Crime News India


हर्ष वी. पंत

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन के हालिया भारत दौरे से कई महत्वपूर्ण बातें निकलकर आई हैं। अफगानिस्तान, चीन आदि के साथ ही ब्लिंकन ने तीन-चार चीजें टच की हैं। वैक्सीन डिप्लोमैसी को आगे बढ़ाते हुए इसके प्रॉडक्शन के लिए 2.5 करोड़ डॉलर दिया है। क्वाड देशों में वैक्सीन प्रॉडक्शन कैसे बढ़ाया जाएगा, इसकी बात की है। उनके आने से पहले हिंदुस्तान में डेमोक्रेसी और ह्यूमन राइट्स की काफी चर्चा थी। हमने देखा कि भारत में क्रिटिक्स को लग रहा था कि डेमोक्रेसी और ह्यूमन राइट्स पर बड़ा फोकस होगा। इससे भारत-अमेरिका के बीच एक बड़ा डायवर्जन खुलेगा, क्योंकि बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन का इस ओर बड़ा झुकाव है। मगर भारत और अमेरिका दोनों ने ही बड़ी मैच्योरिटी के साथ इस विषय को हैंडल किया।

बदली धारणा

ब्लिंकन का बयान देखें तो उनका कहने का मतलब था कि उनके यहां भी चैलेंजेस हैं और डेमोक्रेसी आगे बढ़ रही है, इंडियन डेमोक्रेसी भी बढ़ रही है। और चूंकि हम डेमोक्रेसी हैं, इसलिए इस मामले में आपस में हम खुले तौर पर बात कर सकते हैं। भारत ने भी इस पर बात करने में कोई झिझक नहीं दिखाई और मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ा बदलाव आया है। एक समय यह विषय ऐसा हुआ करते थे कि हम बहुत नाजुक तरीके से उसे हैंडल करते थे। हम काफी नर्वस हो जाते थे कि मानवाधिकार या कश्मीर पर बात होगी तो हम क्या करेंगे। मगर अब भारत आत्मविश्वास से युक्त एक राष्ट्र की तरह इन विषयों पर दूसरे देशों से बात करने को तैयार दिखता है, खासकर अमेरिका के साथ। तो मुझे लगता है कि ब्लिंकन के दौरे के बाद रिश्तों में परिपक्वता एक अलग स्तर पर पहुंचती दिख रही है, क्योंकि इस विषय को लेकर बहुत चर्चाएं थीं और मोदी सरकार के आलोचक इसे बार-बार दोहरा रहे थे। अमेरिका में भी कई ऐसे आलोचक हैं, उनका अपना कॉकस है। मानवाधिकार को लेकर प्रेशर ग्रुप्स हैं जो बाइडेन प्रशासन पर दबाव बनाए हुए हैं। लेकिन जिस तरह से ब्लिंकन ने इस विषय को हिंदुस्तान में उठाया, वह दिखाता है कि दो परिपक्व लोकतंत्र किस तरह से नाजुक मसलों पर सहजता से संवाद कर सकते हैं और कैसे भारत और अमेरिका के बीच तनाव के आसार कम हो गए हैं।

