हाइलाइट्स
- सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर अब और सुनवाई से इनकार कर दिया
- शीर्ष अदालत ने कहा कि वो अपने ही फैसले पर बार-बार विचार नहीं करेगा
- सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में दिए अपने फैसले गिनाए और राज्य सरकारों को निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह प्रमोशन में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) को आरक्षण की अनुमति देने वाले अपने फैसले पर दोबारा सुनवाई नहीं करेगा क्योंकि राज्यों को यह निर्णय करना है कि वे कैसे इसे लागू करेंगे। कई राज्यों ने पदोन्नति में एससी/एसटी को आरक्षण देने में कठिनाइयां गिनाईं। इस पर शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने राज्य सरकारों की ओर से पेश ऐडवोकेट ऑन रेकॉर्ड से कहा कि वह राज्यों के उन मुद्दे की पहचान करें, जिससे बाधाएं आ रही हैं।
आदेश दे दिया, लागू करना राज्य का काम: SC
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कहा, ‘हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम नागराज या जरनैल सिंह (मामले) दोबारा खोलने नहीं जा रहे हैं क्योंकि इन मामलों पर न्यायालय द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था के अनुसार ही निर्णय करने का विचार था।’ शीर्ष अदालत ने अपने पूर्व के आदेश को रेखांकित करते हुए कहा कि उसने आरक्षण को लेकर विस्तृत व्यवस्था दे रखी है, उन्हें लागू करने का काम राज्य सरकारों का है।
11 हाई कोर्ट्स के आदेशों को दी गई है चुनौती
ध्यान रहे कि ताजा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के 11 आदेशों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये बातें कहीं। हाई कोर्ट्स ने अपने आदेशों में प्रमोशन में रिजर्वेशन सुनिश्चित करने वाले राज्य सरकार के कानूनों को या तो रद्द कर दिया था या भी वैध बताया था। इनके खिलाफ दलील दी गई कि ये आदेश सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ हैं। सुप्रीम कोर्ट अब 5 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के अपने इन आदेशों का हवाला देकर प्रमोशन में आरक्षण संबंधी मामलों पर अब और विचार नहीं करने की बात कही है…
1992- इंदिरा साहनी केस – क्रीमी लेयर को ओबीसी आरक्षण से दूर किया और आरक्षण में 50% की सीमा तय कर दी थी।
2006 – एम नागराज केस – प्रमोशन में रिजर्वेशन की सीमा को न्यायोचित ठहराने के लिए मात्रात्मक आंकड़ा जुटाने की शर्त अनिवार्य कर दी गई थी।
2018 – जरनैल सिंह केस- नागराज केस पर पुनर्विचार का आग्रह खारिज कर दिया गया था। क्रीमी लेयर के एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन का लाभ नहीं देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया था।
2019 – पवित्र II जजमेंट – सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण के लिए निर्धारित शर्तों को नरम कर दिया था।
मील का पत्थर है इंदिरा साहनी जजमेंट
साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जिसे इंदिरा साहनी ने कोर्ट में चुनौती दी थी। इंदिरा साहनी केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इसी ऐतिहासिक फैसले के बाद से कानून बना था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। समय-समय में राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है। इसके लिए राज्य सरकारें तमाम उपाय भी निकाल लेती हैं। देश के कई राज्यों में अभी भी 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है।
क्या था नागराज केस
2006 में आए नागराज से संबंधित वाद में अदालत ने कहा था कि पिछड़ेपन का डेटा एकत्र किया जाएगा। ये भी कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण के मामले में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू होगा। सरकार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक दक्षता को देखेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस में आदेश दिया था कि ‘राज्य एससी/एसटी के लिए प्रमोशन में रिजर्वेशन सुनिश्चित करने को बाध्य नहीं है। हालांकि, अगर कोई राज्य अपने विवेक से ऐसा कोई प्रावधान करना चाहता है तो उसे क्वांटिफिएबल डेटा जुटाना होगा ताकि पता चल सके कि समाज का कोई वर्ग पिछड़ा है और सरकारी नौकरियों में उसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।’
