हाइलाइट्स
- सैलरी में मिलिट्री सर्विस पे (MSP) कंपोनेंट की वजह से है असमानता
- ब्रिगेडियर रैंक के बाद एमएसपी सैलरी में अलग कंपोनेंट नहीं रह जाता
- तत्कालीन रक्षामंत्री जेटली ने उठाया था कदम लेकिन बाद में फाइल हुई बंद
डिफेंस सर्विसेज के लोअर रैंक की सैलरी और पेंशन में विसंगतियों अकसर सामने आती हैं। इसके बावजूद सेना में मेजर जनरल और उससे ऊपर के सीनियर रैंकों के बीच वेतन बेमेल से संबंधित एक स्पष्ट विसंगति का मुद्दा वर्षों से लंबित है। केंद्र सरकार उस विसंगति को दूर करने में विफल रही है जिसमें सीनियर रैंक के अधिकारियों को अपने जूनियर्स की तुलना में कम सैलरी और पेंशन मिल रही है। कुछ मामलों में, कर्नल भी लेफ्टिनेंट-जनरलों की तुलना में अधिक सैलरी ले रहे हैं।
विसंगति की जड़ मिलिट्री सर्विस पे (MSP) कंपोनेंट है जो ब्रिगेडियर के पद तक के अधिकारियों के वेतन में 15,500 रुपये है। ब्रिगेडियर के पद के बाद यह अलग से सैलरी कंपोनेंट नहीं रह जाता है। मेजर जनरल से ऊपर के रैंक के लिए प्रोमोशन पर जोड़ा जाता है। इसके परिणामस्वरूप निचले रैंक के अधिकारियों को हाई रैंक के अधिकारियों की तुलना में अधिक पेमेंट मिलता है।
एक लेफ्टिनेंट-कर्नल, कर्नल और ब्रिगेडियर को क्रमशः 2,26,200 रुपये, 2,29,500 रुपये और 2,33,100 रुपये प्रति माह तक का भुगतान किया जाता है। जबकि एमएसपी कंपोनेंट जोड़ने के बाद भी आर्मी के वाइस चीफ को 2,25,000 रुपये से अधिक नहीं मिलता है। स्पेशल कंपोनेंट के जुड़ने से, लेफ्टिनेंट-कर्नल से लेकर ब्रिगेडियर तक के सीनियर अधिकारियों का पे-स्केल मेजर-जनरल से लेकर लेफ्टिनेंट-जनरल तक के पे-स्केल से अधिक हो गया है।
रक्षा मंत्रालय (MoD) के सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने विसंगति को दूर करने की कोशिश की थी। लेकिन कथित तौर पर फ़ाइल को वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने उन्हें वापस रेफर किए बिना बंद कर दिया। बाद में, मामले को फिर से शुरू किया गया था, लेकिन वित्त मंत्रालय की तरफ से कई सवालों के घेरे में आ गया था। सूत्रों ने इसे पूरी तरह से ‘थकाऊ और संदर्भ से बाहर’ करार दिया था।