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नई दिल्ली
28 सितंबर नहीं, 29 सितंबर को ही सही कांग्रेस के कद्दावर नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर ली। 48 घंटे पहले से ही इसकी चर्चा थी। दरअसल, कैप्टन सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद से नाराज चल रहे हैं और ऐसे में उनके बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। दोनों नेताओं की यह बहुचर्चित मीटिंग 50 मिनट तक चली। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस नेता बीजेपी में शामिल होंगे या पंजाब चुनाव से पहले नई पार्टी बनाकर बीजेपी का समर्थन लेंगे। इतना जरूर है कि दोनों ही परिस्थितियों में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।

हालांकि कैप्टन खेमे की ओर से बताया गया है कि वह किसानों के मुद्दों को लेकर गृह मंत्री से मिले। यहां एक बात गौर करने वाली है कि एक दिन पहले जब कैप्टन पंजाब से दिल्ली के लिए प्लेन में बैठे भी नहीं थे और मीडिया में शाह से मुलाकात की खबरें चल रही थीं तो उनके सलाहकार ने ट्वीट कर अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की थी। कहा गया कि वह निजी दौरे पर हैं और किसी नेता से उनकी मुलाकात तय नहीं है। उसी दिन नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और अब एक दिन बाद कैप्टन गृह मंत्री के घर जाकर उनसे मुलाकात करते हैं।

यह बैठक इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद सिंह ने अपने पत्ते नहीं खोले थे, लेकिन दावा किया था कि उन्होंने राजनीति नहीं छोड़ी है और वह अंत तक लड़ेंगे।

BJP में जाने की अटकलों के बीच अमित शाह से मिले कैप्‍टन अमरिंदर, फिर बताया क्‍या हुई बात?
तस्वीर दे रही संकेत
दोनों के मुलाकात की सामने आई तस्वीर काफी कुछ कहानी बयां करती है। हाथ मिलाते हुए शाह के चेहरे पर मुस्कान है और कांग्रेस के दिग्गज की नजरें झुकी हैं जैसे वह कृतज्ञता व्यक्त कर रहे हों। खैर, कैप्टन अमरिंदर के भविष्य की योजनाओं पर कोई स्पष्टता नहीं है। उन्होंने ट्वीट कर बताया, ‘केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी से दिल्ली में मिला। कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन पर चर्चा की और उनसे कानूनों को रद्द करने, एमएसपी की गारंटी देने के साथ इस संकट का समाधान निकालने का अनुरोध किया।’

#NoFarmersNoFood के साथ सिंह ने तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को अपना समर्थन दिया है। इसे अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश माना जा रहा है। इससे एक बात और साफ हो जाती है कि पंजाब की राजनीति में आज भी किसान आंदोलन सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। यह भी तय है कि कैप्टन का अगला कदम बहुत कुछ किसानों के समर्थन पर केंद्रित होगा।

किसानों का मुद्दा सुलझाएंगे कैप्टन
यह भी चर्चा है कि अपने-अपने रुख पर अड़े केंद्र सरकार और किसानों के बीच फिर से बातचीत शुरू करने के लिए अमरिंदर मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं। अगर इसमें सफलता मिलती है तो तनातनी खत्म होगी और पूर्व सीएम प्रदर्शनकारियों के साथ मजबूती से खड़े दिखेंगे। उधर, कैप्टन की बदौलत बीजेपी खुद को किसानों के और करीब ले जा सकेगी।

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सियासी हलकों में चर्चा यह भी है कि कैप्टन कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बना सकते हैं और हो सकता है कि वह बीजेपी से समर्थन लें। फिलहाल इस मुलाकात को हल्के में नहीं लिया जा सकता है क्योंकि यह ऐसे समय में हुई है जब पंजाब संकट फिर से गहरा गया है। उनके और गांधी परिवार में तनाव भी दिख रहा है। उन्हें सीएम पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तो उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व पर अपमानित करने का आरोप लगाया था, वह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अनुभवहीन बता चुके हैं।