जानें जरनैल केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश
जरनैल सिंह केस में पांच जजों की बेंच ने 2018 में कहा था कि एसटी/एसटी कैटिगरी के लिए भी प्रमोशन में आरक्षण देते वक्त क्रीमी लेयर का ध्यान रखा जाएगा। उसने कहा था कि एससी/एसटी कम्यूनिटी के क्रीमी लेयर को प्रमोशन में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘संवैधानिक अदालतें जब आरक्षण के सिद्धांतों को लागू करेंगी तो समानता के सिद्धांत के आधार पर आरक्षण पाने वाले समूह से क्रिमी लेयर को बाहर करने का मामला उसके न्याय क्षेत्र में होगा।’ गौरतलब है कि आरक्षण पाने वाले वंचित समुदायों में से सिर्फ अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से ही क्रिमी लेयर को हटाए जाने का प्रावधान है।
केंद्र की सुप्रीम कोर्ट से गुहार
यही वजह है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणियों के आरक्षण से क्रिमी लेयर को हटाने के 2018 के अपने आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग पिछले वर्ष की थी। एक याचिका पर कोर्ट में सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि क्रिमी लेयर कॉन्सेप्ट एसी/एसटी कैटिगरीज के आरक्षण में लागू नहीं किया जा सकता है। अटॉर्नी जनरल ने सर्वोच्च अदालत से आग्रह किया कि वह इस मामले पर 2018 में आए पांच सदस्यीय बेंच के फैसले को सात जजों की बेंच के पास पुनर्विचार के लिए भेजे।
अटॉर्नी जनरल की इस दलील को वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने चुनौती देते हुए कहा कि जरनैल सिंह जजमेंट बिल्कुल स्पष्ट है और एक ही मुद्दे पर बार-बार बहस नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘यह सालाना कार्यक्रम नहीं हो सकता है। एसी/एसीट समुदायों में क्रिमी लेयर कॉन्सेप्ट पर 2018 का जजमेंट बिल्कुल स्पष्ट है। इसे (केस को) फिर से नहीं खोला जा सकता है।’ शंकरनारायणन राजस्थान में एससी/एसटी समुदायों के गरीब एवं पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था समता आंदोलन समिति का पक्ष रख रहे थे।
पवित्र I और पवित्र II जजमेंट्स
पवित्र I जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के उस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया था जिसके तहत पदोन्नति में आरक्षण के साथ-साथ परिणामी वरिष्ठता (Consequential Seniority) की व्यवस्था की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नागराज और जरनैल सिंह, दोनों मामलों में दिए गए आदेशों में क्वांटिफिएबल डेटा क्रिटेरिया को अनिवार्य बताया गया था। इस आधार पर कर्नाटक सरकार का कानून तर्कसंगत नहीं पाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने पवित्र II जजमेंट में पर्याप्त प्रतिनिधित्व दर्शाने वाले आंकड़े की शर्त को ढीला कर दिया था। उसने कहा कि सरकार को एससी-एसटी प्रमोशन में आरक्षण से पहले पिछड़ेपन का डेटा एकत्र करने की जरूरत नहीं है। वहीं सरकारी नौकरियों में एससी और एसटी की पदोन्नति में आरक्षण देने का रास्ता साफ कर दिया था।
अभी क्यों उठा रिजर्वेशन का मामला
याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायण का कहना है कि कई राज्य अभी भी नागराज जजमेंट को नहीं मान रहे हैं। वहीं सीनियर ऐडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि केंद्र सरकार ने नागराज जजमेंट के तहत कोई गाइडलाइन नहीं बनाई है। मसलन कि कोई राज्य किस आधार और प्रक्रिया के तहत अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को तय करे। इसके लिए कोई बेंचमार्क होना जरूरी है। राज्यों ने इसको लेकर गाइडलाइन बनाई लेकिन हाई कोर्ट से खारिज कर दिया गया। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रूलिंग को लेकर एकरूपता नहीं है।
जानें केंद्र सरकार की राय
अटॉर्नी जनरल का कहना है कि केंद्र सरकार की यह दिक्कत है कि हाई कोर्ट ने तीन अंतरिम आदेश दिए हैं। इनमें दो में कहा गया है कि प्रमोशन हो सकता है जबकि तीसरे में प्रमोशन पर यथास्थिति रखने को कहा गया है। भारत सरकार में सचिव स्तर पर 1,400 पद पर नियुक्ति रुकी हुई हैं। सवाल यह है कि क्या नियमित नियुक्तियों पर प्रमोशन जारी रह सकता है और रिजर्व सीटों को यह प्रभावित करेगा।