राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से सोनिया गांधी ही कांग्रेस की कमान संभाल रही हैं, पर हालात बता रहे हैं कि कुछ भी संभल नहीं पा रहा है। पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और झारखंड को छोड़कर आज पूरे देश में पार्टी सत्ता से बाहर है। महाराष्ट्र और झारखंड में भी पार्टी की भूमिका नंबर तीन और नंबर दो की है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें यूपी भी शामिल हैं। सबसे बड़े राज्य के बारे में कहा जाता है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यहीं से होकर जाता है। ऐसे में लोगों के मन में भी यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि क्या कांग्रेस ऐसी स्थिति में है कि वह यूपी, उत्तराखंड समेत चुनावी राज्यों में बीजेपी को टक्कर दे सके। चुनाव में तो अभी वक्त है मौजूदा हालात में कांग्रेस की स्थिति क्या है, आइए टटोलने की कोशिश करते हैं।
कहा जाता है कि अगर आपके घर में एकजुटता हो तो विरोधियों से मोर्चा लेना आसान हो जाता है। कांग्रेस पार्टी पर नजर डालें तो सब कुछ बिखरा सा दिखता है। जिन भी राज्यों में वह सत्ता में है, आंतरिक गुटबाजी और मतभेदों के चलते गलत संदेश जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस में सबकी अपनी अलग राय है और कोई किसी की सुनना नहीं चाहता है। वास्तव में यह स्थिति तब पैदा होती है जब केंद्रीय नेतृत्व नेताओं से दूर हो जाता है और अपनों की नजर में भी कमजोर दिखने लगता है।
सिब्बल के घर अपनों ने ही फेंके टमाटर
G23 के नेता कपिल सिब्बल की बातों पर भले ही बवाल मचा हो, पर उनका बयान काफी कुछ कह जाता है। कपिल सिब्बल ने सीधे तौर पर कांग्रेस नेतृत्व को ही कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि किसी को नहीं पता कि पार्टी में फैसले कौन लेता है। उन्होंने पार्टी के भीतर आत्मनिरीक्षण की भी नसीहत दे डाली। इसके बाद हालात इस कदर बिगड़ गए कि सिब्बल के विरोध में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ही उनके घर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया और कार में तोड़फोड़ की। उनके घर पर टमाटर फेंके गए।
साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व को लेकर बड़े नेताओं में भी संशय की स्थिति है। साफ है नेतृत्व की नेताओं से दूरी बढ़ गई है। अब मांग उठने लगी है कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई जाए, जो काफी समय से नहीं हुई है।
सोनिया नहीं, राहुल-प्रियंका लीड रोल में
दरअसल, पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी आम बैठकों से दूर रह रही हैं और नेताओं से कम ही मिलती हैं। स्वास्थ्य को इसकी एक अहम वजह माना जा सकता है। हालांकि ट्विटर पर और जनसभाओं में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी केंद्र की बीजेपी सरकार पर लगातार हमला करते रहते हैं। बहन प्रियंका गांधी उनका साथ देती हैं और वह पिछले कुछ महीनों में यूपी में काफी सक्रिय हुई हैं। इस समय भी वह लखनऊ में हैं और अगले चुनाव की तैयारियों में जुटी हैं। राहुल गांधी दक्षिण में अपने चुनावी क्षेत्र के दौरे पर हैं। यह देखकर लगता है कि कांग्रेस विधानसभा चुनावों में जीत के एजेंडे के साथ सही दिशा में बढ़ रही है, पर क्या सच में ऐसा है? और जब अपने ही बड़े नेता नाराज हों तो पार्टी एकजुट कैसे रह पाएगी। हिमंता बिस्व सरमा से लेकर सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फालेरयो, ललितेश त्रिपाठी, अभिजीत मुखर्जी तक जो लिस्ट बढ़ती जा रही है उसे रोकने से ही पार्टी का भविष्य तय होगा। फिलहाल कांग्रेस इसमें फेल होती दिख रही है।
