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हर बीट के साथ शरीर में थिरकन पैदा करता संगीत, धीमे-धीमे रगों में घुलता नशा और अय्याशी की पूरी आजादी… अधिकतर रेव पार्टियों में कमोबेश यही नजारा दिखता है। म्‍यूजिक, ड्रग्‍स और सेक्‍स की इस दुनिया में आने के लिए जेब में माल और ‘कॉन्‍टैक्‍ट्स’ होना जरूरी है। मुंबई, पुणे, दिल्‍ली-एनसीआर, बेंगलुरु समेत कई कॉस्‍मोपॉलिटन शहरों में न जाने कितनी रेव पार्टियां हो चुकी हैं। बेहद गोपनीय ढंग से की जाने वाली इन पार्टियों में रईसजादों का मजमा लगता है।

क्‍या है रेव पार्टियों का इतिहास?

80 और 90 के दशक में दुनिया बड़ी तेजी से रेव पार्टियों से वाकिफ हुई। हालांकि ऐसी पार्टियों की शुरुआत उससे करीब 20-30 साल पहले हो चुकी थी। लंदन में होने वाली बेहद जोशीली पार्टियों को ‘रेव’ कहा जाता है। अमेरिकी न्‍याय विभाग का एक दस्‍तावेज बताता है कि 1980s की डांस पार्टियों से ही रेव का चलन निकला। जैसे-जैसे तकनीक और ड्रग्‍स का जाल फैला, रेव पार्टियों की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। भारत में रेव पार्टियों का चलन हिप्पियों ने गोवा में शुरू किया। इसके बाद देश के कई शहरों में रेव पार्टियों का ट्रेंड बढ़ा।

रेव पार्टियों में क्‍या-क्‍या होता है?

रेव पार्टियों में शामिल युवाओं को ‘मस्‍ती’ करने की पूरी छूट होती है। एंट्री के लिए भी अच्‍छी-खासी रकम लगती है। भीतर हजारों वाट के संगीत पर थिरकते युवा होते हैं। कोकीन, हशीश, चरस, एलएसडी, मेफेड्रोन, एक्‍सटसी जैसे ड्रग्‍स लिए जाते हैं। अधिकतर रेव पार्टियों में ड्रग्‍स उपलब्ध करने का जिम्‍मा ऑर्गनाइजर्स का होता है। कुछ रेव पार्टियों में ‘चिल रूम्‍स’ भी होते हैं जहां खुलेआम सेक्‍स चलता है। कई क्‍लब्‍स में ड्रग्‍स के कुछ साइड-इफेक्‍ट्स जैसे डिहाड्रेशन और हाइपरथर्मिया को कम करने के लिए पानी और स्‍पोर्ट्स ड्रिंक्‍स भी उपलब्‍ध कराई जाती हैं।

टेंशन बढ़ा रहा क्‍लब ड्रग्‍स का बढ़ता इस्‍तेमाल

भारत में गोवा के अलावा हिमाचल प्रदेश की कुल्‍लू घाटी अपनी रेव पार्टियों के लिए मशहूर है। बेंगलुरू भी रेव हॉटस्‍पॉट के रूप में उभरा है। पुणे, मुंबई समेत कई अन्‍य टियर-1 शहरों में भी रेव पार्टियां पकड़ी गई हैं। मार्च 2007 में पुणे में एक रेव पार्टी से 280 लोग गिरफ्तार किए गए थे। पुलिस सादे कपड़ों में रेव पार्टियों पर छापे मारती है। वहां मिले लोगों पर नारकोटिक ड्रग्‍स एंड साइकोट्रॉपिक्‍स सबस्‍टेंसेज एक्‍ट 1985 और इंडियन पीनल कोड के तहत कार्रवाई होती है।

कौन-कौन से ड्रग्‍स का होता है इस्‍तेमाल?

भारत की ज्‍यादातर रेव पार्टियों में एक्‍सटसी पिल्‍स, कोकीन और एसिड (लिसर्जिक एसिड डाईथिलामाइड), कीटामाइन, गांजा, हशीश का इस्‍तेमाल होता है। इनमें से ज्‍यादातर ड्रग्‍स नैचरल नहीं है, उन्‍हें केमिकल लैब में सिंथेसाइज किया जाता है।

ज्‍यादातर ड्रग्‍स का असर करीब 8 घंटे तक रहता है। कोकेन एक ताकतवर नर्वस सिस्‍टम स्टिमुलेंट है। इसका असर 15 मिनट से लेकर घंटे भर तक रहता है। यह अलर्टनेस बढ़ाता है, लेने वाले को लगता है कि सब कुछ मस्‍त है। एक्‍सटसी यानी MDMA रेव पार्टियों का एक मशहूर ड्रग है। इस ड्रग्‍स का असर संगीत, लाइट और छुअन के साथ बढ़ता है।

ओवरडोज से लेकर बेकाबू होने का खतरा

ज्‍यादातर ड्रग्‍स अवैध रूप से हासिल किए जाते हैं और उनमें मिलावट होती है। जाहिर है इनके साइड इफेक्‍ट्स भी होते हैं। मामूली साइड इफेक्‍ट्स में दिल की धड़कन बढ़ना, बेचैनी, सिर घूमना, हिंसक व्‍यवहार हो सकते हैं। NCBI पर उपलब्‍ध एक रिसर्च पेपर के अनुसार, गंभीर मामलों में मौत आम है। दुनियाभर की रेव पार्टियों में ड्रग्‍स ओवरडोज से मौतों की सैकड़ों रिपोर्ट्स उपलब्‍ध हैं। साल 2017 में अमेरिकी अखबार LA टाइम्‍स ने रेव पार्टियों में जाने वाले 29 लोगों की कहानियां छापीं जो ड्रग्‍स ओवरडोज से मारे गए।



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By admin

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