कैप्टन अमरिंदर
पंजाब में चल रहे सियासी ड्रामे से सबसे अहम किरदार हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह। पिछले कई सालों से पंजाब में किसी कांग्रेसी से उन्हें वैसी चुनौती नहीं मिल पाई जो बीजेपी से पार्टी में आए नवजोत सिंह सिद्धू ने दी। उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और इस वजह से उन्हें बड़ा सियासी नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि, नवजोत सिंह सिद्धू को सीएम न बनने देने में वह कामयाब रहे, जो उनके लिए एक बड़ी जीत है। कैप्टन के लिए पूरा मैदान खुला है। बीजेपी भी उनका स्वागत करने को बेताब दिख रही है। अब सियासत के दिग्गज खिलाड़ी कैप्टन को फैसला करना है कि वह क्या असम के हिमंत विस्व शर्मा की राह चलेंगे यानी बीजेपी का दामन थाम मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में चुनावी ताल ठोकेंगे या आंध्र प्रदेश के जगनमोहन रेड्डी के रास्ते पर चलेंगे, जिन्होंने न सिर्फ कांग्रेस से अलग पार्टी बनाई बल्कि कुछ ही सालों में सूबे की सत्ता पाने में भी कामयाब हुए।
नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ उनकी कही गईं बातें सच होती नजर आ रही हैं। कैप्टन ने सिद्धू को ‘अस्थिर’ बताया था और उनके प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद यह बात सच भी दिखने लगी है। वक्त आने पर भविष्य के लिए कदम उठाने की बात कह चुके कैप्टन अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे। वह बीजेपी के संपर्क में हैं लेकिन सिद्धू के इस्तीफे के बाद अब सियासी ड्रामे में फिर बड़ा ट्विस्ट आ चुका है। हो सकता है कि कांग्रेस आलाकमान कैप्टन को सीएम पद से हटाने के अपने फैसले पर पछता रहा हो। अगर अब आलाकमान सिद्धू को किनारे करता है तो कांग्रेस में कैप्टन की अहमियत फिर बढ़ सकती है। लेकिन इसके लिए उन्हें अपने ‘अपमान का घूंट’ भूलना होगा।
नवजोत सिंह सिद्धू
नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब के इस पूरे सियासी खेल में बड़े खिलाड़ी साबित हुए हैं। आज की तारीख में सियासी लिहाज से वह बड़े फायदे में दिख रहे हैं लेकिन दांव पर उनकी विश्वसनीयता लगी हुई है। कांग्रेस विधायकों पर उनकी जबरदस्त पकड़ है। उनके समर्थन में मंत्रियों के इस्तीफे हो रहे हैं जो बड़ी बात है। कांग्रेस में आने के बाद उन्होंने जो कुछ चाहा, वह सब कुछ मिला, सिवाय सीएम की कुर्सी के। कैप्टन अमरिंदर सिंह की कैबिनेट में मंत्री रहे। मतभेद के बाद इस्तीफा दिया और कैप्टन के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया। अमरिंदर के विरोध के बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन जाना उनकी पहली बड़ी जीत थी।
सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बनने के 2 महीने के भीतर कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। यह टीम इंडिया के इस पूर्व ओपनर के लिए बहुत बड़ी जीत थी। सिद्धू की निगाह हमेशा से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रही है। लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ। हालांकि, वह अपनी पंसद का नया मुख्यमंत्री भी बनवाने में कामयाब हुए। लेकिन अब प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर पार्टी हाईकमान के लिए असहजता और शर्मिंदगी का बायस बनते दिख रहे हैं। पंजाब में चल रहे सियासी ड्रामे में निश्चित तौर पर सिद्धू की ताकत तो बढ़ी लेकिन उनकी विश्वसनीयता ही दांव पर है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने उनमें जो भरोसा जताया था, वह डगमगाने लगा है। सीएम पद के लिए चेहरा घोषित करवाना चाहते थे लेकिन आलाकमान ने उनके साथ चन्नी को भी चेहरा बताया। इसलिए सिद्धू के लिए अबतक की स्थिति ‘कभी खुशी कभी गम’ वाली है।
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा
पंजाब के पूरे एपिसोड में राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी कड़े फैसलों से गुरेज नहीं करेगी। कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे दिग्गज से सीएम पद से इस्तीफा दिलवाकर उन्होंने बाकी स्टेट यूनिट को भी दो टूक संदेश दिया कि जरूरी होने पर पार्टी सख्त फैसले से नहीं हिचकेगी। हालांकि, अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से सिद्धू के इस्तीफे से दोनों के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई है। यह सवाल भी उठने लगे हैं कि कहीं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने सिद्धू पर आंख मूंदकर भरोसा करके बड़ी गलती तो नहीं की है।
चरणजीत सिंह चन्नी
पंजाब के इस सियासी ड्रामे में सबसे ज्यादा फायदे में चरणजीत सिंह चन्नी ही रहे। उनकी तो जैसे लॉटरी लग गई। अमरिंदर सरकार में वह मंत्री थे। कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले सिद्धू कैंप के नेताओं में वह भी प्रमुख थे। अब उन्हें मुख्यमंत्री पद मिल गया है। वह किसी का रबर स्टैंप बनने के बजाय अपने हिसाब से सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं जो बात सिद्धू को रास नहीं आ रही। दलित वोटरों को साधने के लिहाज से कांग्रेस में चन्नी की अहमियता और भी ज्यादा बढ़ी है। पार्टी आलाकमान पहले ही कह चुका है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सिद्धू के साथ चन्नी भी पार्टी का चेहरा होंगे। पंजाब कांग्रेस के भीतर सबसे ज्यादा फायदा उन्हीं को, हालांकि, सिद्धू के तेवरों से अब कुर्सी पर खतरा भी मंडरा रहा।
बीजेपी
पूरे ड्रामे में बीजेपी को फायदा। अकाली के साथ छोड़ने और किसान आंदोलन की वजह से पार्टी का पंजाब में रहा-सहा असर भी प्रभावित। कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी में शामिल कराने के लिए मना रही। अगर कैप्टन शामिल होते हैं तो बीजेपी को फायदा हो सकता है। वह कैप्टन के सहारे पंजाब में अपनी जड़ें मजबूत करने का सपना देख रही है, जहां वह अबतक कोई खास जमीन नहीं तैयार कर सकी है। अभी तक अकाली की बैसाखी के सहारे थी।
आम आदमी पार्टी
पंजाब में कांग्रेस के भीतर चल रहे हाई-वोल्टेज ड्रामे से अगर किसी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा दिख रहा है, वह आम आदमी पार्टी ही है। कमजोर और पस्त कांग्रेस उसे अपने हित में दिख रहा है। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के बाद दूसरे पायदान पर थी। उसने सत्ता में रहे अकाली-बीजेपी को तीसरे पायदान पर खिसका दिया था। इस बार आम आदमी पार्टी की नजर पंजाब की सत्ता में आने पर है। कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान से उसे अपना लक्ष्य करीब दिखने लगा है।