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लीगल फोरम/राजेश चौधरी

प्रथम सूचना रिपोर्ट ( FRI) दर्ज होने के बाद किन मामलों में केस वापस हो सकता है और किन मामलों में शिकायती केस वापस नहीं ले सकता है यह बेहद अहम कानूनी सवाल है। कानूनी जानकारों के मुताबिक, गंभीर किस्म के अपराध जैसे रेप और मर्डर में समझौते के आधार पर केस रद्द नहीं हो सकता। इस बारे में कानून में क्या प्रावधान किया गया है, यह जानना जरूरी है।

इन मामलों में रद्द हो सकता है केस

दिल्ली हाई कोर्ट के वकील मुरारी तिवारी बताते हैं कि सीआरपीसी की धारा-320 के तहत आमतौर पर जो अपराध कम गंभीर किस्म के हैं उनमें समझौता हो सकता है। मसलन आपराधिक मानहानि, धमकी देना, जबरन रास्ता रोकना आदि या मामूली मारपीट का केस। कुछ अपवाद छोड़ दें तो 3 साल तक की सजा वाले केस इस दायरे में आते हैं। ऐसे मामले में अगर शिकायती चाहता है कि वह केस वापस ले ले तो कोर्ट के सामने अर्जी दाखिल करता है कि उसका आरोपी के साथ समझौता हो गया है और ऐसे में कार्रवाई बंद की जाए। कोर्ट अर्जी पर विचार करके कार्रवाई बंद कर देती है।

हाई कोर्ट केस रद्द करने का आदेश दे सकता है

दिल्ली हाई कोर्ट के ऐडवोकेट राजेश शर्मा बताते हैं कि अगर आरोपी और शिकायती पक्ष के बीच समझौता हो जाता है तो केस हाई कोर्ट की इजाजत से ही रद्द हो सकता है। इसके लिए धारा-482 के तहत अर्जी दाखिल की जाती है। मसलन दहेज प्रताड़ना का केस हो और दोनों पक्षों में समझौता हो गया हो। धोखाधड़ी का मामला हो और शिकायती व आरोपी के बीच समझौता हो जाए तो दोनों पक्षों के बीच समझौते का डॉक्यूमेंट तैयार होता है। उसमें लिखा जाता है कि दोनों पक्षों ने आपसी रजामंदी से केस में समझौता किया है और बिना किसी दबाव के शिकायती केस वापस लेना चाहता है। ऐसे मामले में हाई कोर्ट अर्जी से संतुष्ट होने पर केस रद्द करता है कि बिना किसी दबाव आपसी रजामंदी से केस वापस लिया जा रहा है। अगर कोर्ट संतुष्ट न हो तो अर्जी खारिज हो सकती है। इनमें दहेज प्रताड़ना, गैर इरादतन हत्या का प्रयास व जालसाजी आदि मामले आते हैं।

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रेप, मर्डर और फिरौती के लिए अपहरण में केस रद्द नहीं होता

कानूनी जानकार और दिल्ली हाई कोर्ट के वकील अमन सरीन बताते हैं कि गंभीर किस्म के मामले में समझौते के आधार पर केस खारिज नहीं होता है। जैसे रेप, मर्डर, डकैती, फिरौती के लिए अपहरण या महिलाओं के खिलाफ होने वाले सेक्सुअल ऑफेंस में हाई कोर्ट से भी केस रद्द नहीं होगा। ऐसे मामले में समझौते के आधार पर केस रद्द करने का कोई प्रावधान नहीं है। क्रिमिनल लॉयर विजय बिश्नोई बताते हैं कि 2012 में ज्ञान सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के केस में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि रेप, डकैती और मर्डर के केस में समझौते के आधार पर केस रद्द नहीं हो सकता। उस फैसले के पहले रेप से संबंधित मामलों में लड़का और लड़की के बीच समझौते के आधार पर केस खारिज हुए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में जो फैसला दिया उसके बाद इन मामलों में केस रद्द नहीं हो सकता। दरअसल ऐसे अपराध को सिर्फ पीड़ित के खिलाफ किया गया अपराध नहीं माना गया है बल्कि समाज के खिलाफ किया गया अपराध माना गया है। इसी वजह से आरोपी और पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर गंभीर किस्म के अपराध में केस रद्द नहीं हो सकता।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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