मोदी से मुलाकात क्यों नहीं
पहले कहा जा रहा था कि कैप्टन पीएम मोदी और बीजेपी चीफ जेपी नड्डा से भी मिलेंगे। अब कहा जा रहा है कि दोनों पक्षों में और ज्यादा समझ बढ़ने के बाद ही पीएम से उनकी मुलाकात संभव है। शाह से मुलाकात के एक मायने यह भी निकाले जा रहे हैं कि वह कांग्रेस हाईकमान के साथ संबंधों को फिर से सुधारने के मूड में नहीं हैं।

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कैप्टन और बीजेपी एक पिच पर
कैप्टन और बीजेपी में काफी कुछ समानताएं हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू पर यह कहकर निशाना साधा था कि अगर सिद्धू पंजाब के सीएम बने तो यह देश की सुरक्षा के लिए खतरा होगा। इसके बाद बीजेपी भी इसी पिच पर अमरिंदर की बात को आगे बढ़ाते हुए सिद्धू पर निशाना साधने लगी। राष्ट्रवाद, बीजेपी की सबसे मजबूत पिच रही है। मुख्यमंत्री रहते हुए भी जब जलियांवाला बाग के रिनोवेशन को लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाए थे, तब अमरिंदर सिंह ने केंद्र सरकार का बचाव किया था। अमरिंदर सिंह के लिए हमेशा बीजेपी के मन में सॉफ्ट कॉर्नर रहा है क्योंकि वह राष्ट्रवादी हैं। पंजाब में कांग्रेस को झटका देने के लिए बीजेपी कैप्टन को समर्थन दे सकती है।

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पंजाब में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव हैं और बीजेपी के पास वहां खोने के लिए अभी कुछ नहीं है। न संगठन, न सहयोगी। बीजेपी का पुराना सहयोगी अकाली दल अलग हो गया है और पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच मुकाबला होता दिख रहा है। अमरिंदर साथ आएं या कांग्रेस से अलग पार्टी बनाएं- दोनों ही स्थितियों में बीजेपी खुद को अच्छी स्थिति में देख रही हैं।

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इधर, किसान आंदोलन बीजेपी के लिए सिरदर्द दे रहा है। अगले साल विधानसभा चुनावों को देखते हुए वह भी इस मुद्दे का समाधान जरूर चाहेगी, जिससे जनता में एक अच्छा संदेश जाए। हालांकि सरकार ने कृषि कानूनों को रद्द करने की किसानों की मांग को मानने से इनकार कर दिया है लेकिन यह जरूर कहा है कि MSP को जारी रखा जाएगा और बार-बार इसे दोहराया गया है। हालांकि, किसान लिखित में एमएसपी सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं, अगर ऐसा होता है तो पंजाब ही नहीं यूपी समेत चुनाव वाले सभी राज्यों में यह गेमचेंजर हो सकता है।

कांग्रेस के लिए चल रहा मुश्किल वक्त
कांग्रेस के सामने अजब उलझन है। वह एक नेता को संभालती है तो दूसरा खिसक जाता है। सिद्धू के खेमे को शांत करने के लिए कैप्टन को हटाया गया लेकिन नई सरकार बने ज्यादा समय नहीं बीते और सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया। अब पार्टी उन्हें मनाने की कोशिश करने की सोच रही होगी तभी कैप्टन की शाह से मुलाकात ने नई टेंशन दे दी है। नवजोत सिंह सिद्धू को मनाने की कवायद जारी है। पंजाब में प्रदेश स्तर के नेता सिद्धू को मनाने के प्रयास में कामयाब होते नहीं दिख रहे क्योंकि सिद्धू ने एक वीडियो जारी कर स्पष्ट कहा है कि वह अपने सिद्धांतों से समझौता करने वाले नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह मुश्किल समय है।



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