यहां एक सवाल और उठता है कि जो स्थिति कुछ साल पहले ‘ओल्ड बनाम नौजवान नेताओं’ की कांग्रेस के भीतर थी, वह अब तक नहीं सुलझी है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि बुजुर्ग और अनुभवी नेताओं की नाराजगी दूर नहीं हुई और नए नेता अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए बाहर निकल लिए।
सोनिया गांधी की सक्रियता कम दिखने से पंजाब और दूसरे राज्यों में नेतृत्व को लेकर फैसले के बारे में ऐसा कहा जा रहा है कि राहुल और प्रियंका गांधी ही ‘बोल्ड फैसले’ ले रहे हैं। जिस तरह से कैप्टन की नाराजगी टीवी पर दुनिया ने देखी, यह बात साफ हो गई कि राहुल-प्रियंका के सलाहकार पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लेकर गंभीर नहीं हैं। सिंधिया का पार्टी छोड़ना रहा हो या राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट का विवाद, दोनों मामलों में यही संदेश गया था कि अनुभवी और युवा नेताओं के मसले को ठीक तरह से हैंडल नहीं किया गया। माना जा रहा है कि भले ही सारे फैसले राहुल ले रहे हैं पर उनके अध्यक्ष बनने को लेकर विवाद से बचने के लिए औपचारिक तौर पर उनकी ताजपोशी से बचा जा रहा है। आशंका यह भी है कि पार्टी के भीतर चुनाव की चर्चा फिर से जोर पकड़ सकती है।
G-23 तोड़ सकते हैं पार्टी?
G-23 नेताओं की ‘बगावत’ पार्टी में टूट का सबब भी बन सकती है। वैसे भी, ग्रैंड ओल्ड पार्टी में टूट का इतिहास बहुत पुराना है। हाल के दशकों में शरद पवार, ममता बनर्जी, एनडी तिवारी और अर्जुन सिंह जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता कुछ ऐसे ही हालात में अलग हो गए।
कांग्रेस पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से सरकार चला रही है। महाराष्ट्र और झारखंड में गठबंधन में होने के नाते कुछ मनमुटाव पैदा हो तो समझा जा सकता है लेकिन यहां तो अपने ही नहीं संभल पा रहे हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हालात यह हैं कि लगता है कांग्रेस सोए हुए ज्वालामुखी पर बैठी है और कभी भी विस्फोट हो सकता है।
पंजाब की उथल-पुथल समझिए
2017 से पंजाब में सरकार चला रहे कैप्टन अमरिंदर का नवजोत सिंह सिद्धू से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। उनके बीच की कड़वाहट कई बार खुलकर सामने आ गई। कैबिनेट से निकलने के बाद सिद्धू इस ताक में बैठे थे कि कैप्टन की कुर्सी उन्हें मिल जाए। पार्टी हाईकमान की शह पर जुलाई में अचानक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बदल दिए जाते हैं और सिद्धू के इस प्रमोशन से कैप्टन खेमा नाराज हो जाता है। दो महीने भी नहीं बीते कि नए सीएम की तलाश शुरू हो गई। समझा गया कि सारे फैसले दिल्ली में बैठे राहुल-प्रियंका ले रहे हैं। सुखजिंदर सिंह रंधावा, अंबिका सोनी, सुनील जाखड़, नवजोत सिंह सिद्धू खुद सीएम के लिए दावेदारी पेश करने लगे। बाद में मतभेद टालने के लिए चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में दलित चेहरे को कमान सौंपी गई लेकिन उसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ।
