हाइलाइट्स
- सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के कार्यक्रम में बोले चीफ जस्टिस
- कहा- संसद में गुणवत्ता वाली बहस की कमी, दुखदाई स्थिति है
- जो कानून बना रही विधायिका, उनमें स्पष्टता की कमी: सीजेआई
- संसद में बुद्धिजीवी और वकील न हों तो यही होता है, बोले CJI
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने संसद में पर्याप्त क्वालिटी बहस के बिना कानून पास होने पर चिंता जाहिर की है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ये दुखद है कि गुणवत्ता वाली बहस की कमी के कारण इन दिनों जो कानून बनाया जा रहा है उसमें स्पष्टता की कमी है। चीफ जस्टिस ने कहा कि पहले सदन में सकारात्मक बहसें होती थी और इस वजह से कानून के ऑब्जेक्ट को समझने में आसानी होती थी । स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट कैंपस में सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन द्वारा आयोजित समारोह में भाषण के दौरान चीफ जस्टिस ने ये बातें कही।
‘कानून में स्पष्टता की कमी से मुकदमेबाजी बढ़ रही है’
चीफ जस्टिस ने समारोह के दौरान कहा कि ये दुखदाई स्थिति है कि बहस का स्तर गिर रहा है। सदन में विधायिका जो कानून बना रहे हैं उसमें स्पष्टता का अभाव है। इस कारण लोगों को भारी परेशानी हो रही है और इससे मुकदमेबाजी बढ़ रही है। पहले कानून को लेकर सदन में व्यापक बहस होती थी। इससे कोर्ट को कानून के उद्देश्य और वस्तस्थिति समझने में सहायता मिलती थी।
उन्होंने इसके लिए उदाहरण देते हुए कहा कि जब इंडस्ट्रियल डिस्प्युट लॉ बनाया गया था तब लंबी बहस चली थी और तामिलनाडु के सदस्य मिस्टर राम मूर्ति ने इस पर विस्तार से चर्चा की थी। मुझे अभी भी याद है कि तब कैसे मिस्टर राममूर्ति ने विस्तार से इस कानून पर चर्चा की थी और इसके नतीजे और वर्किंग क्लास पर इसके प्रभाव के बारे में बताया था।
जस्टिस नरीमन के रिटायरमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति का रास्ता होगा साफ?
‘सदन में बुद्धिजीवी और वकील न हों तो ऐसा ही होता है’
चीफ जस्टिस ने कहा कि अब स्थिति दुखद है, खेदजनक स्थिति है कि कानून बिना पर्याप्त बहस के पास किया जा रहा है। हम देखते हैं कि कानून में बेहद अस्पष्टता है। कानून में काफी गैप होता है। हमें ये नहीं पता होता कि कानून बनाने के पीछे उद्देश्य क्या है। इस कारण मुकदमेबाजी बढ़ रही है और परेशानी बढ़ रही है और इससे सरकार और पब्लिक को घाटा हो रहा है। अगर सदनों में बुद्धिजीवी और वकील न हों तो ऐसा ही होता है। हमें और कुछ नहीं कहना है। लेकिन साथ ही हम कहना ये भी चाहते हैं कि लीगल कम्युनिटी को इस मामले में अगुवाई करनी चाहिए और सोशल और पब्लिक लाइफ में आगे आना चाहिए।
‘गांधी, नेहरू, पटेल और राजेंद्र प्रसाद ने पब्लिक लाइफ के लिए सबकुछ त्याग दिया था’
चीफ जस्टिस रमना ने इस मौके पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद का जिक्र किया और कहा कि उन्होंने इस मामले में अहम भूमिका निभाई और अपने प्रोफेशन, अपनी संपत्ति, अपनी फैमिली सबकुछ सबकुछ त्याग कर दिया। चीफ जस्टिस ने साथ ही कहा कि वकीलों को सिर्फ अपने आप में सीमित न रहें। सिर्फ पैसे और अपनी जिंदगी को आसान बनाने में न लगे रहें। आप प्लीज इस बारे में सोचें। हमें पब्लिक लाइफ में एक्टिवली भाग लेना चाहिए। कुछ अच्छे और नेक काम करना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि देश में कुछ अच्छा होगा।
संसद में बहस का स्तर गिरने से सीजेआई दुखी, बोले- ढंग की चर्चा नहीं होती, ऐसे ही पास हो जाते हैं कानून