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नई दिल्ली
अफगानिस्तान पर कब्जे के 22 दिनों के बाद तालिबान ने अपनी सरकार का ऐलान किया। मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को प्रधानमंत्री बनाया गया है। वहीं अमेरिका के मोस्ट वॉन्टेड आतंकी को तालिबान सरकार में अफगानिस्तान का गृह मंत्री बनाया गया है। तालिबान सरकार में नंबर एक और दो पद पर वैश्विक आतंकियों की नियुक्ति से दुनिया के अधिकांश देश हैरत में पड़ गए हैं। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल है कि तालिबान को आखिर मान्यता कैसे मिलेगी।

प्रतिबंधित सूची से कैसे निकलेगा नाम, UNSC को करना है फैसला
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद UNSCकी औपचारिक सूची के अनुसार 1988 सैंक्शन लिस्ट में तालिबान के 135 नेताओं के नाम हैं। इस लिस्ट में हक्कानी नेटवर्क के सिराजुद्दीन हक्कानी का भी नाम है। प्रतिबंधित सूची में तालिबान से जुड़े 5 समूह शामिल हैं जिसमें हक्कानी नेटवर्क भी है जिसे 29 जून 2012 में शामिल किया गया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्य के रूप में भारत का चयन दो वर्षों के लिए हुआ है। भारत को तीन महत्वपूर्ण समितियों की अध्यक्षता का दायित्व मिला। जिसमें तालिबान प्रतिबंध समिति, 2022 के लिए आतंकवाद प्रतिरोध समिति और लीबिया प्रतिबंध समिति।

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तालिबान प्रतिबंध समिति की स्थापना 17 जून 2011 सुरक्षा परिषद संकल्प 1988 के तहत की गई। 988 सैंक्शन समिति के अनुसार सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित सूची से बाहर निकलने के लिए किसी सदस्य को चाहे वो सुरक्षा परिषद का सदस्य ना भी हो प्रस्ताव रखना होता है। UNSC के सभी 15 सदस्यों का उस प्रस्ताव का समर्थन करना होता है। अब देखना होगा कि तालिबान की नई सरकार में वो नाम जो प्रतिबंधित सूची में शामिल हैं उस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से क्या फैसला किया जाता है।

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अफगानिस्तान मसले पर रूस और अमेरिका दोनों से बात

अफगानिस्तान मसले पर आज राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और रूसी एनएसए निकोले पेत्रुशेव के बीच बातचीत हो रही है। अफगानिस्तान मसले पर ही अमेरिका खुफिया एजेंसी सीआईए प्रमुख बिल बर्न्स के साथ भी अजीत डोभाल की बैठक हुई। बर्न्स की यात्रा क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों संदर्भों में भारत और अमेरिका के लिए बढ़ती सुरक्षा चिंताओं को उजागर करती है क्योंकि तालिबान काबुल में सत्ता में आ गया है।आज की बैठक के अलावा ब्रिक्स वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भी अफगानिस्तान के मसले पर भी बातचीत होगी जहां मोदी, पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग होंगे। वहीं अगले सप्ताह एससीओ शिखर सम्मेलन मुख्य रूप से अफगानिस्तान पर केंद्रित होने की उम्मीद है। तालिबान सरकार ने सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री बनाया है। सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई की हिटलिस्ट में शामिल है।

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जानकारों का कहना है कि तालिबान की कार्रवाइयों पर करीब से नजर रखी जा रही है, पश्चिमी सरकारों ने संकेत दिया है कि अधिकांश सहायता की बहाली इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या अफगानिस्तान के नए शासक बुनियादी अधिकारों का सम्मान करते हैं। जबकि तालिबान ने समय-समय पर और अधिक उदार शासन करने का वादा किया है, और महिलाओं को काम करने की अनुमति दी जाएगी। लोगों को इस पर संदेह है पिछले तालिबान शासन के दौरान, जब उसने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था तब लड़कियों के स्कूल और महिलाओं के कार्यस्थल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

तालिबान को लेकर मुश्किल में पड़े कई देश
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कल कहा कि चीन, पाकिस्तान, रूस और ईरान यह समझ नहीं पा रहे हैं कि तालिबान के साथ उन्हें क्या करना है । तालिबान के अपनी अंतरिम सरकार के ब्योरे की घोषणा के कुछ समय बाद बाइडन ने संवाददाताओं से कहा कि तालिबान के साथ चीन की वास्तविक समस्या है। बाइडन ने कहा चीन को तालिबान के साथ वास्तविक समस्या है। मुझे यकीन है कि वे तालिबान के साथ कुछ हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा ही पाकिस्तान, रूस, ईरान भी कर रहे हैं। तालिबान द्वारा काबुल में अपनी नयी अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, वे सभी (चीन, पाकिस्तान, रूस और ईरान) समझ नहीं पा रहे हैं कि अब वे क्या करें। तो देखते हैं कि आगे क्या होता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या होता है।

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