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नई दिल्ली
देशभर में यूनिफॉर्म एजुकेशन कोड लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि केंद्र सरकार को निर्देश जारी किया जाए कि हिंदुओं को भी गुरुकुल और वैदिक स्कूल खोलने और चलाने की वैसी ही इजाजत मिलनी चाहिए जैसे मुस्लिमों को मदरसे और क्रिश्चियन को मिशनरी स्कूल खोलने की इजाजत है। गुरुकुल और वैदिक स्कूल को मदरसे व मिशनरी स्कूल की तरह मान्यता देने की गुहार लगाई गई है।

भाषा, लिपि और कल्चर संरक्षित करने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने अर्जी दाखिल कर भारत सरकार के होम मिनिस्ट्री, लॉ मिनिस्ट्री और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है। संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत दाखिल अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा है कि एजुकेशनल संस्थान खोलने और उसे चलाने का सबको एक समान अधिकार मिलना चाहिए।

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याचिकाकर्ता की ओर से दाखिल अर्जी में कहा गया है कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, यहूदी व बहाई को अपनी भाषा, कल्चर और लिपि को संरक्षित करने का अधिकार है। यह अधिकार उन्हें मुस्लिम, क्रिश्चियन की तरह ही मिला हुआ है। इस अधिकार को राज्य कमतर नहीं कर सकते हैं और उसमें भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि अनुच्छेद-29 के तहत देश में सभी नागरिकों को अपनी भाषा, संस्कृति और लिपि को संरक्षित करने का अधिकार मिला हुआ है। वहीं, अनुच्छेद-30 के तहत अल्पसंख्यकों को एजुकेशनल इंस्टीट्यूट खोलने और उसे चलाने का अधिकार है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, अनुच्छेद-30 को संविधान में मिले समानता के अधिकार और कानून के समक्ष बराबरी के अधिकार के तहत ही पढ़ा जाना चाहिए। हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, यहूदी और बहाई को भी एजुकेशनल संस्थान खोलने और उसके संचालन का अधिकार होना चाहिए। उसमें राज्य भेदभाव नहीं कर सकते है और इस अधिकार को राज्य कम नहीं कर सकते हैं।

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याचिकाकर्ता के मुताबिक, अनुच्छेद-29 व 30 का मकसद यह नहीं है कि जो बहुसंख्यक हैं उन्हें अपने एजुकेशनल संस्थान खोलने और संचालन से वंचित किया जाए। सभी को एक समान अधिकार है कि वह अपनी भाषा, लिपि और कल्चर को संरक्षित करे। सिर्फ अल्पसंख्यकों को एजुकेशनल संस्थान खोलने और संचालित करने का अधिकार देना देश के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विपरीत है। ऐसे में केंद्र को निर्देश दिया जाए कि वह यूनिफॉर्म एजुकेशन कोड लागू करे।

मिले एजुकेशनल संस्थान खोलने और चलाने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में गुहार लगाई गई है कि जो भी मौलिक अधिकार अनुच्छेद-29 में है वह सभी नागरिकों को मिले और उसे अनुच्छेद-14, 15 व 19 के आलोक में देखा जाए। यह भी निर्देश दिया जाए कि हिंदू, जैन, सिख बौद्ध, यहूदी और बहाई को भी अपनी भाषा, कल्चर और लिपि को संरक्षित करने का अधिकार हो जैसा कि मुस्लिम, क्रिश्चियन और पारसी को मिला हुआ है।

राज्य इस अधिकार को हिंदुओं के लिए कम नहीं कर सकता और भेदभाव नहीं कर सकता है। अनुच्छेद-30 को समानता के अधिकार, कानून के तहत सब बराबर के अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत देखा जाना चाहिए।

निर्देश जारी होना चाहिए कि हिंदुओं, सिख, जैन, बौद्ध, बहाई और यहूदी को भी मुस्लिम, पारसी और क्रिश्चियन की तरह एजुकेशनल संस्थान गठन करने और चलाने का अधिकार होना चाहिए और उस अधिकार को राज्य कम न करें और यूनिफॉर्म एजुकेशन कोड लागू किया जाना चाहिए।



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