अलग खेमा बनने से पार्टी में मतभेद बने रहे और बाद में सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। अब उन्हें मनाने की कोशिशें जारी हैं। इस बीच, 52 साल के राजनीतिक करियर पर सवाल उठने से नाराज कैप्टन अमरिंदर सिंह खुलकर हाईकमान के खिलाफ उतर गए हैं। उन्होंने दिल्ली जाकर गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और चंडीगढ़ लौटने से पहले ही ऐलान कर दिया कि वह ज्यादा समय तक कांग्रेस में नहीं रहेंगे। सिद्धू को लेकर सोशल मीडिया पर लोग भी कहने लगे हैं कि वह क्या कदम उठा लेंगे, कहा नहीं जा सकता है। हो सकता है कि राहुल-प्रियंका भी अब यह सोच रहे हों कि सिद्धू पर ज्यादा भरोसा कर गलती हो गई क्योंकि कोई भी पार्टी एक नेता को खुश कर जनाधार वाले सीनियर नेता को नाराज करना नहीं चाहेगी। अगर कैप्टन अलग पार्टी बनाते हैं और उनके राष्ट्रवादी रुख के साथ किसानों के मुद्दों पर बीजेपी समर्थन देती है तो कांग्रेस के लिए पंजाब में सरकार बचाना आसान नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ में सीएम पोस्ट को लेकर तकरार
छत्तीसगढ़ में सीएम की कुर्सी को लेकर आंतरिक घमासान मचा है। वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंह देव अब सीएम पद चाह रहे हैं। ऐसे में सीएम भूपेश बघेल और मिनिस्टर सिंह देव का खेमा बंटा लग रहा है। सियासी संकट के बीच सीएम बघेल के समर्थन में कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह 15-16 विधायकों के साथ दिल्ली में कैंप किए हुए हैं। बृहस्पत सिंह का कहना है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के 70 विधायक हैं। 60 विधायक लिखित रूप से दे चुके हैं कि हम भूपेश बघेल के साथ हैं। एक व्यक्ति को खुश करने के लिए आलाकमान पूरी सरकार को नहीं झोंक सकता है। उन्होंने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ में 54 फीसदी ओबीसी हैं, उसी वर्ग से राहुल गांधी ने हमलोगों को सीएम दिया है। टीएस सिंह देव का खेमा दावा कर रहा है कि दिसंबर 2018 में सत्ता में आने के बाद पार्टी ने दोनों नेताओं के बीच आधे-आधे समय तक सीएम पोस्ट का दावा किया था। हाल में राहुल गांधी ने बघेल के साथ मीटिंग की थी और सीएम ने बार-बार दावा किया है कि उन्होंने लीडरशिप में बदलाव के लिए कोई संदेश नहीं दिया है। महत्वपूर्ण यह है कि कई G23 नेता भी निजी तौर पर सिंह देव का समर्थन करते दिख रहे हैं।
राजस्थान में भी सब ठीक नहीं
राजस्थान में कैबिनेट में फेरबदल लंबे समय से रुका है, स्टेट कॉरपोरेशन और जिले स्तर पर पार्टी यूनिट में भी पुनर्गठन प्रस्तावित है। इस बीच, राजस्थान के नेता सचिन पायलट और राहुल गांधी के बीच पिछले हफ्ते हुई मीटिंग से उन अटकलों को बल मिला है कि कांग्रेस नेतृत्व अगले कुछ महीनों में कोई बड़ा कदम उठाने की सोच रहा है। पायलट का खेमा काफी समय से उनकी बड़ी भूमिका या कहें कि सीएम पोस्ट चाह रहा है। बताते हैं कि सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद वह भी बड़े प्लान पर आगे बढ़ चुके थे लेकिन हाईकमान ने उन्हें मना लिया। वह कब तक चुप बैठेंगे, कहा नहीं जा सकता।
महाराष्ट्र में उद्धव सरकार में कांग्रेस एक तिहाई की साझेदार हैं। ऐसे में वहां उसके लिए ज्यादा स्कोप नहीं है। झारखंड में भी पार्टी के नेताओं को एकजुट रखना आसान नहीं होगा। वैसे भी ‘डूबता जहाज’ वाली छवि कांग्रेस के बिखराव की बड़ी वजह बनती जा रही है।
ऐसे वक्त में जब पार्टी के भीतर निराशा, मतभेद और टकराव का माहौल है, कांग्रेस नेतृत्व से खुलकर आगे आने और हालात को संभालने की उम्मीद की जाती है लेकिन अगर राहुल-प्रियंका को ही लीड रोल में समझा जाए तो उनके रुख से ऐसा नहीं लगता कि वे इस दिशा में गंभीरता से सोच रहे हैं। फिलहाल CWC की बैठक पर देश की नजरें हैं कि यहां से क्या कांग्रेस के लिए कुछ बेहतर स्थिति बन पाएगी? वैसे भी, चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के भीतर का विवाद बीजेपी को ही फायदा पहुंचाएगा। एमपी के सीएम शिवराज सिंह ने कह भी दिया कि जब तक राहुल गांधी हैं, हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। उनका इशारा कांग्रेस के ‘गृहयुद्ध’ की तरफ था।