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हाइलाइट्स

  • एलजी को ज्यादा अधिकार देने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में है याचिका
  • दिल्ली सरकार ने जल्द सुनवाई के लिए लगाई गुहार
  • दिल्ली सरकार का तर्क- SC के फैसला के विपरीत कानून बनाया गया

नई दिल्ली
एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर जल्द ही सुनवाई हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट जल्द ही उस याचिका पर सुनवाई लिस्ट करने का आदेश देगी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमन की अगुआई वाली बेंच के सामने पेश हुए सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने कहा कि मामले में दाखिल अर्जी पर जल्द सुनवाई की जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से दलील पेश करते हुए कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने जो फैसला दिया था उसके विपरीत यह कानून बनाया गया है जिसके तहत एलजी को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। नए कानून को लोकसभा में 22 मार्च और राज्य सभा में 24 मार्च को पास किया गया था। चीफ जस्टिस एनवी रमन की अगुआई वाली बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि याचिका की सुनवाई के लिए उसे लिस्ट करने को लेकर वह जल्द फैसला देगी।

क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऊपर जाकर केंद्र ने किया संशोधन?
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में दिल्ली के डेप्युटी चीफ मिनिस्टर ने दिल्ली सरकार की ओर से अर्जी दाखिल कर भारत सरकार के होम मिनिस्ट्री और लॉ मिनिस्ट्री को प्रतिवादी बनाया है। याची की ओर से दाखिल अर्जी में गया है कि जीएनसीटीडी एक्ट (गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट) की धारा-21, 24, 33 व 44 में बदलाव किया गया है। साथ ही बिजनस ट्रांजैक्शन के रूल्स में भी बदलाव कर दिया गया है। इन संशोधनों के कारण दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधिकार को कमतर किया गया है। याचिका में कहा गया है दिल्ली में चुनी हुई सरकार और विधानसभा है और उसके मंत्रिमंडल हैं लेकिन संसद से कानूनी संशोधनों के बाद उनके अधिकार को घटा दिया गया है। एक तरह से देखा जाए तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उस जजमेंट के ऊपर केंद्र सरकार ने ये संशोधन कर दिया है जबकि इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।
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दिल्ली सरकार ने क्या कहा
याचिकाकर्ता दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा कि 4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली की मंत्रिपरिषद अपने फैसले से एलजी को अवगत कराएंगे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि एलजी की सहमति जरूरी है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एलजी को अपना कोई अधिकार नहीं है। वह या तो मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेंगे या फिर कुछ विशेष मामले को वह राष्ट्रपति को रेफर करेंगे। अनुच्चेद-239 एए के तहत संवैधानिक अनिवार्यता है कि दिल्ली की विधायिका जनता के प्रति जवाबदेह होगी।

नए कानून में क्या
याचिका में यह भी कहा गया है कि 15 मार्च 2021 को द गवर्नमेंट ऑफ नैशनल कैपिटल टेरिटेरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2021 लोकसभा में पेश किया गया और इसके तहत जीएनसीटीडी एक्ट 1991 में संशोधन किया गया और इसके तहत जो कानून पास किया गया उसमें कहा गया है कि दिल्ली में सरकार का मतलब एलजी होगा यानी कोई भी कानून जो विधानसभा बनाती है उसका मतलब एलजी होगा। एलजी को यह अधिकार दिया गया कि कुछ बिल को वह अपने पास राष्ट्रपति के विचार के लिए रख सकते हैं। एक्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली सरकार मंत्रियों की सलाह पर जो भी एग्जेक्युटिव एक्शन लेगी वह एलजी के नाम पर होगा। कुछ मामलों में एलजी की ओपिनियन अनिवार्य होगी। 28 मार्च को इसके लिए राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई और संशोधित एक्ट लागू हो गया।

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दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि जीएनसीटीडी एक्ट की धारा-21, 24, 22 व 44 के तहत जो संशोधन किया गया है उसे निरस्त किया जाए और उसे गैरसंवैधानिक घोषित किया जाए। बिजनस ट्रांजैक्शन रूल्स में जो बदलाव किया गया है और जो तथ्य जोड़े गए हैं उसे गैरसंवैधानिक घोषित किया जाए।

4 जुलाई 2018 का संवैधानिक बेंच का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे। अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे उस पर अमल करेंगे यानी खुद कोई फैसला नहीं लेंगे। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने राजधानी दिल्ली में प्रशासन के लिए एक पैरामीटर तय किया है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-239 एए की व्याख्या की थी। अनुच्छेद-239 एए के तहत एलजी के लिए अनिवार्यता है कि वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करें या फिर मामले को राष्ट्रपति को रेफर करें। वह मामले में खुद स्वतंत्र तरीके से फैसला नहीं लेंगे।

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दिल्ली हाई कोर्ट ने एलजी को दिल्ली का एडमिनिस्ट्रेटिव बॉस बताया था। इस फैसले को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी। सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली सरकार को भारी राहत मिली। पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि एलजी बाधा डालने का काम नहीं कर सकते। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में पांचों जजों ने एकमत से ये फैसला दिया कि दिल्ली में एलजी मंत्रिपरिषद की सलाह से काम करेंगे और खुद फैसला नहीं लेंगे। अगर किसी मामले में अपवाद है तो राष्ट्रपति को रेफर करेंगे। अदालत ने कहा कि दिल्ली में एलजी का स्टेटस राज्य के गवर्नर जैसा नहीं है। वह एक एडमिनिस्ट्रेटर हैं।

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दिल्ली सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमे हाई कोर्ट ने अगस्त 2016 में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि राजधानी दिल्ली अब भी यूनियन टेरिटरी है और संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत इसके लिए स्पेशल प्रावधान किया गया है, इस तरह से राजधानी दिल्ली में एलजी एडमिनेस्ट्रेटर हैं। दिल्ली सरकार द्वारा लिए गए उन तमाम फैसलों को कोर्ट ने अवैध करार दे दिया था जो फैसले एलजी की सहमति के बगैर लिए गए थे। साथ ही कहा था कि दिल्ली में एलजी ही एडमिनिस्ट्रेटिव हेड हैं।



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