हाइलाइट्स
- स्किन टू स्किन टच मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया
- संबंधित पक्षकार तीन दिनों में लिखित दलील पेश कर सकते हैं
- ‘हाई कोर्ट का फैसला गलत नजीर बनेगा और यह खतरनाक होगा’
सुप्रीम कोर्ट ने ‘स्किन टू स्किन टच’ मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के दिए फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि वो स्किन टू स्किन टच मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दे। उधर, राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी अलग से अर्जी दाखिल कर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग के अंदरूनी अंग को बिना कपड़े हटाए छूना सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है। उसने अपने फैसले में कहा कि जब तक स्किन से स्किन का टच न हो, तब तक यौन दुराचार नहीं माना जा सकता है। इस फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने 27 जनवरी को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली बेंच ने मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा है कि संबंधित पक्षकार इस मामले में तीन दिनों में लिखित दलील पेश कर सकते हैं। मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलील पेश करते हुए कहा कि वह भी अटॉर्नी जनरल की दलील से सहमति जताते हुए वही दलील पेश करते हैं।
इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने सर्वोच्च अदालत में कहा है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज किया जाए जिसमें पोक्सो के तहत अपराध के लिए स्किन टू स्किन टच अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि हाई कोर्ट का फैसला गलत नजीर बनेगा और यह खतरनाक होगा। उन्होंने दलील दी कि पोक्सो कानून के तहत स्किन टू स्किन टच अनिवार्य नहीं है और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करने के लिए अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई।