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नई दिल्‍ली
टू-फिंगर टेस्‍ट दोबारा चर्चा में है। कोयंबटूर में एक महिला अधिकारी से रेप की घटना के बाद यह सुर्खियों में है। मामला भारतीय वायुसेना से जुड़ा है। इसमें इंडियन एयर फोर्स (IAF) की एक महिला अधिकारी ने अपने सहयोगी फ्लाइट लेफ्टिनेंट पर रेप का आरोप लगाया है। महिला अधिकारी की शिकायत पर छत्तीसगढ़ के रहने वाले फ्लाइट लेफ्टिनेंट अमितेश हरमुख पुलिस की गिरफ्त में हैं।

लेडी ऑफिसर का दावा है कि उन्‍होंने वायुसेना अधिकारियों को शिकायत की थी। इस पर कार्रवाई नहीं होने के बाद उन्‍होंने पुलिस में शिकायत की। ऑफिसर ने एक और बड़ा खुलासा किया है। उन्‍होंने कहा है कि रेप की पुष्टि के लिए उनका टू-फिंगर टेस्‍ट (Two Finger Test) कराया गया। इससे उन्‍हें गहरा सदमा लगा है। मामले में जांच जारी है। हालांकि, सवाल यह है कि आखिर यह टेस्‍ट क्‍यों किया गया जबकि इस पर रोक लगी हुई है। आइए, यहां जानते हैं कि आखिर टू-फिंगर टेस्‍ट क्‍या है, यह कैसे होता है और क्‍यों इस पर बैन लगा हुआ है।

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सुप्रीम ने लगाई थी रोक
लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्‍य के मामले (2013) में सुप्रीम कोर्ट ने टू-फिंगर टेस्‍ट को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने इस टेस्‍ट पर सख्‍त टिप्‍पणी की थी। इसे रेप पीड़‍िता की निजता और उसके सम्‍मान का हनन करने वाला करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचाने वाला टेस्‍ट है। यह टेस्‍ट पॉजिटिव भी आ जाए तो नहीं माना जा सकता है कि संबंध सहमति से बने हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के बैन के बाद भी शर्मिंदा करने वाला यह टू-फिंगर टेस्‍ट होता रहा है। 2019 में ही करीब 1500 रेप सर्वाइवर्स और उनके परिजनों ने कोर्ट में शिकायत की थी। इसमें कहा गया था कि सर्वोच्‍च न्यायालय के आदेश के बावजूद यह टेस्‍ट कराया जा रहा है। याचिका में इस टेस्‍ट को करने वाले डॉक्‍टरों का लाइसेंस कैंसिल करने की मांग की गई थी। संयुक्‍त राष्‍ट्र भी इस तरह के टेस्‍ट को मान्‍यता नहीं देता है।

सरकार बता चुकी है अनसाइंटिफिक
हेल्‍थ मिनिस्‍ट्री इस टेस्‍ट को अवैज्ञानिक यानी अनसाइंटिफिक बता चुका है। मार्च 2014 में मंत्रालय ने रेप पीड़‍ितों के लिए नई गाइडलाइंस बनाई थीं। इसमें सभी अस्‍पतालों से फॉरेंसिक और मेडिकल एग्‍जामिनेशन के लिए खास कक्ष बनाने को कहा गया था। इसमें टू-फिंगर टेस्‍ट को साफ तौर पर मना किया गया था।

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गाइडलाइंस में असॉल्‍ट की हिस्‍ट्री रिकॉर्ड करने के लिए कहा गया था। पीड़‍ित की शारीरिक जांच के साथ मानसिक तौर पर उन्‍हें परामर्श देने की राय दी गई थी। यह अलग बात है कि असल में इन बातों को बहुत नहीं माना जाता है। हाल में महाराष्‍ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्‍थ साइंसेज (MUHS) ने ‘फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्‍सिकोलॉजी’ विषय के लिए अपने पाठ्यक्रम में बदलाव किया था। यह विषय दूसरे साल के मेडिकल स्‍टूडेंट को पढ़ाया जाता है। इसमें ‘साइन्‍स ऑफ वर्जिनिटी’ टॉपिक का हटा दिया गया है।

कैसे होता है टू्-फिंगर टेस्‍ट?
इस तरह के टेस्‍ट में पीड़‍िता के प्राइवेट पार्ट में एक या दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्‍ट की जाती है। टेस्‍ट का मकसद यह पता लगाना होता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे कि नहीं। प्राइवेट पार्ट में अगर आसानी से दोनों उंगलियां चली जाती हैं तो माना जाता है कि महिला सेक्‍चुली ऐक्टिव है। अगर ऐसा नहीं होता है और उंगलियों के जाने में दिक्‍कत होती है तो इसे प्राइवेट पार्ट में हाइमन का ठीक होना माना जाता है। यही महिला के वर्जिन होने का भी सबूत मान लिया जाता है। साइंस इस तरह के टेस्‍ट को पूरी तरह से नकारती है। वह महिलाओं की वर्जिनिटी में हाइमन के इनटैक्‍ट होने को सिर्फ मिथ मानती है।

रेप के मामलों में नहीं सटीक सबूत
मेडिकल एविडेंस खासतौर से रेप के मामले में निष्‍कर्ष तक पहुंचने में काफी अहम रोल निभाते हैं। हालांकि, रेप के मामलों में फॉरेंसिक एविडेंसेज पर भी बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता है। दो लोगों के बीच संबंध आपसी सहमति से भी हो सकते हैं। सिर्फ नाबालिगों के मामले में यह ठोस सबूत के तौर पर देखा जाता है।



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