषा सर्वेक्षण आपन रपट में 37,800,000 बतवले रहे।
2011 में भाषा सर्वेक्षण के रपट बतलावत बा कि भोजपुरी बोलनिहार के संख्या 50,580,000 बा। मतलब भारत के जनसंख्या के 4.18% भोजपुरी भासी बाड़न। एकरा से ई बात साबित हो रहल बा कि भोजपुरी भासी लोगन में आपन के दिसाई जागरूकता बढ़ल बा। बाकिर भारत सरकार के एकरा संवैधानिक मान्यता से अभियो वंचित रखले बिया।
जब कबो एकर मांग भइल सरकार के ओर से कवनो ना कवनो कमिटी के पेंच में एकरा के फंसा दिहल गइल। देश के संविधान लागू भइल त 14 गो भासा के संविधान के अष्टम अनुसूची में शामिल कइल गइल। तब ना कवनो मापदंड रहे, ना कवनो-कवनो कमिटी रहे। इहो सच्चाई बा कि देश के राजकाज के भासा खातिर संविधान सभा में बहुत जिरह भइल, चर्चा भइल आखिर में हिंदी राजकाज के भाषा, देवनागरी लिपि आ रोमन के संख्या तय भइल। बाबा साहेब आंबेडकर जी संविधान सभा में कहले रहीं कि – संविधान के कवनो अनुच्छेद तय करे में एतना विवाद ना भइल रहे जेतना हिंदी के सवाल पर अनुच्छेद 115 खातिर भइल।
खैर हिंदी के अलावा बाकिर 13 गो भासा में कवनो प्रतिवाद ना भइल। 1967 में सिंधी भासा, 1992 में कोंकणी, मणिपुरी आ नेपाली 2004 में बोड़ो, डोगरी,मैथिली आ संथाली के संवैधानिक मान्यता मिलल। ओह बेरा ना कवनो कमिटी बनल ना कवनो मापदंड तय भइल।
कहे ना होई कि भोजपुरी भासी धरती परंपरा से आंदोलन के धरती रहल बिआ बाकिर अपना भासा के, सहित्य आ संस्कृति के लेके एकरा आंदोलन के सुगबुगाहट आजादी के लड़ाई के संगे-संगे शुरू भइल। ओह आंदोलन के सूत्रधार लोग में प्रमुख रहीं – बहुभाषाविद आ बहुमुखी प्रतिभा के धनी महापंडित राहुल सांकृत्यायन, पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी, डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल, परमेश्वरी लाल गुप्त, वगैरह। चतुर्वेदी जी सन 1934 ईस्वी में कलकत्ता के ‘विशाल भारती’ में एह आंदोलन के ऊपर एक लेख लिखनी।
भोजपुरी के पक्ष में सबसे पहले सुगबुगाहट त 10 मार्च 1940 में कुंडेश्वर (टीकमगढ़) में आयोजित ब्रज आर बुंदेलखंड से आइल कार्यकर्ता लोगन के बैठक से भइल। फेर 1942 में एह आंदोलन से जुड़ल अग्रवाल जी एगो योजना बनवनी की पूरा जनपद के एक-एक इकाई मान के उहां के भासा, साहित्य, संस्कृति आ लोक साहित्य आदि के विधिवत अध्ययन हिंदी के जरिये होखे के चाहीं, बाकिर राहुल जी एकरा से भिन्न विचार राखत रहीं। उहां के विचार रहे कि भोजपुरी भासा, साहित्य और संस्कृति के बात भोजपुरिये में होखे के चाहीं।
फेर कतना विद्वान लोगन के साथ ई आंदोलन के मिलल। भोजपुरी भासा के संवैधानिक मान्यता दिलावे खातिर आंदोलन अब ले जारी बा। बाकिर भोजपुरिया लोग हार माने वाला ना ह लोग। जवन भाषा देश के अलावा 30 देसन में मौजूद बा (सरकार के डेटा के अनुसार) जवन नेपाल में तीसरा बड़ा भासा बिया, मॉरीशस से यूएन में आपन उपस्थिति ‘गीत गवाई’ के माध्यम से दर्ज करा चुकल बिया ओकरो भारत सरकार उद्धार करी आ ओकरा संविधान के आंठवी अनुसूची में शामिल करी।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं