हाइलाइट्स
- ओबीसी जनगणना का मुद्दा काफी चर्चा में रहा
- बीजेपी के नेता भी करते रहे हैं इसकी मांग
- अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्थिति साफ की
राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा में रहे पिछड़े वर्गों की जातिगत जनगणना के मसले पर केंद्र सरकार ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने 2021 की जनगणना में ओबीसी की गणना नहीं करने का फैसला किया है। SC में हलफनामा दाखिल कर सरकार ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा पिछड़े वर्गों (Other Backward Caste) की जाति आधारित जनगणना प्रशासनिक रूप से काफी जटिल काम है और इससे पूरी या सही सूचना हासिल नहीं की जा सकती है। सरकार का कहना है कि जनगणना के दायरे से इस तरह की सूचना को अलग करना नीतिगत फैसला है।
2011 की जनगणना में कैसी गलतियां?
केंद्र का रुख काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में बिहार से 10 दलों के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की थी। यही नहीं, सुशील कुमार मोदी जैसे बीजेपी के अपने नेता भी इसकी वकालत करते रहे हैं। अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया है, उसके मुताबिक सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (SECC), 2011 में काफी गलतियां एवं अशुद्धियां हैं। ऐसे में उस पर भरोसा या उसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
4 हजार से 46 लाख जातियां कहां से हो गईं?
केंद्र ने खामियों को सामने रखते हुए कहा है कि 1931 जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि कुल जातियां 4,147 थीं लेकिन 2011 SECC में 46 लाख से ज्यादा पता चलते हैं। सरकार ने कहा है कि यह आंकड़ा वास्तव में हो ही नहीं सकता, संभव है कि इनमें कुछ जातियां उपजातियां रही हों।सरकार ने बताया है कि जनगणना करने वाले कर्मचारियों की गलती और गणना करने के तरीके में गड़बड़ी के कारण आकंड़े विश्वसनीय नहीं रह जाते हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने क्या मांग की है
महाराष्ट्र सरकार की ओर से याचिका दायर कर मांग की गई थी कि केंद्र और संबंधित विभाग को निर्देश दिया जाए कि वह सामाजिक, आर्थिक एवं जातिगत जनगणना 2011 में दर्ज ओबीसी के जातीय आंकड़ों की जानकारी मुहैया कराएं। इस पर केंद्र ने कहा कि 2011 में इकट्ठा किए ओबीसी डेटा में काफी गलतियां हैं। सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि नौकरियों के लिए, शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश या चुनावों में किसी भी तरह से इस डेटा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और इसीलिए इसे आधिकारिक न करने का फैसला किया गया।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के सचिव की तरफ से दायर हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र ने पिछले साल जनवरी में एक अधिसूचना जारी कर जनगणना 2021 के लिए जुटाई जाने वाली सूचनाओं का ब्योरा तय किया था और इसमें अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से जुड़ी सूचनाओं सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया लेकिन इसमें जाति के किसी अन्य श्रेणी का जिक्र नहीं किया गया है।
यह बात भी समझिए
सरकार ने साफ कहा है कि एसईसीसी 2011 सर्वेक्षण ‘ओबीसी सर्वेक्षण’ नहीं है जैसा कि आरोप लगाया जाता है, बल्कि यह देश में सभी घरों में जातीय स्थिति का पता लगाने की व्यापक प्रक्रिया थी। यह मामला गुरुवार को न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया। अब आगे की सुनवाई 26 अक्टूबर को होगी।
सरकार ने यह भी कहा है कि जनगणना कराने का काम एडवांस्ड स्टेज में है और अब मानदंडों में बदलाव नहीं किया जा सकता है। वैसे भी कोरोना महामारी के चलते प्रक्रिया में थोड़ी देर हो गई है। सरकार ने आगे कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ओबीसी जातिगत जनगणना कराने को लेकर कोई भी निर्देश बड़े पैमाने पर भ्रम पैदा करेगा और सरकार के नीतिगत फैसले में भी दखल होगा, जबकि सरकार ने सेंसस 2021 में OBC जाति जनगणना न कराने का फैसला किया है।’