Crime News India


लेखकः शांतनु नंदन शर्मा
पूर्वोत्तर भारत इन दिनों दो अलग-अलग वजहों से चर्चा में है। एक, वहां के ओलिंपिक पदक विजेता खेलों में आशा के अग्रदूत बने हैं। दूसरे, वहां का अंतरराज्यीय सीमा संघर्ष, जो उन पुराने घावों की याद दिलाता है, जो अभी तक भरे नहीं हैं। पहली वजह क्षेत्र के मुख्यधारा में जुड़ने की प्रक्रिया को रफ्तार देगी, जबकि दूसरी भावनाएं भड़काकर आने वाले कल के लिए दिक्कत पैदा करेगी। पहली वजह वैश्विक मंच पर दो युवतियों की जीत है तो दूसरी, मुख्यमंत्रियों के विवाद को अच्छे से निपटाने में हुई हार।

लेकिन पहले अच्छी कहानी। पूरा देश अब मणिपुरी वेटलिफ्टर सैखोम मीराबाई चानू और असमिया मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को पहचानता है। चानू ने तोक्यो ओलिंपिक में सिल्वर पर कब्जा किया है, जबकि लवलीना ने अपना मेडल पक्का कर लिया है, बस उसका रंग स्पष्ट होना बाकी है। ये चीजें बाकी भारत के साथ नॉर्थ ईस्ट को तेजी से घुलने-मिलने में मदद करेंगी।

ज्यादातर लोगों को चानू का पहला नाम मीराबाई जाना-पहचाना लगेगा, लेकिन उनके परिवार का नाम- सैखोम उन्हें विदेशी लगेगा। जैसे मारवाड़ी राजस्थान के मूल निवासी जातीय समूह हैं, या कोंकणी दक्षिण-पश्चिम भारत में कोंकण इलाके के लिए स्वदेशी हैं, वैसे चानू मणिपुर के मूल निवासी जातीय समूह मैतेई से हैं। मैतेई मेइतिलोन (मणिपुरी) बोलते हैं, जो एक तिब्बती-बर्मी भाषा है और संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक है। वहीं लवलीना के परिवार का नाम बोरगोहेन, अहोम राजाओं के चोटी के सलाहकारों के लिए रिजर्व एक उपाधि थी। 1228 में असम में अहोम राजवंश की स्थापना करने वाले चाओ लुंग सुकफा, वर्तमान म्यांमार और चीन के युन्नान तक अपना साम्राज्य फैलाने वाले राज्य मोंग माओ के एक राजकुमार थे।

वेटलिफ्टर मीराबाई चानू और मुक्केबाज लवलीना

आज मीराबाई और लवलीना इंडियन आइडल्स हैं। अब एक मुश्किल सवाल। दोनों ही उन भारतीयों की तरह दिखते हैं, जो अक्सर देश के मेट्रो सिटीज जैसे नई दिल्ली और बेंगलुरु की उन जगहों में नस्लीय भेदभाव का शिकार होते हैं, जहां ये रहते हैं। ऐसे में यह नया लगाव कैसे खड़ा होता है? जबकि पूर्वोत्तर के लोगों के साथ नस्लीय भेदभाव जारी है तो क्या मीराबाई और लवलीना का उत्सव भारत के नए खेल प्रतीक के रूप में मनाया जा रहा है? कुछ भी हो, मीराबाई और लवलीना आशा तो जगाती ही हैं। फिर छह बार की विश्व बॉक्सिंग चैंपियन मेरी कॉम भी हैं। निश्चित रूप से मीराबाई और लवलीना के चेहरे बाकी भारतीयों को देश के विविध और भौगोलिक रूप से दूर-दराज के क्षेत्रों के बारे में सांस्कृतिक रूप से जागरूक करने का काम कर सकते हैं।

अब चलते हैं बुरी खबर की ओर। यह असम और मिजोरम के बीच एक संवेदनशील सीमा विवाद से निपटने में हुई नाकामी के बारे में है। ऐसी चीज जो क्रोध और अलगाव भड़काती है, जो उग्रवाद के पनपने के लिए बुनियादी तत्व हैं। असल में, इस संघर्ष को कहीं दूर होने वाली एक अलग-थलग घटना के रूप में खारिज करना विनाशकारी होगा।

बहुतों को 26 जुलाई को हुई घटना याद नहीं होगी। इस दिन पुलिस के एक आईजी लेवल के अधिकारी ने तकरीबन 200 सशस्त्र कर्मियों को कहा कि वे पड़ोसी राज्य के पुलिस बल को एक चौकी खाली करने के लिए ‘मनाएं’। इसके बाद जो हुआ, वह बेहद दुखद था। लैलापुर (असम)- वैरेंगटे (मिजोरम) सीमा पर, असम के पुलिसकर्मियों पर मिजोरम पुलिस ने पास की पहाड़ियों से मशीनगन से गोलियां चलाईं, जिसमें छह की मौत हो गई और एसपी रैंक के एक अधिकारी सहित 50 से अधिक लोग घायल हो गए। वहीं मिजोरम की ओर से एक पुलिसकर्मी समेत दो लोग घायल हुए।

ऐसे विषम हालात से निपटने के लिए काफी संवेदनशीलता चाहिए। मसले पर बातचीत करने वालों को संघर्ष के इस इलाके का इतिहास खंगालने की जरूरत है। 1966 में भारतीय वायु सेना ने मिजोरम की वर्तमान राजधानी आईजॉल पर बमबारी की थी। वजह यह थी कि मिजो नैशनल फ्रंट (एमएनएफ) के गुरिल्लाओं ने शहर को घेर लिया था। यह आजाद भारत के अंदर सेना की बमबारी का इकलौता उदाहरण है।

ऐसे में आजादी के 75वें साल में हमें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि एक राष्ट्र के रूप में हम क्या चाहते हैं- लवलीना या लैलापुर?

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





Source link

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *