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कोरोना महामारी के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरह के बुखार का प्रकोप राज्य सरकारों का नया सिरदर्द बन गया है। सबसे गंभीर स्थिति यूपी की है। यहां फिरोजाबाद जिले में बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। वायरल फीवर और डेंगू जैसे लक्षणों वाले 61 बच्चों की इस जिले में मौत हो चुकी है। आगरा जिले में भी हालात बिगड़ने लगे हैं। पिछले चार दिनों में वहां तेज बुखार से आठ बच्चों की जान चली गई।

उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान और कर्नाटक से भी इस तरह से बच्चों की मौत की खबरें आ रही हैं। कुछ राज्यों में बुखार से मरने वालों की संख्या अभी भले ही कम है, लेकिन इसका यह मतलब निकालना गलत होगा कि वहां हालात गंभीर नहीं हैं। उदाहरण के लिए, बिहार में अभी तक 15 बच्चों की मौत बताई जा रही है, लेकिन इस महीने तेज बुखार और फ्लू जैसे लक्षणों के साथ 7000 से ज्यादा बच्चे स्वास्थ्य केंद्रों पर लाए गए। साफ है कि बीमारी फैली हुई है। अगर इससे निपटने में लापरवाही हुई तो कहीं अधिक बच्चों की मौत हो सकती है। कोरोना के चलते पिछले करीब डेढ़ साल से देशवासियों की जो मन:स्थिति बनी हुई है, उसे देखते हुए इन बीमारियों की गंभीरता को समझना होगा।

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निस्संदेह इन मौसमी बीमारियों की तुलना कोरोना से नहीं की जा सकती। लेकिन सर्दी-खांसी का ठीक न होना और तेज बुखार से पीड़ित बच्चों का दम तोड़ना, प्रभावित आबादी को ट्रॉमा में डालने के लिए काफी है। और कोरोना के खतरे से भी हम मुक्त कहां हुए हैं। आज भी रोजाना इसके लगभग 30 हजार नए मामले आ ही रहे हैं। भूलना नहीं चाहिए कि पिछले डेढ़ साल में देश के स्वास्थ्य ढांचे पर असाधारण बोझ रहा है। स्वास्थ्यकर्मियों ने इस दौरान अद्भुत धैर्य और क्षमता का परिचय दिया है। लेकिन और ज्यादा बोझ इस ढांचे को बैठा भी सकता है।

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लिहाजा, जरूरी है कि चाहे कोरोना हो या अन्य मौसमी बीमारियां, इनके इलाज की व्यवस्था करने के साथ ही ध्यान इस बात पर केंद्रित किया जाए कि ये फैलें ही नहीं। यहां भी सरकारी तंत्र की अहम भूमिका है, लेकिन यह भी समझना होगा कि जन-स्वास्थ्य साझा जिम्मेदारी है। चाहे साफ-सफाई रखने और पानी न इकट्ठा होने देने की बात हो या दूरी बरतने, मास्क पहनने और अन्य सावधानियां बरतने की, इन मोर्चों पर जरा सी चुस्ती चमत्कार कर सकती है, जबकि जरा सी लापरवाही किए कराए पर पानी फेर सकती है।

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