यह तो सब मानते हैं कि भारत अमेरिका के बीच संबंध अच्छे हो रहे हैं। चीन को भी दोनों देश एक तरह से ही देखते हैं। इसके चलते पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के रिश्तों में काफी गर्माहट आई है। बाइडेन प्रशासन ने भी चीन को लेकर काफी कड़ा रुख अपनाया है। इसके चलते उनकी ओर से क्वॉड को ज्यादा बड़े प्लेटफॉर्म के रूप में खड़ा करने की कोशिश भी हो रही है। भारत का चीन के साथ जिस तरह से गतिरोध चल रहा है, उससे भी स्पष्ट है कि भारत समान सोच वाले देशों के साथ मिलकर काम करना चाहता है, जिसमें अमेरिका प्रमुख है। लेकिन जो समस्याएं बन रही थीं, वे चीन से संबंधित नहीं थीं। समस्याएं तो अफगानिस्तान और मानवाधिकार को लेकर बन रही थीं। ह्यूमन राइट्स में हमने देखा कि भारत और अमेरिका ने काफी कुछ मैनेज किया और अफगानिस्तान के मसले पर हमने देखा कि दोनों देश एक ही तरह की भाषा बोल रहे हैं। भारत और अमेरिका, दोनों ने यह स्पष्ट किया कि राजनीतिक सुलह-समझौते के बगैर अफगानिस्तान में तालिबान एक लेजिटीमेट एक्टर की तरह काम नहीं कर सकता। राजनीतिक प्रक्रिया को दोनों ने प्राथमिकता में रखा है और यह बात अमेरिका ने स्पष्ट तौर पर भारत में कही, क्योंकि भारत में इसे लेकर काफी अंदेशा रहा है। जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है, अमेरिका अफगानिस्तान से पूरी तरह से वापसी नहीं कर रहा है। अमेरिका अफगानिस्तान पर नजर बनाए रखेगा, चाहे उसकी सेनाएं वहां से चली जाएं, चाहे वहां पर उसका फुटप्रिंट कम हो जाए, लेकिन आतंकवाद पर अंकुश लगाने का काम अमेरिका वह करता रहेगा। इससे भारत के अंदर भी थोड़ा भरोसा बढ़ा है इस बात को लेकर कि अमेरिका वहां भारत के हितों को भी ध्यान में रखेगा।

क्वाड, आतंकवाद, अफगानिस्तान… इशारों में पाक, चीन, तालिबान को बहुत कुछ समझा गए अमेरिकी विदेश मंत्री

अमेरिका ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ क्वॉड बनाने की जो घोषणा कुछ समय पहले की थी, उससे भारत में काफी विवाद खड़ा हुआ था। कई लोगों ने इस पर कहा था कि इसका क्या मतलब है, और यह बात अफगानिस्तान क्यों मानेगा कि अमेरिका पाकिस्तान को केंद्र में रखकर कोई बात करे। लेकिन यहां आकर ब्लिंकन ने साफ किया कि ऐसा नहीं होने वाला और यह कि अमेरिका भारत को एक अहम भूमिका में देखता है। भारत के हितों को भी ध्यान में रखा जाएगा। जो वैधता तालिबान को मिलनी है, वह राजनीतिक सुलह-समझौते के जरिए ही मिलेगी और इसमें सभी पक्षों को साथ रखना पड़ेगा। तो मुझे लगता है कि इससे भारत में अफगानिस्तान को लेकर जो माहौल बन रहा था, वह बदला है।

ट्रंप पॉलिसी बरकरार

इसके अलावा इसी क्वॉड में घोषणा हुई थी कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में वैक्सीन उत्पादन और वितरण का एक केंद्र बनेगा, तो ब्लिंकन के आने के बाद यह साफ है कि अब भारत इसका हब बनेगा, जिसमें उसका साथ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया देंगे। ब्लिंकन ने यह बात रखी कि कैसे उत्पादन बढ़े और भारत ने यह पक्ष रखा कि जो वैक्सीन प्रॉडक्शन हो, वह कैसे दुनिया के गरीब देशों तक भी पहुंचे, क्योंकि कोई भी सुरक्षित नहीं है, जब तक सारे सुरक्षित नहीं हैं। इस बात पर दोनों में ही सामंजस्य बना। ऐसे में यह साफ है कि अमेरिकी विदेश नीति में भारत का स्थान है काफी महत्वपूर्ण है। जबसे बाइडेन आए हैं, दोनों तरफ से उच्च स्तरीय संवाद बना हुआ है। कहा जा रहा था कि ट्रंप प्रशासन के मुकाबले बाइडेन थोड़े टाइट होंगे, लेकिन जिस तरह से दोनों देशों के नेताओं का मिलना-जुलना जारी है, उससे साफ है कि बाइडेन ने भी ट्रंप की वह पॉलिसी जारी रखी है, जिसमें भारत के साथ काफी गर्माहट भरे रिश्ते बनाने की बात थी।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





Source link

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *