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अफगानिस्तान के विषम हालात पर केंद्र सरकार की ओर से गुरुवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक अपने उद्देश्यों में सफल हुई कही जा सकती है। तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद से ही वहां से विचलित करने वाली तस्वीरें, वीडियो और खबरें आ रही हैं। ऐसे में आम लोगों के बीच ही नहीं तमाम राजनीतिक दलों के मन में भी यह सवाल उठना लाजिमी था कि आखिर हमारी सरकार इस पूरे घटनाक्रम को किस रूप में देख रही है। अफगानिस्तान के साथ न केवल हमारा सदियों पुराना रिश्ता रहा है, बल्कि वहां हाल के वर्षों में हमने बड़े पैमाने पर निवेश भी किया है। इसके अलावा वहां पैदा हुई राजनीतिक अस्थिरता आम तौर पर पूरी दुनिया और खास तौर पर दक्षिण एशिया की शांति के लिए गंभीर चुनौती साबित हो सकती है।

सर्वदलीय बैठक में सरकार ने साझा चिंता के इन तमाम बिंदुओं को संबोधित किया और जहां तक संभव था अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ कहा कि अफगानिस्तान में मौजूदा हालात अच्छे नहीं हैं, लेकिन फिलहाल भारत की पहली प्राथमिकता है वहां फंसे लोगों को सुरक्षित निकालना। तमाम मुश्किलों के बावजूद वह अपना यह अभियान जारी रखे हुए है। जहां तक अन्य पहलुओं की बात है तो भारत सरकार तमाम मित्र देशों से संपर्क में है, वहां शांति और व्यवस्था स्थापित करने के साथ ही वैकल्पिक सरकार गठन की कोशिशों पर भी बात हो रही है, लेकिन इस मामले में धैर्य और संयम बनाए रखना होगा। ऐसे मामले जल्दबाजी में तय नहीं होते।

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विदेश मंत्री ने यह कहने में भी कोई संकोच नहीं किया कि तालिबान दोहा में किए गए अपने वादों पर कायम नहीं रहे। वहां तय हुआ था कि काबुल में अफगान समाज के हर तबके की नुमाइंदगी वाली सरकार के जरिए धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र को सुनिश्चित किया जाएगा। फिर भी, उन्होंने यह साफ किया कि सरकार अफगानिस्तान में हरेक स्टेक होल्डर से संपर्क बनाने और संवाद प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश कर रही है। लेकिन जहां तक रुख तय करने की बात है तो फिलहाल तो ‘वेट एंड वॉच’ की पॉलिसी ही सबसे उपयुक्त है।

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इसे भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का सबूत ही कहा जाएगा कि घरेलू राजनीति में कई मसलों पर एक-दूसरे का तीव्र विरोध कर रहे तमाम दल अफगानिस्तान के सवाल पर सरकार के सुर में सुर मिलाए नजर आए। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने तमाम दलों की भावना को व्यक्त करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है, वह पूरे देश की समस्या है। कहने की जरूरत नहीं कि सही मौके पर उभर आने वाली ऐसी राजनीतिक सर्वसम्मति बेहद अहम होती है। यह जहां विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार को ताकत देती है, वहीं देश में लोकतंत्र की जड़ को मजबूत बनाती है।

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