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नई दिल्ली
सेनाओं के कायापलट का भारत का बहुप्रतीक्षित और सालों से अटका प्लान अब परवान चढ़ने लगा है। चढ़े भी क्यों नहीं, आखिर यही समय है, सही समय है। ऐसे वक्त में जब भारत और अमेरिका के रिश्ते तेजी से मजबूत हो रहे हैं। अमेरिका और उसके सहयोगी देश अब चीन के खिलाफ डिफेंस कोऑपरेशन बढ़ा रहे हैं। इसलिए भारत उनके लिए वक्त की जरूरत भी है। नई दिल्ली को इस मौके से चूकना नहीं चाहिए। पीएम मोदी का मौजूदा अमेरिका दौरा सैन्य कायापलट के लिहाज से काफी अहम है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को वाइट हाउस में क्वॉड नेताओं के साथ बैठक में शामिल होने वाले हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया के पीएम स्कॉट मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री योशीहिदे सुगा भी शामिल हैं। पीएम मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ द्विपक्षीय मीटिंग भी होनी है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये बैठकें 1947 में देश की आजादी के बाद से सबसे बड़े सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में बढ़ाने वाली हैं। भारत के लिए आर्मी, एयर फोर्स और नेवी में बेहतर समन्वय विकसित करना वक्त की मांग है। अमेरिका और ब्रिटेन एशिया प्रशांत क्षेत्र में और ज्यादा परमाणु पनडुब्बियों को तैनात करने में ऑस्ट्रेलिया के साथ आए हैं।

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ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीने रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान से लगी सीमा की निगहबानी करने वाली इंडियन आर्मी की यूनिट को नेवी और एयर फोर्स के साथ बेहतर तालमेल के लिए प्लान की रूपरेखा तैयार करने का आदेश दिया था। उस मॉडल को बाद में पूरे देश में लागू किया जाएगा ताकि 2024 तक तीनों सेनाएं एक नए ऑपरेटिंग स्ट्रक्चर के तहत आ सकें।

भारतीय आर्म्ड फोर्सेज जितनी ज्यादा एकीकृत होंगी, किसी संघर्ष की स्थिति में उतनी ही आसानी से अमेरिकी सेना और उसके सहयोगियों के साथ समन्वय कर सकेंगी। एक्सपर्ट्स भी एकीकृत सैन्य ढांचा की जरूरत पर जोर दे रहे हैं। ‘इंडिया एज ऐन एशिया पैसिफिक पावर’ नाम से किताब लिखने वाले और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के नेशनल सेक्युरिटी कॉलेज में सीनियर रिसर्च फीलो डेविड ब्रियूस्टर कहते हैं, ‘क्वॉड पार्टनर्स ने महसूस किया है कि वे एक समय पर भारत की सिर्फ एक सेना के साथ ही अभ्यास कर पाते हैं। जैसे अगर नेवी है तो एयर फोर्स नहीं। अगर एयर फोर्स है तो नेवी नहीं। इससे कोऑपरेशन में दिक्कत आएगी।’

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क्वॉड मीटिंग से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को ऑस्ट्रेलिया के पीएम मॉरिसन, जापानी पीएम सुगा और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के साथ अलग-अलग मुलाकातें की। पीएमओ ने अपने ट्वीट में भारत-अमेरिका के साझे मूल्यों की बात की और आपसी रिश्तों में आ रही मजबूती और गर्मजोशी की बात की।

दशकों ने भारतीय नेताओं ने मिलिट्री कमांड और कंट्रोल को बांटकर रखा ताकि सैन्य तख्तापलट जैसी त्रासदी से बचा जा सके जो एक वक्त पड़ोसी देशों में बहुत ही सामान्य बात थी। 90 के दशक से ही एकीकृत सैन्य ढांचे की बात चल रही है लेकिन नौकरशाहों और सैन्य अधिकारियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। चीन को काउंटर करने के लिहाज से मौजूदा ढांचे को बदला जाना जरूरी है। चीन भी 2016 में ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की तर्ज पर अपने सैन्य ढांचे को एकीकृत कर चुका है।

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रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ए. भारत भूषण बाबू ने ब्लूमबर्ग को बताया, ‘क्षेत्रीय चुनौतियों और तकनीकी बदलावों का सामना करने के लिए इंडियन मिलिट्री के मॉडर्नाइजेशन की प्रक्रिया जारी है।’ हालांकि, उन्होंने इस बारे में और ज्यादा जानकारी नहीं दी। नेवी, आर्मी और एयर फोर्स ने अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

अधिकारियों ने बताया कि मॉडर्नाइजेशन के तहत कम से कम 4 थिअटर कमान बनाने की योजना है। पश्चिम का थिअटर कमान पाकिस्तान पर नजर रखेगा और पूरब का कमान चीन पर। हिंद महासागर पर नजर रखने के लिए समुद्री थिअटर कमान होगा और एयर डिफेंस कमान हवाई सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालेगा। जम्मू और कश्मीर में सैन्य ढांचे की मौजूदा व्यवस्था से अभी कोई छेड़छाड़ नहीं होगा।

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भारत की तीनों सेनाओं के बीच अब भी कोई सुरक्षित कॉमन कम्यूनिकेशन नेटवर्क नहीं है। 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक के वक्त यह कमी खुलकर सामने आई थी। पुलवामा आतंकी हमले के बाद इंडियन एयर फोर्स पाकिस्तान के बालाघोट में घुसकर आतंकी कैंप को नेस्तनाबूद किया था। एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर ब्लूमबर्ग को बताया कि तब आर्मी यूनिट्स को अलर्ट पर रखा गया था लेकिन उन्हें यह नहीं बताया गया था कि क्यों अलर्ट पर रहना है और क्या संभावित खतरे हो सकते हैं। यानी उस समय सेना को पता ही नहीं था कि एयर फोर्स पाकिस्तान में एयरस्ट्राइक करने वाली है।



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